Monday, November 25, 2024
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उत्तराखंड में अब पटवारी व्यवस्था की जगह रेगुलर पुलिस, धामी सरकार ने 161 साल पुराना सिस्टम हटाने का लिया फैसला: अंकिता भंडारी हत्याकांड में सामने आई थी खामियाँ

उत्तराखंड के लगभग 60% इलाकों में राजस्व पुलिस की ही व्यवस्था लागू थी। 7500 गाँव उनके अधिकार क्षेत्र में आते थे। पहले चरण में इनमें से 1500 गाँव सिविल पुलिस के पास आ जाएँगे।

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की सरकार ने राजस्व पुलिस की व्यवस्था ख़त्म कर के उनकी जगह नियमित पुलिस की व्यवस्था करने का फैसला लिया है। राजस्व पुलिस के संरक्षण में जो इलाके आते थे, अब वो अधिकार नियमित पुलिस को चला जाएगा। ऋषिकेश के एक फार्महाउस में बतौर रिसेप्शनिस्ट काम करने वाली अंकिता भंडारी की हत्या के बाद राज्य की भाजपा सरकार ने ये फैसला लिया है।राज्य कैबिनेट के इस निर्णय पर सुप्रीम कोर्ट ने भी शीघ्रता से कार्यवाही पूरी करने के लिए कहा है।

अपर मुख्य सचिव गृह राधा रतूड़ी ने इस बारे में जानकारी देते हुए बताया है कि राजस्व क्षेत्र में 6 थानों के अलावा 20 चौकियों की स्थापना और पुलिस क्षेत्र के विस्तार का कार्य 6 महीने के अंदर पूरी करने के लिए कहा है। कैबिनेट ने भी यही निर्णय लिया था। पुलिस ने इस सम्बन्ध में प्रस्ताव तैयार कर सरकार को सौंपा शुरू कर दिया है, जिसके तहत चौकियों की स्थापना होगी। 2018 में नैनीताल हाईकोर्ट ने भी राज्य सरकार को इसकी सलाह दी थी।

इस पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही थी, जहाँ धामी सरकार ने बताया कि सभी डीएम-एसपी को इस बाबत प्रस्ताव तैयार करने के निर्देश दे दिए गए हैं। इसे राज्य में ‘पटवारी सिस्टम’ के नाम से भी जाना जाता है। हत्या और बलात्कार जैसे मामलों की जाँच और इस सम्बन्ध में कार्रवाई अब नागरिक पुलिस ही करेगी। चरणबद्ध तरीके से पटवारी सिस्टम को ख़त्म किया जाएगा। 12 अक्टूबर को कैबिनेट की बैठक में ये फैसला लिया गया था, जिसका ब्यौरा सुप्रीम कोर्ट में भी पेश किया गया।

अंकिता भंडारी की हत्या के बाद लगातार आरोप लग रहे थे कि राजस्व पुलिस के समक्ष ऐसे मामलों की शिकायतें दर्ज कराने और फिर कार्रवाई में लंबा समय लग जाता है। 161 साल पुरानी व्यवस्था के अंतर्गत कानूनगो, लेखपाल और पटवारी जैसे राजस्व अधिकारियों को अपराध दर्ज करने और जाँच करने के अलावा पुलिस अधिकारियों की शक्ति और कार्रवाई के अधिकार दिए गए हैं। खास बात ये है कि राजस्व पुलिस को हथियार रखने की अनुमति नहीं है, जिस कारण उन्हें ‘गाँधी पुलिस’ भी कहा जाने लगा था।

उत्तराखंड के लगभग 60% इलाकों में राजस्व पुलिस की ही व्यवस्था लागू थी। 7500 गाँव उनके अधिकार क्षेत्र में आते थे। पहले चरण में इनमें से 1500 गाँव सिविल पुलिस के पास आ जाएँगे। पटवारी व्यवस्था पहाड़ी समाज के लिए काफी पहले से लागू थी। सन् 1861 में अंग्रेजों का पुलिस एक्ट भी यहाँ नहीं लागू हुआ था। अंग्रेजों के कमिश्नर रहे जी.डब्ल्यू. ट्रेल ने पटवारी पुलिस को राजस्व से लेकर अपराध रोकने और टैक्स कलेक्शन तक के अधिकार दे रखे थे और इसके लिए 16 पद सृजित किए थे।

अल्मोड़ा में 1837 और रानीखेत में 1843 में थानों की स्थापना की गई थी। इसके तहत पटवारी, कानूनगो, नायब तहसीलदार, तहसीलदार, परगनाधिकारी, जिलाधिकारी और कमिश्नर अन्य कार्यों के अलावा पुलिस वाले काम ही करने लगे। तकनीक और हथियारों के अभाव में अब वो ये काम ठीक से नहीं कर पा रहे थे। अंग्रेजों के जमाने में कुमाऊं में 19 परगना और 125 पटवारी क्षेत्र थे, जबकि गढ़वाल में 11 परगना और 86 पटवारी क्षेत्र हुआ करते थे।

हत्या और बलात्कार जैसे गंभीर अपराध इस कारण फाइलों में ही दबे रह जाते थे, ऐसे में उम्मीद है कि संसाधनों से संपन्न नागरिक पुलिस की तैनाती से ये क्रम टूटेगा। काफी पहले के समय में यहाँ ज्यादा अपराध नहीं थे, शायद इसीलिए ये व्यवस्था रही होगी। अब जमाना बदल गया है। जब अंकिता भंडारी के गायब होने की शिकायत दर्ज कराने की कोशिश की गई थी, तब तब पटवारी वैभव प्रताप ने कोई कार्रवाई नहीं की। वो चुप रहा और छुट्टी पर चला गया।

उसने मुख्य आरोपित पुलकित आर्य की मदद की थी, जो रिसॉर्ट चलाता था। वो राज्य के पूर्व मंत्री का बेटा है। अंकिता भंडारी के गायब होने की शिकायत पटवारी ने नहीं दर्ज की। कुछ दिनों बाद ये केस रेगुलर पुलिस के पास पहुँचा और कार्रवाई शुरू हुई। पहले पटवारी से रेगुलर पुलिस तक केस आने और कार्रवाई में कई दिन लग जाते थे। पहाड़ों में कम अपराध होने के कारण आई व्यवस्था अब नासूर बन गई थी, इसीलिए धामी सरकार ने इसे हटा दिया।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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