राजनीतिक मर्यादा को ताक पर रखकर कॉन्ग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी द्वारा की गई टिप्पणी के मामले में आखिरकार उन्हें अपनी सांसदी से हाथ धोना पड़ गया। राहुल गाँधी को लोकसभा की सदस्यता को रद्द कर दिया गया है।
इस संबंध में लोकसभा के महासचिव उत्पल कुमार सिंह द्वारा पत्र जारी किया गया है। इसमें कहा गया है कि सूरत के चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट की अदालत द्वारा दोषी ठहराए जाने के बाद केरल के वायनाड से सांसद राहुल गाँधी को संसद की सदस्यता के अयोग्य ठहराया जा रहा है।
इस नोटिफिकेशन में कहा गया है कि यह दोषी ठहराए जाने की तिथि 23 मार्च 2023 से लागू होता है। नोटिफिकेशन में यह भी कहा गया है कि जनप्रतिनिधि कानून 1951 की धारा 8 के अनुसार यह कार्रवाई की गई है। लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला के निर्देश पर यह कार्रवाई की गई है।
Breaking- @RahulGandhi disqualified as a member of the Lok Sabha. @the_hindu pic.twitter.com/rTJ5ixxlJt
— Nistula Hebbar (@nistula) March 24, 2023
23 मार्च 2023 को सूरत की जिला अदालत ने काॅन्ग्रेस सांसद राहुल गाँधी को मानहानि के एक मामले में दोषी ठहराते हुए दो साल की सजा सुनाई थी। सजा सुनाए जाने के तुरंत बाद उन्हें जमानत भी दे दी गई। उन्हें ऊपरी अदालत में अपील करने के लिए 30 दिनों का समय दिया है। इस दौरान उन पर सजा लागू नहीं होगी।
दरअसल, राहुल गाँधी ने कर्नाटक की एक रैली में 13 अप्रैल 2019 को था, “नीरव मोदी, ललित मोदी, नरेंद्र मोदी इन सभी के नाम में मोदी लगा हुआ है। सभी चोरों के नाम में मोदी क्यों लगा होता है।” इसके बाद उनके खिलाफ मानहानि का मुकदमा दर्ज किया गया था।
भाजपा नेता पूर्णेश मोदी ने कॉन्ग्रेस के पूर्व अध्यक्ष के खिलाफ सूरत में मामला दर्ज कराया था। राहुल गाँधी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 499 और 500 के तहत केस दर्ज करवाया था, जो आपराधिक मानहानि से संबंधित है। 4 साल के बाद अदालत ने मामले में राहुल गाँधी को दोषी पाते हुए सजा सुना दी।
इस केस के सिलसिले में राहुल गाँधी कई बार सूरत पहुँचे। जून 2021 में राहुल गाँधी ने पेशी के दौरान अपना बयान दर्ज कराया था। कॉन्ग्रेस नेता ने अदालत को बताया था कि उन्होंने चुनाव के दौरान राजनीतिक कटाक्ष किया था। उन्होंने यह बात किसी समाज के लिए नहीं कही थी। साथ ही कहा कि इस मामले में अब उन्हें ज्यादा कुछ याद नहीं है।
सजा सुनाए जाने के बाद राहुल गाँधी की सांसदी छिने जाने के कयास लगाए जा रहे थे। दरअसल, जनप्रतिनिधि कानून की धारा 8(3) के तहत यदि किसी सांसद को दोषी ठहराया जाता है और 2 साल या उससे अधिक की सजा होती है तो उसकी सदस्यता रद्द हो जाएगी। इतना ही नहीं सजा पूरी होने के बाद 6 साल तक वह व्यक्ति चुनाव भी नहीं लड़ सकता।
साल 2013 से पहले जनप्रतिनिधि अधिनियम की धारा 8(4) के अनुसार कोई भी सांसद या विधायक दोषी करार दिए जाने के तीन महीने के भीतर फैसले के खिलाफ अपील या रिव्यू पिटीशन दायर कर अपने पद पर बना रह सकता था। 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने धारा 8(4) को रद्द कर दिया। अदालत के 2013 में दिए गए फैसले के अनुसार अपील के बाद दोषी करार दिए गए सांसद को अदालत से सजा पर स्टे लेना होगा। स्टे मिल जाने के बाद ही उसकी सदस्यता बच सकती है।
सुप्रीम कोर्ट के जनप्रतिनिधि अधिनियम की धारा 8(4) को रद्द करने के फैसले के खिलाफ 2013 में केंद्र की तात्कालिक यूपीए-2 सरकार ने सदन में एक बिल पेश किया था। कोर्ट के फैसले के बाद उस वक्त कानून मंत्री रहे कॉन्ग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने जनप्रतिनिधि एक्ट में बदलाव के लिए विधेयक पेश किया था। सितंबर 2013 में सरकार ने इसे अध्यादेश के तौर पर लागू करने की कोशिश की। इसके तहत सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विपरीत दोषी एमपी या एमएलए की सदस्यता फौरन रद्द नहीं हो सकती थी।
इसके तहत अपील के बाद अदालत के फैसले तक आरोपित सदस्य सदन की कार्यवाही में शामिल हो सकते थे। उनकी सदस्यता बनी रहती, लेकिन वे वेतन प्राप्त करने और वोट देने के अधिकारी नहीं होते। 27 सितंबर 2013 को इसी अध्यादेश के प्रारंभिक ड्राफ्ट को राहुल गाँधी ने भरी प्रेस कॉन्फ्रेंस में नॉनसेंस बताते हुए फाड़ दिया था। तब राहुल ने कहा था, “इस कानून को और मजबूत किए जाने की जरूरत है।” बाद में इस अध्यादेश को वापस ले लिया गया था। अब लोगों का कहना है कि यदि राहुल उस बिल को पास हो जाने देते तो आज उनकी संसद सदस्यता पर खतरा नहीं पैदा होता।