Saturday, April 20, 2024
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‘वो औरतों को मार कर कुत्तों को खिलाते हैं, इंसान नहीं समझते’: तालिबानियों की बर्बरता की कहानी अफगानी महिला की जुबानी

खटेरा कहती हैं, "तालिबान की नजर में, महिलाएँ जीवित नहीं हैं और न ही इंसानों की तरह साँस ले रही हैं। उनके लिए महिलाएँ सिर्फ माँस हैं, जिसे हमेशा पीटा जाना चाहिए।"

अफगानिस्तान में तालिबान के घुसने के बाद कई लोगों के पुराने जख्म हरे हो गए हैं। इसी सूची में एक नाम अफगानी महिला खटेरा (khatera) का भी है। वर्तमान में दिल्ली में रहने वाली अफगानी महिला खटेरा बताती हैं कि ये तालिबानी महिला के अंगों को कुत्तों को खिलाते हैं। न्यूज 18 से बात करते हुए खटेरा कहती हैं, “तालिबान की नजर में, महिलाएँ जीवित नहीं हैं और न ही इंसानों की तरह साँस ले रही हैं। उनके लिए महिलाएँ सिर्फ माँस हैं, जिसे हमेशा पीटा जाना चाहिए।”

उल्लेखनीय है कि 33 वर्षीय खटेरा को पिछले वर्ष तालिबानियों ने आँख में चाकू मार कर हमेशा के लिए अंधा बना दिया था। उनकी गलती बस ये थी कि वो घर से निकल कर जॉब करने जाती थीं। तालिबानियों को उनकी यही आत्मनिर्भरता नागवार गुजरी और एक दिन उनके दफ्तर से घर लौटते हुए उनपर हमला बोल दिया।

पूरी घटना अफगानिस्तान के गजनी प्रांत में हुई थी। खटेरा नाम की 33 वर्षीय महिला ने घटना से कुछ समय पहले क्राइम ब्रांच में एक अधिकारी के तौर पर काम करना शुरू किया था। एक दिन पुलिस थाने से काम पूरा करके वह घर लौट रही थीं तभी तालिबानियों ने उन्हें पकड़ा और उनपर गोली चला दी। इसके बाद उनकी आँख में चाकू घोपे गए।

जब महिला को होश आया तो वह अस्पताल में थीं। उन्होंने होश आने पर डॉक्टरों से पूछा कि आखिर वह देख क्यों नहीं पा रहीं? इस पर डॉक्टर्स का जवाब था कि आँख में चोट लगने के कारण बैंडेज लगी हुई है इसलिए वह देखने में असमर्थ हैं। हालाँकि, खटेरा को एहसास हो चुका था कि उनकी आँखें निकाल ली गई हैं। 

खटेरा ने अपने साथ हुई बर्बरता के लिए तालिबानियों के साथ उनके पिता को जिम्मेदार बताया था। उनका कहना था कि उनके पिता ने ही तालिबानियों को उनकी आईडी कार्ड की कॉपी दी थी ताकि यह साबित कर सकें कि वो पुलिस में काम करती हैं। जिस दिन हमला हुआ उस दिन भी महिला के पिता उसे लगातार कॉल कर रहे थे और उससे उसकी लोकेशन पता कर रहे थे।

गजनी पुलिस ने भी यह माना था कि इस हमले के पीछे तालिबानियों का ही हाथ था। उन्होंने खटेरा के पिता को कस्टडी में भी लिया। हालाँकि, तालिबान प्रवक्ता ने कहा कि उनके समूह को पूरे मामले का पता था लेकिन उनका इसमें कोई हाथ नहीं है क्योंकि यह पारिवारिक मामला था।

पीड़िता खटेरा कहती हैं, “तालिबान पहले हमें (महिलाओं को) प्रताड़ित करते हैं और फिर सजा के नमूने के रूप में दिखाने के लिए हमारे शरीर के साथ बर्बरता करते हैं। कभी-कभी हमारे शरीर को कुत्तों को खिलाया जाता है। मैं भाग्यशाली थी कि मैं इससे बच गई। अफगानिस्तान में तालिबान के अधीन रहना पड़ता है। कल्पना करना मुश्किल है कि वहाँ महिलाओं, बच्चों और अल्पसंख्यकों पर क्या-क्या अत्याचार हुए हैं।” 

वह अपने साथ हुई दिल दहला देने वाली घटना को याद करते हुए कहती हैं कि उनके लिए इलाज के लिए काबुल और दिल्ली जाना संभव था क्योंकि उन पर पैसे थे। लेकिन हर किसी को ऐसी सुविधा नहीं मिलतीं। वहाँ महिलाएँ या जो कोई भी तालिबान की बातें नहीं मानता वह सड़कों पर मारा जाता है।

खटेरा पूछती हैं, “तालिबान महिलाओं को पुरुष डॉक्टरों के पास जाने की अनुमति नहीं देता है, और साथ ही, महिलाओं को पढ़ने और काम करने नहीं देता है। तो फिर एक महिला के लिए क्या बचा है? मरने के लिए छोड़ना? अगर आपको ये भी लगता है कि हम सिर्फ बच्चे पैदा करने की मशीन हैं, तो भी ये कोई कॉमन सेंस नहीं बल्कि शुद्ध नफरत है। बिना चिकित्सीय देखभाल के इन पुरुषों के हुक्म के अनुसार एक महिला अपने बच्चे को कैसे जन्म दे सकती है।”

अपना दर्द बयां करते हुए वो बोलती हैं, “दुनिया के लिए यह कल्पना करना भी कठिन है कि हमने पिछले 20 वर्षों में क्या बनाया है। हमने सपने बुने, जो अब खत्म हो गए हैं। हमारे लिए सब खत्म हो गया है। तालिबान के देश पर अधिकार करने से पहले ही सरकार या पुलिस के साथ काम करने वाली महिलाओं का शिकार किया जा रहा था और उन्हें धमकाया जा रहा था। अब, चिंता महिलाओं को काम करने देने से आगे निकल गई है। इस समय, मुझे डर है कि क्या वे इन महिलाओं को जीवित छोड़ देंगे। वे सिर्फ महिलाओं को मारते नहीं हैं बल्कि जानवरों को उसे खिलवाते हैं। वे इस्लाम पर एक धब्बा हैं।”

वह कहती हैं, “हमारी महिलाओं और युवाओं ने इन 20 वर्षों में कहीं पहुँचने के लिए, एक स्थिर आजीविका खोजने के लिए, उचित शिक्षा प्राप्त करने के लिए, एक लंबा सफर तय किया है। महिलाएँ विश्वविद्यालयों में जा रही थीं। लड़कियों को स्कूल जाते हुए देखना बहुत ही खूबसूरत नजारा था। एक हफ्ते में ही सब गर्त में चला गया। मैंने अपने रिश्तेदारों से यहाँ तक ​​सुना है कि परिवारों ने लड़कियों को तालिबान से बचाने के लिए उनके शैक्षिक प्रमाणपत्रों को जलाना शुरू कर दिया है।”

पीड़ित महिला चिंता जताती हैं कि उनके साथ ये सब उस दौरान हुआ था जब देश में पुलिस काम करती थी। अब तालिबानियों का राज है और उनके बच्चे गजनी में हैं। एंबेसियों ने वीजा देने बंद कर दिए हैं। खटेरा को डर है कि उनके पिता उनके बच्चों को हथियार उठवाने पर मजबूर करके उनकी जिंदगी तबाह कर देंगे।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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