Saturday, July 27, 2024
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जो फिरंगन कभी थी अमर्त्य सेन की गर्लफ्रेंड, उसके लिए भारत ‘भूखों का देश’: कहा – छीन लो बच्चा पैदा करने का अधिकार, आबादी बढ़ने के लिए भारत को ठहराया जिम्मेदार

उन्होंने भारत में स्वास्थ्य सुविधाएँ तक न होने का दावा करते हुए कहा कि प्रदूषण व अन्य मानव निर्मित कारकों की वजह से भारत में लोगों की औसत आयु भी कम है। बता दें कि पश्चिमी पितृसत्तात्मक सोच के कारण इस तरह की बातें भारत को लेकर की जाती हैं, जो औपनिवेशिक इतिहास की याद दिलाता है।

मनोवैज्ञानिक एवं प्रोफेसर मार्था नुसबौम ने जनसंख्या नियंत्रित करने की बात की है और साथ ही दावा किया कि भारत में काफी ज़्यादा लोग हैं। उन्होंने सैमुएल किम्ब्रिएल और शादी हामिद के एक पॉडकास्ट में शनिवार (18 मई, 2024) को ये बातें कही। इस पॉडकास्ट में ये लोग पशु अधिकार और जनसंख्या नियंत्रण पर चर्चा कर रहे थे। मार्था नुसबौम की ताज़ा पुस्तक ‘जस्टिस फॉर एनिमल्स: आवर कलेक्टिव रेस्पोंसिबिलिटी’ के विषय पर ये चर्चा हो रही थी।

आगे बढ़ने से पहले मार्था नुसबौम के बारे में बता दें कि 1980 के दशक में भारतीय अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन के साथ उनका रोमांटिक रिलेशनशिप रहा है। अमर्त्य सेन भी आजकल उलूल-जलूल बातें करने के लिए जाने जाते हैं। UPA काल में उनकी तूती बोलती थी। मार्था नुसबौम ने भारत को लेकर एक किताब भी लिख रखी है, जिसमें उन्होंने देश को मुस्लिम विरोधी बता कर पेश किया। 2002 के गुजरात दंगों के लिए भी वो तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार को जिम्मेदार ठहराती है।

मार्था नुसबौम ने भारत पर मढ़ दिया जनसंख्या बढ़ने का दोष

जनसंख्या नियंत्रण पर कई तरीकों से चर्चा हो सकती है, लेकिन मार्था नुसबौम ने कड़वे शब्दों का इस्तेमाल किया और भारत पर दोष मढ़ दिया। उन्होंने दावा किया कि धरती पर जनसंख्या को देखते हुए किसी को भी बच्चे पैदा करने की इजाजत नहीं होनी चाहिए। उन्होंने वन्य जीवन बचाने के लिए मनुष्यों की आबादी को नियंत्रित करने पर जोर देते हुए कहा कि भारत जैसे देशों में अत्यधिक जन्म-दर ने पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है और संसाधन संबंधित चुनौतियों को पैदा किया है।

जब शादी हामिद ने भारत की जनसंख्या को लेकर चिंता जताई, तो महिला प्रोफेसर ने कहा कि भारत एक व्यापक अकाल का सामना कर रहा है, जिसका कारण जनसंख्या का अत्यधिक होना और खराब आर्थिक नीतियाँ हैं। उन्होंने कहा कि लोगों की संख्या को कम करने से रहन-सहन अधिक स्थिर और संतुलित होगा। पॉडकास्ट में उन्होंने कहा कि जंगली जीवों को बचाने के लिए मानवों की जनसंख्या कम करनी होगी। हालाँकि, उनके विचारों से पॉडकास्ट के होस्ट्स ने भी सहमति नहीं जताई।

मनोवैज्ञानिक मार्था नुसबौम ने कहा कि हम मानव आबादी को सीमित कर के जंगली जीवन की रक्षा कर सकते हैं। जब उनसे पूछा क्या कि उनका तात्पर्य क्या है, तो उन्होंने कहा कि मानव निर्माण और मानव परिवारों द्वारा वन्य जीवन के आवास को नष्ट किया जा रहा है। उन्होंने अफ्रीका का उदाहरण देते हुए कहा कि वहाँ के लोग गरीबी के कारण सोचते हैं कि ज़्यादा बच्चे पैदा करना अच्छा है, जिस कारण हाथियों की जनसंख्या के साथ उनकी प्रतियोगिता हो रही है।

