Saturday, July 27, 2024
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ये योगी का उत्तर प्रदेश है, यहाँ गुंडागिरी नहीं चलती: कारगर है दंगों से निपटने का ‘योगी मॉडल’

'सार्वजनिक संपत्ति नुकसान रोकथाम अधिनियम 1984' पहले से मौजूद है। इसके प्रावधानों के मुताबिक, अगर कोई व्यक्ति सरकारी या सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुँचाने का दोषी साबित होता है तो उसे 5 साल तक की सजा हो सकती है। इसमें जुर्माने का भी प्रावधान है। ऐसे मामलों में दोषी पाए जाने पर सजा और जुर्माना दोनों हो सकता है।

गोरक्षधाम के महंत योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के पहले ऐसे भाजपा नेता हैं, जिन्होंने बतौर मुख्यमंत्री राज्य में 3 साल का कार्यकाल पूरा किया है। इसमें कोई शक नहीं कि वो पूरे 5 साल राज करेंगे लेकिन इस दौरान उन्होंने जो सबसे अच्छे कार्य किए, उनमें से एक है क़ानून-व्यवस्था का राज़ स्थापित करना। यूपी में हुए ताबड़तोड़ एनकाउंटर्स में कई अपराधी मारे गए, कई राज्य से ही भाग खड़े हुए और कइयों ने सरेंडर किया। लेकिन, बुद्धिजीवियों का एक वर्ग लगातार लोगों को उकसा कर माहौल बिगाड़ने में लगा रहता है, जैसा दिल्ली में किया गया।

उत्तर प्रदेश में मुस्लिमों की जनसंख्या 20% के आसपास है। यानी लिबरलों व मीडिया के गिरोह विशेष के पास वहाँ के मुस्लिमों को भड़काने के ज्यादा मौके थे और इसके लिए पूरा प्रयास किया गया। शाहीन बाग़ की तर्ज पर लखनऊ और वाराणसी में महिलाओं को बिठाया गया। इमरान प्रतापगढ़ी और शरजील इमाम से भड़काऊ व आपत्तिजनक भाषण दिलाए गए। जेएनयू और जामिया के तर्ज पर एएमयू को सुलगाने का प्रयास किया गया। मजहबी युवकों को पत्थरबाजी में लगाया गया। पुलिस पर हमले किए गए। लेकिन, कुछ ही दिनों में सब शांत हो गया और नापाक मंसूबे वाले नाकामयाब रहे।

ऐसा क्यों हुआ? पूरे मीडिया गिरोह, लिबरल गैंग और कथित बुद्धिजीवियों की राह में एक ही रोड़ा था- यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ, गोरक्षधाम पीठ के महंत। इस महंत ने एक के बाद एक देश के टुकड़े-टुकड़े करने वालों के मंसूबों पर पानी फेर दिया। न तो मीडिया उन्हें चुप करा सकता है और न ही वो फर्जी बुद्धिजीवियों के दबाव में आते हैं। और हाँ, हिंसा की वारदातों को शांत कराने का अनुभव तो उन्हें गोरखपुर से ही है। सब कुछ क़ानून सम्मत हुए, लेकिन कैसे? यहाँ दिल्ली हिंसा के बीच हम शांति के यूपी मॉडल की बात करेंगे।

दंगाइयों से पाई-पाई वसूलने वाला नियम

उत्तर प्रदेश में दंगाइयों और उपद्रवियों पर अन्य कार्रवाई से ज्यादा जोर इस बात पर है कि उनकी करतूतों से जो सार्वजनिक संपत्ति का नुकसान हुआ है, उसकी भरपाई की जाए। जैसे, रामपुर जिले में 28 लोगों को आरोपित बनाया गया और पुलिस के 9 डंडे व 3 हेलमेट तक के रुपए वसूल लिए गए। भले ही वो एक कंगाल व्यक्ति हो या कोई धन्नासेठ, अगर उसने सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुँचाने का काम किया है तो उससे वसूली की है। पुलिस की जीप पर पत्थरबाजी हुई तो उसे बनवाने के लिए रुपए भी दंगाइयों से ही वसूले गए।

