Thursday, October 10, 2024
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चीन का कर्जा चुकाते-चुकाते पाकिस्तान कंगाली की कगार पर: रिपोर्ट में खुलासा, जानें कैसे दर्जन भर देशों पर ड्रैगन कर रहा अजगर की तरह कब्जा

जाँच में यह पाया गया कि चीन ऋण लेने वाले देशों के साथ समझौतों में ऐसे खंड शामिल करता था कि उधार लेने वाले देश गुप्त एस्क्रो खातों में को अमेरिकी डॉलर या अन्य विदेशी मुद्रा जमा करने के लिए बाध्य होंगे। इसके साथ ही यदि उन देशों ने ऋणों पर ब्याज देना बंद कर दिया तो बीजिंग उन पर छापा मार सकता है और उसे जब्त कर सकता है।

चीन के कर्ज की जाल में फँसकर भारत के पड़ोसी देश श्रीलंका और पाकिस्तान आर्थिक रूप से कंगाल होने की हालत में पहुँच गए हैं और अराजकता झेल रहे हैं। हालाँकि, ये दोनों अकेले नहीं है। ऐसे लगभग एक दर्जन देश विदेशी ऋण के भार तले दबकर कराह रहे हैं और ध्वस्त होने के कगार पर आ पहुँचे हैं।

ये सारे देश गरीब हैं और अरबों डॉलर के विदेशी ऋण लिए हुए हैं। इन देशों में से अधिकांश को ऋण देने वाला कोई और नहीं, बल्कि चीन ही है। चीन दुनिया का सबसे बड़ा ऋणदाता देश है। उसकी गलत ऋणनीति और भारी ब्याज दर के कारण ऋण लेने वाला देश दिवालिया होने के कगार पर पहुँच जाता है और फिर चीन शर्तों पर समझौते करता है। जैसा कि श्रीलंका में देखने को मिला।

श्रीलंका चीन के ऋण-जाल में फँसकर ऐसी स्थिति में जा पहुँचा कि उस ऋण का ब्याज चुकाने के लिए उसके पास पैसे नहीं बचे। वह दिवालिया हो गया। अंत में चीन ने उस पर दबाव डालकर हंबनटोटा बंदरगाह को 100 वर्षों की लीज पर ले लिया। यहाँ से चीन हिंद क्षेत्र में भारत सहित अन्य देशों की जासूसी एवं अन्य गतिविधियों को अंजाम देता है।

इस समय जिन दर्जन भर देशों पर चीन की मार पड़ी है, उनमें ज्यादातर गरीब और अफ्रीका से ताल्लुक रखने वाले देश हैं। वहीं, चीन से सबसे अधिक ऋण लेने वाले देशों में पाकिस्तान, केन्या, जाम्बिया, लाओस और मंगोलिया हैं। इन देशों को प्राप्त होने वाले राजस्व का अधिकांश हिस्सा ऋणों के भुगतान में चले जाते हैं। इसके कारण शिक्षा, अस्पताल, सड़क, बिजली, खाद्यान्न पर सरकार खर्च नहीं कर पाती।

अंतरराष्ट्रीय न्यूज एजेंसी एसोसिएटेड न्यूज के अनुसार, चीन जिन देशों को ऋण देता, उनसे ऋण की शर्तों को गोपनीय रखने का दबाव डालता है और खुद भी इसे कभी दुनिया के सामने नहीं आने देता। चीन ऋण माफ करने में भी कभी इच्छा जाहिर नहीं करता, बल्कि इसके लिए वह सौदेबाजी करता है। गोपनीयता को लेकर दूसरे मददगार देश सामने नहीं आ पाते।

कर्ज के जाल में फँसे कई देश अपने कुल विदेशी ऋण का आधा से अधिक अकेले चीन से लिए हुए हैं। पाकिस्तान में लाखों कपड़ा श्रमिकों को हटा दिया गया है, क्योंकि देश पर बहुत अधिक विदेशी कर्ज है और बिजली एवं मशीनों को चालू रखने का जोखिम वह नहीं उठा सकता है।

केन्या सरकार ने विदेशी ऋण का भुगतान करने के लिए हजारों कर्मचारियों की तनख्वाह रोक दी है, इस पैसे से ऋण का भुगतान किया जा सके। वहाँ के राष्ट्रपति के मुख्य आर्थिक सलाहकार ने पिछले महीने ट्वीट किया, ‘वेतन या डिफ़ॉल्ट? जो आप लेना चाहते हैं, लें’।

दक्षिण अफ्रीकी देश जाम्बिया का एक केस स्टडी में सामने आया कि वहाँ की सरकार ने पिछले दो दशकों में बाँधों, रेलवे और सड़कों के निर्माण के लिए चीन की सरकारी बैंकों से अरबों डॉलर उधार लिया। इससे ज़ाम्बिया की अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिला, लेकिन विदेशी ब्याज भुगतान भी बढ़ गया। इसके कारण सरकार के पास कम पैसे बचे और सरकार को स्वास्थ्य देखभाल, सामाजिक सेवाओं और बीज और उर्वरक के लिए किसानों को सब्सिडी पर खर्च में कटौती करने के लिए मजबूर होना पड़ा।

