राजनीति के घोड़े पर सवार राहुल गाँधी ने अभी-अभी रफ़्तार पकड़ी थी। तीन राज्यों में सरकार बनाई। वो भी हिन्दी पट्टी में। लेकिन घोड़ा दुलत्ती भी मारता है, इस ज्ञान को कैलाश के रास्ते में खोज न पाए! और नतीजा अमेठी में मिला।
अमेठी जो न सिर्फ राहुल गाँधी का गढ़ है, बल्कि कॉन्ग्रेस पार्टी का पर्याय भी। यहाँ से कॉन्ग्रेस पार्टी के 13 सभासदों ने कल मतलब बुधवार मतलब 30 जनवरी 2019 को ‘हाथ’ झटककर ‘कमल’ का दामन थाम लिया। अब कहाँ कॉन्ग्रेस जैसी बड़ी पार्टी, और कहाँ छोटे-मोटे सभासद। लेकिन एक कहावत है – देखन को छोटन लगे, घाव करे गंभीर!
गंभीर ही है घाव। यकीन मानिए। सभी के सभी 13 सभासद ‘अल्पसंख्यक’ समाज से आते हैं। कॉन्ग्रेस के लिए यह घाव तब भगंदर बन गया, जब ख़बर में यह भी है कि ना सिर्फ 13 सभासदों ने बल्कि अल्पसंख्यक समाज की कई महिलाएँ और पुरुषों ने भी ‘कमल’ को ही अपना लिया।
नरेंद्र मोदी पर ‘फूट डालो और शासन करो’ का आरोप लगाने वाले ‘शिवभक्त’ ‘रामभक्त’ दत्तात्रेय गोत्री राहुल गाँधी को यह लाइन टेप-रिकॉर्डर में रिपीट मोड ऑन करके सुनना चाहिए – “13 सभासदों के साथ सैकड़ों लोगों ने भाजपा की सदस्यता ग्रहण की है। भाजपा सबका साथ और सबका विकास की राजनीति करती है। इसलिए हम लोगों ने भाजपा की सदस्यता ग्रहण की है।”
हमारे एक साथी हैं। शानदार लिखते हैं। फ़िल्में उन्हें बेहद पसंद है। इसलिए लेखनी में फ़िल्मों के डायलॉग या गाने भी चिपका देते हैं। उन्होंने कभी कपिल सिब्बल को देशद्रोह कानून पर अपनी लेखनी में एक नसीहत दी थी: “येक पे रहना – या घोड़ा बोलो या चतुर बोलो।” पता नहीं क्यों, उनकी यह कालजयी लाइन (जो एक गाने की है, उनकी इसलिए क्योंकि राजनीतिक संदर्भ में पिरोया उन्हीं ने) “येक पे रहना – या घोड़ा बोलो या चतुर बोलो” – राहुल गाँधी पर बहुत सटीक बैठ रही है।
अब देखिए न! कहाँ तो बेचारे जनेऊ धारण कर कमंडल को साधने चले थे। पता चला टोंटी वाले लोटे ने धोखा दे दिया। तिलक लगा राम-भक्त बनने निकले थे, रहीम ने दूरी बना ली। टेंपल-रन के मामले में मोदी को पीछे छोड़ने वाले ‘असली और एकमात्र’ शिव-भक्त राहुल से अगर मुहर्रम पर सवाल पूछ दिए जाएँ तो मैं ‘केजरीवाली’ दावे के साथ कह सकता हूँ कि कल को शिया-सुन्नी भी इनसे कट लेंगे। और जिनको आप साधना चाह रहे हैं, वो सब गंगा मइया में नंगे हैं, तो बताइए भला, क्या आप नंगों के मत से सरकार बनाएँगे! छी-छी-छी!
उत्तर प्रदेश के अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री मोहसीन रजा ने अमेठी को दिलचस्प बना दिया है। यह सारा कारनामा उन्हीं का है। वैसे वो राहुल गाँधी के परिवार को बहुत प्यार करते हैं। इतना प्यार, इतना प्यार कि वो अकेले ऐसे राजनेता थे, जिन्होंने पिछले सप्ताह (या शायद 10 दिन) राहुल के दादाजी स्वर्गीय फ़िरोज गाँधी को श्रद्धांजलि देने गए थे। यह और बात है कि अपने दादाजी को श्रद्धांजलि देने के लिए राहुल गाँधी को बीजेपी जॉइन करनी ही पड़ी, ऐसी बाध्यता नहीं है।