इस साल 6 साल में सबसे कम बच्चों की मौत हुई है। बीते सालों में 1500, 1300 तक बच्चे मरे हैं। इस साल 900 की ही मौत हुई है। हर रोज अस्पतालों में मौतें होती ही रहती है। इसमें कोई नई बात नहीं है।
-अशोक गहलोत, मुख्यमंत्री, राजस्थान, 28 दिसंबर 2019
भाजपा प्रधानमंत्री कार्यालय के इशारे पर कोटा में बच्चों की मौत को लेकर सियासत कर रही। इसकी आड़ में वह CAA का विरोध छिपाना चाहती है। 2015, 2016, 2017 में जब भाजपा की सरकार थी तब भी बच्चे मरे थे।
-रघु शर्मा, स्वास्थ्य मंत्री, राजस्थान, 01 जनवरी 2020
नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ पूरे देश में जो माहौल बना हुआ है, उससे ध्यान हटाने के लिए इस मुद्दे को उठाया जा रहा है। मैं पहले ही कह चुका हूॅं इस साल शिशुओं की मौत के आँकड़ों में पिछले कुछ सालों की तुलना में काफी कमी आई है।
-अशोक गहलोत, मुख्यमंत्री, राजस्थान, 02 जनवरी 2020
ये चुनिंदा बयान हैं उनके जिनकी कोटा के जेके लोन अस्पताल में 100 से ज्यादा बच्चों की मौत के मामले में सीधे-सीधे जवाबदेही बनती है। एक का राज्य का मुखिया होने के नाते तो दूसरे की उस महकमे का मुखिया होने के नाते जिसके अधीन यह सरकारी अस्पताल आता है। लेकिन, यदि तारीखों का फर्क छोड़ दें तो इन बयानों में आपको कोई अंतर दिखता है? वही असंवेदनशीलता और वैसा ही कुतर्क। एक ही संदेश बच्चे मरते हैं तो मरें, हमें फर्क नहीं पड़ता। हम नंबर गिना देंगे और बता देंगे कि पहली वाली सरकार में इससे ज्यादा मरे थे।
राजस्थान की कॉन्ग्रेस सरकार की बच्चों की जिंदगी से ज्यादा मोहब्बतें नंबर से दिखती है। सो, यूनिसेफ के कुछ आँकड़ों पर गौर कर लें। इसके अनुसार साल के पहले दिन यानी एक जनवरी 2020 को सबसे अधिक बच्चे भारत में पैदा हुए। इस दिन भारत में कम से कम 67,385 बच्चे पैदा हुए। इसी दिन चीन में 46,299, पाकिस्तान में 16,787 बच्चों ने जन्म लिया। 26,039 बच्चों की पैदाइश के साथ इस मामले में नाइजीरिया तीसरे और 13,020 नवजातों के साथ इंडोनेशिया पॉंचवें पायदान पर रहा।
यूनिसेफ की कार्यकारी निदेशक हेनरिटा फोर ने कहा, “नव वर्ष और नए दशक की शुरुआत न सिर्फ भविष्य की हमारी आशाओं और आकांक्षाओं को प्रतिबिंबित करने का एक अवसर है, बल्कि हमारे बाद इस दुनिया में आने वाले का भी भविष्य है। प्रत्येक 1 जनवरी हमें उन संभावनाओं की याद दिलाती है।” यूनिसेफ की इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है, “दुनिया में ऐसे लाखों बच्चे है जिनके लिए ये दिन शुभ नहीं है। 2018 में जन्म के पहले महीने में 25 लाख नवजात शिशुओं की मृत्यु हो गई। इनमें से एक तिहाई की मौत जन्म के पहले दिन हुई।”
Today in India, an estimated 67,385 babies will be born. Each newborn has a different life waiting for them, but they all have the same rights to support them.
— UNICEF India (@UNICEFIndia) January 1, 2020
This New Year Day, let’s all make a resolution to fulfil every child’s rights, starting with the right to survive. pic.twitter.com/a694J17tzm
जाहिर है कल को गहलोत इन आँकड़ों का हवाला देकर कह सकते हैं कि इनके आगे कोटा में मरने वाले मासूमों की संख्या तो कुछ भी नहीं। जिस दिन यूनिसेफ ने अपने आँकड़े पेश किए उस दिन तो कोटा के जेके लोन अस्पताल में ‘बस’ 5 बच्चे ही मरे थे। उसके पहले के 7 दिनों 22 मरे थे। गहलोत बताएँगे कि 25 दिसंबर को 1, 26 को 3, 27 को 2, 28 को 6, 29 को 1, 30 को 4 और 31 को 5 बच्चे की मौत हुई। फिर आपसे पूछेंगे कि 25 लाख नवजातों की मौत के सामने ये क्या मायने रखते हैं?
जेके लोन अस्पताल में दम तोड़ने वाले नवजातों में 3 दिन की रेखा, 2 दिन की कांता से लेकर 1 दिन की नरगिस तक है। 28 दिसंबर की रात जब चिकित्सा शिक्षा विभाग के सचिव ने 5 घंटे समीक्षा बैठक की तो उसी दौरान 4 बच्चे भी मर गए। लेकिन, गहलोत सरकार को इन तथ्यों से कोई फर्क नहीं पड़ता।
उसे जेके लोन अस्पताल पर राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) की रिपोर्ट से भी फर्क नहीं पड़ता। यह रिपोर्ट कहती है कि अस्पताल की जर्जर हलात और वहाँ पर साफ-सफाई को लेकर बरती जा रही लापरवाही बच्चों की मौत का एक अहम कारण है। रिपोर्ट में बताया गया है कि अस्पताल की ख़िड़कियों में शीशे नहीं हैं। दरवाजे टूटे हुए हैं। इसके कारण अस्पताल में भर्ती बच्चों को मौसम की मार झेलनी पड़ती है। अस्पताल के कैंपस में सूअर भी घूमते रहते हैं। राजस्थान पत्रिका की एक रिपोर्ट के अनुसार जेके लोन ही नहीं कोटा के अन्य सरकारी अस्पतालों का भी ऐसा ही हाल है। अराजकता का आलम यह है कि जेके लोन अस्पताल के वार्ड में लगाने के लिए पिछले सप्ताह 27 हीटर खरीदे गए। लेकिन, ये हीटर कहॉं गए यह अस्पताल के अधीक्षक तक को मालूम नहीं है।
लेकिन गहलोत जानते हैं कि उनसे सवाल नहीं पूछे जाएँगे। न असंवेदनशीलता के लिए, न ध्वस्त स्वास्थ्य व्यवस्था के लिए और न सरकारी अस्पतालों में फैली बदइंतजामी को लेकर। इसलिए वे तथ्यों की परवाह नहीं करते। उन्हें मालूम है कि राजस्थान में कॉन्ग्रेस की सरकार है। वे जानते हैं कि गोरखपुर और मुजफ्फरपुर में बच्चों की मौत पर चीखने वाली मीडिया और लिबरल गैंग को नरगिस के मॉं-बाप की सिसकी सुनाई नहीं देगी। रेखा और कांता तो खैर हिंदू नाम हैं। उनके माँ-बाप का रूदन तो वैसे भी वामपंथियों, कॉन्ग्रेसियों और मीडिया गिरोह को सुनाई पड़ना नहीं है।