बता दें कि ‘सार्वजनिक संपत्ति नुकसान रोकथाम अधिनियम 1984’ पहले से मौजूद है। इसके प्रावधानों के मुताबिक, अगर कोई व्यक्ति सरकारी या सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुँचाने का दोषी साबित होता है तो उसे 5 साल तक की सजा हो सकती है। इसमें जुर्माने का भी प्रावधान है। ऐसे मामलों में दोषी पाए जाने पर सजा और जुर्माना दोनों हो सकता है। यानी, क़ानून तो पहले से है लेकिन इसका सही तरीके से उपयोग योगी सरकार ने किया। लखनऊ से लेकर अलीगढ़ तक दंगाइयों से पाई-पाई वसूला गया। सीधा मतलब है, जब किसी को अपनी संपत्ति जाने का भय होगा तो वो जनता की संपत्ति को नुकसान पहुँचाएगा ही नहीं।

सड़क पर दादागिरी नहीं चलेगी: प्रदर्शन अलग कीजिए

इसे लखनऊ के घंटाघर पर चल रहे विरोध प्रदर्शन से समझिए। वहाँ महिलाओं को बड़ी तादाद में बिठा दिया गया था। योगी सरकार ने प्रदर्शन के लिए कभी किसी को नहीं रोका क्योंकि लोकतंत्र में इसके लिए जनता को अधिकार है। लेकिन, ‘अवैध तौर-तरीकों’ से चल रहे प्रदर्शन से ज़रूर उसी हिसाब से निपटा गया। घंटाघर पार्क में प्रदर्शनकारियों ने ज्यादतियाँ की। कुछ लोगों ने वहाँ रस्से और डंडे से घेरा बनाकर शीट लगाया था जिसे लगाने से प्रशासन द्वारा मना किया गया था। वहाँ कम्बल वितरित किया जा रहा था, जिसे लेने के लिए आसपास के लोग आ रहे थे और अराजकता फ़ैल रही थी।

पुलिस ने तुरंत जाकर कम्बलों को वहाँ से हटाया। हालाँकि, अफवाह भी फैलाई गई कि पुलिस कम्बल छीन रही है। कम्बल वितरित करने वाले संगठनों के लोगों को भी वहाँ से भगाया गया। बिना अनुमति लगाए गए टेंट्स को जब्त कर लिया गया। जिन्होंने भड़काने की कोशिश की, उन पर सीधा चालान लगाया गया। हज़ारों महिलाएँ वहाँ जमा थीं लेकिन जिन चीजों को वहाँ ले जाने की अनुमति नहीं थी, पुलिस ने उस एक-एक चीज को जब्त किया। दिल्ली में भी योगी का यही मॉडल ज़रूरी है, जो विपक्षी नेताओं और मीडिया की परवाह न करते हुए क़ानून-सम्मत कार्रवाई करे।

पुलिस के साथ खड़ी रही सरकार: दी गई खुली छूट

आपको याद होगा कि मेरठ के एसपी ने आपत्तिजनक पाकिस्तान समर्थित नारे लगाने वाले उपद्रवियों की बस्ती में घुस कर उनके परिवार वालों को समझाया। एसपी ने स्पष्ट कहा कि जिन्हें ये सब करना है, वो पाकिस्तान चले जाएँ। उन्होंने उपद्रवियों से कहा– “इस गली को मैं ठीक कर दूँगा।” एसपी अखिलेश नारायण का वीडियो वायरल कर के उन्हें ख़ूब बदनाम करने का प्रयास किया गया। लेकिन, यूपी सरकार अपने पुलिस अधिकारी के साथ मजबूती खड़ी रही, पूरे दुष्प्रचार के बावजूद। यूपी सरकार के मंत्री मोहसिन रजा ने एसपी का समर्थन किया।

यहाँ तक कि दंगाइयों के होर्डिंग लगाने का मामला हाईकोर्ट में भी गया और वहाँ इस पर रोक लगा दी गई लेकिन योगी सरकार उस फ़ैसले के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट गई। वहाँ अपील करने के बाद एक अध्यादेश पास कर के दंगाइयों के पोस्टर लगाने और उनका ‘नेम व शेम’ करने की योजना का मार्ग प्रशस्त किया गया। इसका असर भी दिख रहा है और कई शहरों में दंगाइयों द्वारा सरकार को चेक सौंप कर नुकसान की भरपाई की जा रही है।

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अनुपम कुमार सिंह
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भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

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