ज़ाम्बिया के दिवालिया होने के कुछ महीनों बाद शोधकर्ताओं ने पाया कि उस पर चीनी राज्य के स्वामित्व वाले बैंकों का 6.6 बिलियन डॉलर (6.6 अरब डॉलर) का बकाया है, जो उस समय की तुलना में यह रकम दोगुना थी। इतना ही नहीं, यह रकम देश के कुल ऋण का लगभग एक तिहाई हिस्सा था।

एपी ने विश्लेषण में पाया कि दर्जन भर देशों में से 10 में विदेशी नकदी भंडार एक वर्ष में औसतन 25% कम हो गया। पाकिस्तान और कांगो का विदेशी मुद्रा भंडार 50% से अधिक तक खत्म हो चुका है। बेलआउट के बिना कई देशों के पास भोजन, ईंधन और अन्य आवश्यक आयातों के भुगतान के लिए विदेशी नकदी के केवल कुछ महीने के लिए बचे हैं। मंगोलिया के पास आठ महीने का समय बचा है। पाकिस्तान और इथियोपिया के पास लगभग दो महीने का।

विशेषज्ञों का अनुमान है कि जब तक चीन गरीब देशों को अपने ऋणों पर अपने रुख को नरम करना शुरू नहीं करता है, तब तक अधिक चूक और राजनीतिक उथल-पुथल की लहर चल सकती है। हार्वर्ड के अर्थशास्त्री केन रोगॉफ ने कहा, “दुनिया के कई हिस्सों में चीन अंदर तक पहुँच गया है। इसका भू-राजनीतिक स्थिरता पर दीर्घकालिक प्रभाव हो सकता है।”

चीन ने रोड एवं बेल्ट इनिशिएटिव (BRI) के लिए मैटेरियल आदि की आपूर्ति और उस काम को पूरा करने के लिए पैसे का इंतजाम करने के लिए ऋण देने में तेजी लाई थी। इस दौरान कई देशों ने चीन से खूब ऋण लिया। कुछ समय बाद इन देशों ने पाया कि वे ऋण के जाल में भयानक रूप से फँस चुके हैं।

उन्हें डर था कि पुराने ऋणों पर और अधिक ऋण लेने से वे क्रेडिट रेटिंग में नीचे चले जाएँगे और भविष्य में उधार लेना उनके लिए और अधिक महँगा हो जाएगा। इसके बाद चीन ने बुनियादी ढाँचे के विकास वाली शेल कंपनियाँ स्थापित कीं और इसके बदले ऋण दिया। इस दौरान ऋणग्रस्त देशों को अपने बहीखातों में नए ऋण को डालने से बचने की अनुमति मिली।

उदाहरण के लिए, ज़ाम्बिया में दो चीनी बैंकों से एक विशाल पनबिजली बाँध बनाने के लिए शेल कंपनी को 1.5 अरब डॉलर का ऋण दिया गया। इस ऋण को वर्षों तक देश के बहीखातों में दर्ज नहीं किया गया। ऋण लेने वाले देश चाड की स्थिति भी इससे अलग नहीं है।

इंडोनेशिया में रेलवे के निर्माण में मदद के लिए 4 अरब अमेरिकी डॉलर का चीनी ऋण भी कभी भी सार्वजनिक सरकारी खातों में नहीं आया। यह सब कुछ वर्षों बाद सामने आया, जब इंडोनेशियाई सरकार को 1.5 बजट डॉलर से अधिक के बजट से दो बार रेलमार्ग को उबारने के लिए मजबूर होना पड़ा।

इतना ही नहीं। चीनी शेल कंपनियों द्वारा बनाई गई परियोजनाओं की गुणवत्ता भी बेहद खराब रही है। युगांडा और इक्वाडोर में पनबिजली संयंत्रों में दरारें दिखाई दे रही हैं। पाकिस्तान में एक बिजली संयंत्र को इस डर से बंद करना पड़ा कि यह गिर सकता है। केन्या में खराब योजना और धन की कमी के कारण रेलवे का अंतिम प्रमुख हिस्सा नहीं बनाया जा सका।

जाँच में यह पाया गया कि चीन ऋण लेने वाले देशों के साथ समझौतों में ऐसे खंड शामिल करता था कि उधार लेने वाले देश गुप्त एस्क्रो खातों में को अमेरिकी डॉलर या अन्य विदेशी मुद्रा जमा करने के लिए बाध्य होंगे। इसके साथ ही यदि उन देशों ने ऋणों पर ब्याज देना बंद कर दिया तो बीजिंग उन पर छापा मार सकता है और उसे जब्त कर सकता है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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