बांग्लादेश की मोहम्मद यूनुस की सरकार ने सोमवार (23 दिसंबर 2024) अपदस्थ प्रधानमंत्री एवं आवामी लीग की नेता शेख हसीना के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया। उसने भारत से शेख हसीना को उसे सौंपने की भी माँग की है। इसके लिए यूनुस सरकार ने भारत को एक राजनयिक पत्र भी लिखा है। दरअसल, 5 अगस्त 2024 को तख्तापलट के बाद शेख हसीना भारत आ गई थीं। तब से यहीं हैं।
दरअसल, यूनुस सरकार ने शेख हसीना के खिलाफ हत्या, अपहरण और देशद्रोह जैसे गंभीर आरोपों में 225 से अधिक केस दर्ज किए हैं। इन मामलों में सुनवाई के तहत बांग्लादेश के अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण (ICT) ने शेख हसीना और उनकी कैबिनेट के कई मंत्रियों, सलाहकारों तथा सैन्य एवं सिविल अधिकारियों के खिलाफ मानव अपराध और नरसंहार के लिए गिरफ्तारी वारंट जारी किए हैं।
बांग्लादेश ने यह भी शेख हसीना को लेकर यह भी चेतावनी दी है कि पूर्व प्रधानमंत्री की भारत में रहने और लगातार बयान देने से भारत और बांग्लादेश के रिश्तों में तनाव बढ़ सकता है। बांग्लादेश की अंतरिम सरकार में विदेश मामलों के सलाहकार तौहीद हुसैन ने कहा, “हमने भारत सरकार को एक मौखिक नोट भेजा है, जिसमें कहा गया है कि बांग्लादेश न्यायिक प्रक्रिया के लिए हसीना को वापस चाहता है।”
वहीं, बांग्लादेश के गृह सलाहकार जहाँगीर आलम ने कहा कि उनके कार्यालय ने भारत से शेख हसीना के प्रत्यर्पण के लिए विदेश मंत्रालय को एक पत्र भेजा है। बांग्लादेश और भारत के बीच प्रत्यर्पण संधि पहले से ही मौजूद है। बांग्लादेश के कानून सलाहकार आसिफ नजरूल ने कहा था कि अगर संधि के किसी प्रावधान का हवाला देकर भारत प्रत्यर्पण से इनकार करता है तो बांग्लादेश इसका विरोध करेगा।
बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस ने पिछले महीने अपनी सरकार के 100 दिन पूरे होने पर कहा था कि वे 77 वर्षीय शेख हसीना के प्रत्यर्पण की माँग करेंगे। उन्होंने कहा था, “हमें हर हत्या में न्याय सुनिश्चित करना है।” बता दें कि 5 अगस्त को बांग्लादेश के छात्रों ने 16 साल पुरानी उनकी सरकार का तख्ता पलट दिया था।
भारत और बांग्लादेश के बीच प्रत्यर्पण समझौता
भारत और बांग्लादेश के बीच साल 2013 से ही प्रत्यर्पण संधि है। साल 2016 में इसे संशोधित किया गया था। यह संधि उग्रवाद और आतंकवाद के मुद्दे से निपटने के उद्देश्य से किया गया था। उस समय भारत के उत्तर-पूर्व राज्यों के उग्रवादी समूह के अपराधी किसी घटना को अंजाम देने के बाद भागकर बांग्लादेश में छिप जा रहे थे। वहीं, बांग्लादेश के प्रतिबंधित जमात उल मुजाहिदीन के आतंकी भारत में आ जा रहे थे।
इस प्रत्यर्पण संधि में अपराधियों, उग्रवादियों और आतंकियों आदि के प्रत्यर्पण की बात है। इसमें राजनीतिक प्रत्यर्पण की बात नहीं है। इसमें साफ कहा गया है कि भारत राजनीति से जुड़े किसी भी व्यक्ति के प्रत्यर्पण से इनकार कर सकता है, लेकिन अगर उस व्यक्ति पर हत्या और किडनैपिंग जैसे संगीन मामले दर्ज हो तो उसके प्रत्यर्पण को रोका जा नहीं सकता है। हालाँकि, साल 2016 में इस संधि में एक संशोधन किया गया।
इस संशोधन के मुताबिक, प्रत्यर्पण की माँग करने वाले देश को अपराध के सबूत देने की जरूरत भी नहीं है। इसके लिए कोर्ट से जारी वारंट ही काफी है। ये संशोधन हसीना के लिए मुश्किलें पैदा कर सकती हैं। प्रत्यर्पण समझौते के अनुच्छेद 8 में कहा गया है कि ऐसे मामले, जिनमें आरोप साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं हों या फिर अगर आरोप सैन्य अपराधों से जुड़े हों जो सामान्य आपराधिक कानून के तहत मान्य नहीं हैं। ऐसी स्थिति में प्रत्यर्पण से इनकार किया जा सकता है।