Wednesday, April 24, 2024
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…अब जापान के द्वीपों पर चीन का दावा, भेजे कई जहाज: अमेरिका ने 4 बड़े चीनी मीडिया को कहा – ‘विदेशी मिशन’

जापान में सेनकाकु और चीन में डियाओस नाम के इन द्वीपों का प्रशासन 1972 से जापान के हाथों में है। मगर, चीन का दावा है कि ये द्वीप उसके अधिकार क्षेत्र में आते हैं और जापान को अपना दावा छोड़ देना चाहिए। पिछले हफ्ते चीन के कई जहाज इस द्वीप के नजदीक पहुँच गए, जिसके बाद...

लद्दाख की गलवान घाटी में भारत से उलझने के बाद अब चीन के निशाने पर जापान हो सकता है। ऐसा सैन्य विशेषज्ञों का मानना है। इन्होंने आशंका जताई है कि चीन अब पूर्वी चीन सागर में भी जापान के साथ द्वीपों को लेकर उलझ सकता है।

दरअसल, चीन और जापान दोनों ही कुछ निर्जन द्वीपों पर अपना दावा करते हैं। जिन्हें जापान में सेनकाकु और चीन में डियाओस के नाम से जाना जाता है। इन द्वीपों का प्रशासन 1972 से जापान के हाथों में है। मगर, चीन का दावा है कि ये द्वीप उसके अधिकार क्षेत्र में आते हैं और जापान को अपना दावा छोड़ देना चाहिए। इतना ही नहीं चीन की कम्यूनिस्ट पार्टी तो इसपर कब्जे के लिए सैन्य कार्रवाई तक की धमकी दे चुकी है।

सेनकाकु या डियाओस द्वीपों की रखवाली वर्तमान समय में जापानी नौसेना करती है। ऐसी स्थिति में अगर चीन इन द्वीपों पर कब्जा करने की कोशिश करता है तो उसे जापान से युद्ध लड़ना होगा।

गौरतलब है कि यदि जापान और चीन के बीच हालातों के मद्देनजर कोई ऐसा युद्ध होता है तो यह तीसरी सबसे बड़ी सैन्य ताकत वाले चीन के लिए आसान नहीं होगा। पिछले हफ्ते भी चीनी सरकार के कई जहाज इस द्वीप के नजदीक पहुँच गए थे जिसके बाद दोनों देशों में टकराव की आशंका भी बढ़ गई थी।

बता दें कि द्वीपों के पास चीन की बढ़ती उपस्थिति के जवाब में जापान के मुख्य कैबिनेट सचिव योशीहिदे सुगा ने इन द्वीपों को लेकर टोक्यो के संकल्प को फिर से व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि सेनकाकु द्वीप उनके नियंत्रण में है और निर्विवाद रूप से ऐतिहासिक और अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत यह जापान का ही है। अगर चीन कोई हरकत करता है तो उसका जवाब दिया जाएगा।

वहीं, चीन ने जापान पर पलटवार करते हुए लिखा कि डियाओस और उससे लगे हुए अन्य द्वीप चीन का अभिन्न हिस्सा हैं। इस कारण से यह उनके अधिकार-क्षेत्र में आता है और हम इन द्वीपों के पास पेट्रोलिंग और चीनी कानूनों को लागू किया जाएगा।

यहाँ ध्यान रखने की आवश्यकता है कि जिस प्रकार चीन अपनी विस्तारवादी मानसिकता के जरिए भारत और नेपाल पर मनमानियाँ करता दिख रहा है। वही चीन अगर जापान के साथ संबंध बिगाड़ने का प्रयास किया, तो ये कदम उस पर ही भारी पड़ सकता है।

बता दें कि अगर किसी भी मामले के मद्देनजर जापान और चीन आमने-सामने आए तो अमेरिका इसमें जरूर शामिल होगा। क्योंकि, जापान और अमेरिका के बीच 1951 में सेन फ्रांसिस्को संधि हुई थी, जिसके तहत जापान की रक्षा की जिम्मेदारी अमेरिका की है।

इस संधि में यह भी बात लिखी है कि जापान पर हमला अमेरिका पर हमला माना जाएगा। इस कारण अगर चीन कभी भी जापान पर हमला करता है तो अमेरिका को इनके बीच आना पड़ेगा। और चीन को लेकर अमेरिका का रवैया इन दिनों कितना सख्त है, इससे सब वाकिफ हैं।

कोरोना वायरस से सर्वाधिक प्रभावित होने वाले देश यानी अमेरिका के राष्ट्रपति कोरोना के लिए पूर्ण रूप से चीन को जिम्मेदार ठहरा चुके हैं। वहीं, ताजा खबर के अनुसार तो अमेरिका ने चीन के 4 मीडिया कंपनियों को विदेशी मिशन तक कह डाला है।

जी हाँ, ट्रंप प्रशासन ने सोमवार को बताया कि चीनी मीडिया की तरफ से यूएस ऑपरेशन के लिए यह मिशन तैयार किया गया है। अमेरिकी राज्य विभाग के अधिकारियों ने कहा कि चार चीनी मीडिया संगठन अनिवार्य रूप से चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के मुखपत्र हैं और उन्हें सामान्य विदेशी मीडिया की तरह नहीं माना जाना चाहिए।

जानकारी के मुताबिक, यह चार चीनी मीडिया संगठन इस प्रकार हैं- सीसीटीवी, चाइना न्यूज सर्विस, पीपल्स डेली न्यूजपेपर और ग्लोबल टाइम्स। यह चारों मीडिया संगठन चीनी कम्युनिस्ट पार्टी और सरकार के मुखपत्र हैं। अमेरिका के अनुसार इनको दूसरी विदशी मीडिया के तरह सामान्य नहीं मानना चाहिए।

ज्ञात हो कि अमेरिका ने यह कार्रवाई ऐसे समय पर की है, जब चीनी मीडिया संगठनों ने न केवल अमेरिका बल्कि भारत और ऑस्‍ट्रेलिया के खिलाफ मनोवैज्ञानिक युद्ध छेड़ रखा है। जिसके मद्देनजर पूर्वी एशिया और प्रशांत मामलों के सहायक विदेश मंत्री डेविड स्टिलवेल ने कहा, “चीन की कम्‍युनिस्‍ट पार्टी हमेशा से ही चीन की आधिकारिक न्‍यूज एजेंसी को नियंत्रित करती है लेकिन शी जिनपिंग के राष्‍ट्रपति बनने के बाद पिछले कुछ सालों में यह नियंत्रण और ज्‍यादा बढ़ा है।” स्टिलवेल ने कहा, “ये संगठन केवल प्रोपेगेंडा ज्‍यादा कर रहे हैं।”

बता दें कि इससे पहले अमेरिका ने चीन के 5 अन्‍य मीडिया संस्‍थानों को विदेशी मिशन का दर्जा दे दिया था। यही नहीं, अमेरिका में काम कर रहे चीनी पत्रकारों की संख्‍या भी सीमित कर दी थी। इसके बाद चीन ने अमेरिका के कई पत्रकारों को देश छोड़कर जाने के लिए कह दिया था।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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