कुछ अंतरराष्ट्रीय मीडिया संस्थानों ने दुनिया की विभिन्न सरकारों पर इजरायली कंपनी ‘Pegasus’ के जरिए विरोधियों की जासूसी करने का आरोप लगाया है। भारत में ‘The Wire’ जैसे वामपंथी पोर्टल ने इसे ‘इनवेस्टिगेटिव आर्टिकल’ के रूप में पेश करते हुए दावा किया कि यहाँ भी कुछ जजों, पत्रकारों और विपक्षी नेताओं के फोन्स की जासूसी हो रही थी। भारत सरकार ने इन आरोपों को नकार दिया है।
सोमवार (19 जुलाई, 2021) से संसद का मॉनसून सत्र भी शुरू हो रहा है। जहाँ एक तरफ किसान संगठनों ने 200 प्रदर्शनकारियों को संसद के बाहर भेज कर विरोध की योजना बनाई है, ‘Pegasus’ मामले में तो कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) सांसद बिनोय बिस्वास ने ‘सस्पेंशन ऑफ बिजनेस का नोटिस भी दे दिया है। मॉनसून सत्र शुरू होने से ठीक एक दिन पहले ‘जासूसी’ वाले आरोप लगाए गए।
भारत सरकार ने इन आरोपों के जवाब में देश को एक तगड़ा लोकतंत्र बताते हुए कहा है कि वो हर एक नागरिक के प्राइवेसी के अधिकार को सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है। सरकार ने याद दिलाया कि किस तरह इसी उद्देश्य के लिए उसने ‘परसनल डेटा प्रोटेक्शन बिल, 2019’ और आईटी एक्ट, 2021 को पेश किया। सरकार का कहना है कि नागरिकों की प्राइवेसी की सुरक्षा एवं सोशल मीडिया यूजर्स के सशक्तिकरण के लिए ऐसा किया गया।
केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) के अतिरिक्त सचिव राजेंद्र कुमार ने भारत सरकार की तरफ से इन आरोपों का जवाब देते हुए कहा कि मूलभूत अधिकार के रूप में अभिव्यक्ति की आज़ादी के प्रति प्रतिबद्धता भारतीय लोकतंत्र के सबसे बड़े गुणों में से एक है और हमने हमेशा अपने नागरिकों को खुली परिचर्चा का माहौल देने की कोशिश की है। साथ ही सरकार ने मीडिया के एक धड़े द्वारा लगाए गए आरोपों को तथ्यों से परे बताया।
सरकार ने कहा, “जो कहानी बनाई जा रही है, वो न सिर्फ तथ्यों से दूर है बल्कि एक पूर्व-कल्पित निष्कर्षों पर भी आधारित है। ऐसा लगता है कि जैसे ये जाँचकर्ता, अभियोजक और जूरी – इन तीनों का किरदार अदा करना चाहते हैं। सरकार के पास जो सवाल भेजे गए हैं, उन्हें देख कर लगता है कि इसके लिए काफी घटिया रिसर्च किया गया है और साथ ही ये भी बताता है कि सम्बंधित मीडिया संस्थानों द्वारा मेहनत नहीं की गई है।”
केंद्र ने स्पष्ट किया है कि जो सवाल उससे पूछे जा रहे हैं, उसके जवाब सार्वजनिक रूप से लंबे समय से उपलब्ध हैं। सरकार का कहना है कि पेगासस को लेकर पहले ही जवाब दिया जा चुका है और इस कंपनी के साथ भारत सरकार के कथित संबंधों की बात करना एक दुर्भावनापूर्ण आरोप है। बता दें कि संसद में MeitY ने कहा था कि कोई भी सरकारी एजेंसी किसी भी प्रकार की जासूसी में अनधिकृत रूप से प्रतिभागी नहीं है।
अगर किसी केंद्रीय एजेंसी को किसी के कॉल-टेक्स्ट वगैरह को इंटरसेप्ट करना है तो इसके लिए एक प्रोटोकॉल है, जिसके तहत राज्य व केंद्र सरकारों के वरिष्ठ अधिकारियों की अनुमति लेनी होती है। राष्ट्रीय हित में ही ऐसा किया जाता है और वरिष्ठ अधिकारी इसकी निगरानी करते हैं। कुछ खास पत्रकारों की कथित जासूसी पर सरकार ने कहा कि इसमें कोई सच्चाई नहीं है। इससे पहले भी सरकार पर पेगासस के जरिए व्हाट्सएप्प पर लोगों की जासूसी के आरोप लगे थे, जिसे सरकार और सुप्रीम कोर्ट में व्हाट्सएप्प ने भी नकार दिया था।
Government of India’s response to inquiries on the ‘Pegasus Project’ media report. pic.twitter.com/F4AxPZ8876
— ANI (@ANI) July 18, 2021
केंद्र सरकार ने कहा, “ताज़ा न्यूज़ रिपोर्ट भी अटकलों और अतिशयोक्तियों पर आधारित है। इसे भारतीय लोकतंत्र और इसकी संस्थाओं को बदनाम करने के लिए लिखा गया है। भारत में इस तरह के इंटरसेप्शन सार्वजनिक या राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ही किए जाते हैं, जब कोई आपात स्थिति आ जाए। राज्य और केंद्र की एजेंसियाँ कानून का इस्तेमाल करते हुए इसके लिए निवेदन करती हैं। इसके लिए केंद्रीय गृह सचिव की अनुमति लेनी होती है।”
बता दें कि इंग्लैंड में ‘द गार्डियन’ और भारत में ‘द वायर’ जैसी संस्थाओं ने जिस लेख को प्रकाशित किया है, उसमें ‘एमनेस्टी इंटरनेशनल’ के साथ मिल कर किए गए रिसर्च का हवाला दिया गया है। इसमें भारत के 40 पत्रकारों के अलावा नरेंद्र मोदी की सरकार में 2 मंत्रियों के फोन की जासूसी के भी आरोप लगाए गए। मीडिया संस्थान ने इसे ‘टारगेट सर्विलांस’ बताते हुए दावा किया है कि कई फोन्स की फॉरेंसिक जाँच के बाद ही वो ये निष्कर्ष पर पहुँचे हैं।