हामिद ने इस दौरान फर्टिलिटी को लेकर कुछ सवाल उनके सामने रखे। उन्होंने बताया कि भारत में फर्टिलिटी रेट पहली बार सिप्लेस्मेंट रेट से कम हो गया है, ऐसे में जनसंख्या स्थिर नहीं रह पाएगी। इस पर मार्था नुसबौम ने कहा कि 160 करोड़ की जनसंख्या उनके लिए बहुत अधिक है। उन्होंने दावा कर डाला कि भारत के कई हिस्सों में लोगों के पास खाने के लिए भोजन नहीं है और देश भयंकर अकाल का सामना कर रहा है। उन्होंने अत्यधिक जनसंख्या और खराब आर्थिक नीतियों को इसके लिए जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि जनसंख्या कम करनी ही होगी।

पश्चिमी ‘श्वेतवादी मानसिकता’, एशियाई देशों को आज भी समझते हैं गुलाम

इस दौरान उन्होंने यूरोपीय देशों की प्रशंसा करते हुए कहा कि वहाँ जन्म-दर कम होने के कारण लोगों के रहन-सहन का स्तर सुधरा है, लेकिन भारत में ऐसी स्थिति बिलकुल भी नहीं है। हामिद ने कहा कि रिप्लेसमेंट रेट कम होने का अर्थ होगा कि भविष्य में बुजुर्गों की जनसंख्या अधिक होगी, व्यवस्था में पैसों का प्रवाह बनाए रखने के लिए युवाओं की कमी होगी। इस पर मार्था नुसबौम कहने लगीं कि तुम भारत के बारे में ज्यादा नहीं जानते, वहाँ सामाजिक सुरक्षा की कोई भावना ही नहीं है।

उन्होंने भारत में स्वास्थ्य सुविधाएँ तक न होने का दावा करते हुए कहा कि प्रदूषण व अन्य मानव निर्मित कारकों की वजह से भारत में लोगों की औसत आयु भी कम है। बता दें कि पश्चिमी पितृसत्तात्मक सोच के कारण इस तरह की बातें भारत को लेकर की जाती हैं, जो औपनिवेशिक इतिहास की याद दिलाता है। ये भारत जैसे देशों की संप्रभुता का सम्मान नहीं करते। एशियाई देशों की संस्कृति को दरकिनार करते हुए ये सब कुछ ‘श्वेतवादी सोच’ से ही देखते हैं।

भारत को कैसे विकसित होना है, ये देश तय करेगा, यहाँ की सरकार तय करेगी। जनसंख्या नियंत्रण की ज़रूरत है, लेकिन मार्था नुसबौम जैसे लोगों को इसके लिए पश्चिमी सोच और पुराने आँकड़ों के आधार पर नीतियाँ तय करने की अनुमति नहीं दी जा सकती। पापुलेशन रिप्लेसमेंट रेट की भी एक अलग चुनौतियाँ हैं, आर्थिक विकास के रास्ते में। युवाओं की कमी होने से लेबर प्रॉब्लम आएगा, कस्टमर डिमांड घटेगा और सामाजिक दबाव बढ़ेगा।

भारत जैसे देश में जब काम करने वालों की संख्या घटेगी तो वो बुजुर्गों की एक बड़ी जनसंख्या को सपोर्ट नहीं कर पाएँगे, जिससे सार्वजनिक सेवाओं में संसाधनों की कमी हो जाएगी। जापान और इटली इसी तरह के डेमोग्राफिक शिफ्ट से गुजर चुके हैं, इससे वहाँ का आर्थिक विकास ज्यों का त्यों रह गया और सामाजिक सुरक्षा पर भार बढ़ेगा। जो विचार वास्तविकता से दूर है और कायम रखने लायक नहीं है, उस पर चल कर भारत और खतरनाक स्थिति में पहुँच जाएगा।

