पाकिस्तानी मीडिया अब प्रशांत भूषण का फैन हो गया है। पाकिस्तान के सबसे बड़े अखबार ‘डॉन’ में लिखे एक लेख में अधिवक्ता प्रशांत भूषण और पूर्व कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी की जम कर तारीफ करते हुए उन्हें साथ मिल कर काम करने की सलाह दी गई है। लिखा है कि प्रशांत का मतलब शांत होता है लेकिन वो ऐसे नहीं हैं जबकि राहुल का मतलब विजेता होता है लेकिन फ़िलहाल वो इसमें फिट नहीं बैठते।
पाकिस्तानी अख़बार ने लिखा कि राहुल गाँधी एक दुर्लभ विपक्षी नेता हैं, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘मनमानी’ वाले शासन के खिलाफ आवाज उठाते हैं और इसके लिए उनकी सराहना होनी चाहिए। साथ ही सलाह दी गई है कि अगर वो और प्रशांत भूषण अपनी ‘विशालकाय’ ऊर्जा के साथ एक हो जाएँ तो भारत में ‘कठोर’ दक्षिणपंथी शासन द्वारा लोकतंत्र को कुचलने से रोका जा सकता है। ये लेख ‘डॉन’ के दिल्ली संवाददाता जावेद नकवी ने लिखा है।
उन्होंने लिखा है कि लोकसभा में 10% से भी कम सीटों पर सिमटी कॉन्ग्रेस ही एकमात्र पार्टी है, जिसकी पहुँच कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक है। साथ ही लिखा कि कॉन्ग्रेस पिछले कई सालों में हुई गलतियों की भी प्रतिनिधि है, जिससे दक्षिणपंथी नेताओं को सत्ता पाने का मौका मिला। दावा किया गया है कि कॉन्ग्रेस ने क्रोनी कैपिटलिज्म को ऑक्सीजन दिया, जिससे सामाजिक विभाजनकारी ताकतों ने सत्ता ले ली।
पाकिस्तानी अख़बार का दावा है कि प्रशांत भूषण उद्योगपतियों और राजनेताओं के बीच के नेक्सस को ख़त्म करने का प्रयास करते रहे हैं। साथ ही उन्हें दलितों और संप्रदाय विशेष के लिए बोलने वाला बताया गया है। लेख में लिखा है कि वो कश्मीर के अधिकार के लिए भी आवाज़ उठाते रहे हैं। उन्हें असहमति के असंख्य समर्थकों और अमूल-चूल बदलाव का वाहक एक्टिविस्ट करार दिया गया है। बताया गया है कि वो अरुंधति रॉय के फैन हैं, जिन्होंने कोर्ट की अवमानना का सामना किया था। लेख में आगे लिखा है:
“अरुंधति रॉय की तरह ही प्रशांत भूषण ने भी सुप्रीम कोर्ट में जजों से माफ़ी माँगने से इनकार कर दिया। प्रशांत भूषण का राजनीतिक अनुभव बड़ा है। वो आम आदमी पार्टी में थे, जिसने मोदी लहर को 2015 में रोका। जब केजरीवाल ने अपने साथियों को धमकाना शुरू किया तो वो पार्टी से अलग हो गए। वो अमीर उद्योगपतियों के खिलाफ रहे हैं, जो राजनितिक सत्ता चलाते हैं। लेकिन, वो जानते हैं कि वो अकेले नहीं लड़ सकते। उन्हें एक साथी की ज़रूत है। वो उस सपने के प्रतीक हैं, जो एक आदर्श नेता का होता है – आम आदमी के लिए शक्तिशाली लोगों के खिलाफ आवाज़ बुलंद करना।”
I always laugh after reading such blogs. On this one I laughed more. This Is similar to Shivam Vij blog comparing Prashant Bhushan to Mahatma & Mandela. They call these liberal thinking. Okay. Thanks. I understood what it means. A tale of misleading names https://t.co/LzSmIwMR7H
— Govindarajan.V (@GovindarajanV10) August 26, 2020
इसके बाद राहुल गाँधी की तारीफ करते हुए दोनों को एक होने की सलाह दी गई है। कहा गया है कि राहुल को मीडिया और भाजपा ने बदनाम कर रखा है। दावा किया गया है कि अयोध्या में राम मंदिर भूमिपूजन पर उनकी नाराजगी को सत्तापक्ष ने हाईजैक कर लिया। लेख के अनुसार, राहुल गाँधी ने राम मंदिर, चीन विवाद, कोरोना आपदा और राफेल पर सरकार के खिलाफ बोला। सलाह दी गई कि दोनों अपने नामों के बहकावे में न आकर भाग्य के प्रस्ताव को स्वीकारें और एक हो जाएँ।
बता दें कि प्रशांत भूषण अवमानना के मामलों में घिरे हुए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि प्रशांत भूषण ने अपनी टिप्पणी के जवाब में जो बयान दिया है, वह ज्यादा अपमानजनक है। सुनवाई में प्रशांत भूषण ने वर्ष 2009 में दिए अपने बयान पर खेद जताया था लेकिन बिना शर्त माफ़ी नहीं माँगी थी। उन्होंने कहा था कि तब मेरे कहने का तात्पर्य भ्रष्टाचार कहना नहीं था, बल्कि सही तरीक़े से कर्तव्य न निभाने की बात थी।