वैसे मार्था नुसबौम अकेली नहीं हैं जो इस विषय पर बातें करती हैं। अरबपति बिल गेट्स भी इस पर अपने विचार रखते रहे हैं। उन्होंने वैश्विक स्तर पर स्वास्थ्य सुविधाओं के अच्छे परिणाम मिलने और गरीबी घटाने के लिए जन्म-दर घटाने की बात की थी। फैमिली प्लानिंग और महिला शिक्षा से सशक्तिकरण के माध्यम से वो नियंत्रित प्रजनन को लेकर जागरूकता फैलाने के लिए काम करते हैं। 2010 में उन्होंने कहा था कि कैसे स्वास्थ्य सुविधाएँ बढ़ने और फैमिली प्लानिंग से जन्म-दर घटेगा और आर्थिक विकास बढ़ेगा।

कई लोग स्थिर विकास को मान्यता देते हैं, तो कई तो कई इसे व्यक्तिगत एवं सांस्कृतिक हस्तक्षेप के रूप में देखते हैं। बिल एन्ड मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन ने जनसंख्या नियंत्रण में भारी निवेश कर रखा है। मार्था नुसबौम के तो बयान से ही लगता है कि उन्हें भारत को लेकर कोई जानकारी ही नहीं है, खासकर 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के बाद पिछले एक दशक में आए बदलावों की तो कतई नहीं। न भारत में सामाजिक सुरक्षा खराब है, न यहाँ अकाल पड़ा है, न लोग भूखे मर रहे और न यहाँ स्वास्थ्य सुविधाएँ बदतर हैं।

भारत में बदल गए हैं हालात, मार्था नुसबौम करें अध्ययन

मनोवैज्ञानिक एवं प्रोफेसर मार्था नुसबौम ने भारत को लेकर शायद कोई अध्ययन ही नहीं किया है। उदाहरण के लिए आप ‘प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (PM-JAY)’ को ले लीजिए, जिसे ‘आयुष्मान भारत’ के नाम से भी जाना जाता है। इसके तहत 10 करोड़ परिवारों को स्वास्थ्य बीमा का लाभ मिलता है। इसने गरीब परिवारों को बेहतर और उच्च-स्तरीय स्वास्थ्य सुविधाएँ उपलब्ध कराई हैं। सरकार द्वारा चलाए जा रहे ‘जन औषधि’ केंद्रों से आम लोगों को सस्ते में दवाएँ उपलब्ध कराई जाती हैं, इससे बड़ी राहत मिलती है।

मोदी सरकार द्वारा लाए गए ‘नेशनल पेंशन सिस्टम’ (NPS) को ही ले लीजिए। इससे रिटायर हुए नागरिकों को फायदे मिलते हैं, वो अच्छा जीवन जी सकते हैं। इसी तरह ‘प्रधानमंत्री श्रम योगी मान-दान (PM-SYM)’ को देख लीजिए, जिससे जनसंख्या के एक बड़े हिस्से जो कि वर्कफोर्स का हिस्सा है उसे समर्थन मिलता है। वर्ल्ड बैंक के आँकड़ों की मानें तो भारत में जन्म-दर 2015 में 68.5 साल से 2021 में 70.8 साल हो गया है। कोरोना के कारण इसके बाद इसमें थोड़ी कमी आई, ये एक वैश्विक महामारी थी।

स्वास्थ्य इंफ़्रास्ट्रक्चर में बड़ा सुधार आया है, मेडिकल सेवाओं तक लोगों की पहुँच बढ़ी है और सरकारी योजनाओं के कारण जच्चा-बच्चा मृत्यु दर में कमी आई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर है और इसमें कामकाजी युवाओं का बड़ा योगदान है। मुद्रा लोग, GST, मेक इन इंडिया और डिजिटल इंडिया जैसे अभियान काम कर रहे हैं। जनसंख्या नियंत्रण की जब हम बात करते हैं तो हमें सामाजिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक तथ्यों को दरकिनार करने से बचना चाहिए, खासकर मार्था नुसबौम जैसी तथाकथित विद्वान को।

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Anurag
Anurag
B.Sc. Multimedia, a journalist by profession.

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