Monday, May 6, 2024
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लोकसभा चुनाव में विदेशी पत्रकारों का प्रोपेगेंडा: खालिस्तानी समर्थक महिला पत्रकार के ‘वीजा प्रपंच’ की मीडिया ने ही खोली पोल, अब फ्री प्रेस के नाम पर ड्रामा

अवनी डायस भारत और सनातन विरोधी प्रोपेगेंडा के लिए जानी जाती रही हैं, उनके कई कारनामे पहले भी पकड़े जा चुके हैं।

ऑस्ट्रेलियन पत्रकार अवनी डायस ने 20 अप्रैल 2024 को भारत छोड़ दिया। अब उन्होंने आरोप लगाया है कि भारत सरकार उनकी लोकसभा चुनाव कवरेज में अडंगा लगा रही है। उनका वीजा नहीं बढ़ रहा है। उन्हें परेशान किया जा रहा था, इसलिए उन्हें 20 अप्रैल को भारत छोड़ना पड़ा। उनके इस दावे की पोल खुल चुकी है, क्योंकि उन्होंने पहले वीजा ही अप्लाई नहीं किया था। उन्होंने वीजा अप्लाई किया, तो उनका वीजा जून माह तक बढ़ाया जा चुका था।

यही नहीं, उनके ही संस्थान के अन्य साथी लोकसभा चुनाव की कवरेज कर रहे हैं। ऐसे में अवनी डायस की बनाई पूरी कहानी की जब हवा निकल गई, तब भी ‘विदेशी पत्रकारों’ की एक लॉबी प्रोपेगेंडा फैलाने से बाज नहीं आ रही। कुछ पत्रकारों ने भारत सरकार को एक पत्र लिखा है और अवनी डायस के कथित ‘देश निकाले’ पर विरोध जताया है। हालाँकि अवनी डायस भारत और सनातन विरोधी प्रोपेगेंडा के लिए जानी जाती रही हैं, उनके कई कारनामे पहले भी पकड़े जा चुके हैं।

दरअसल, ये पूरा विवाद खड़ा हुआ मंगलवार (23 अप्रैल 2024) को, जब ऑस्ट्रेलिया की पत्रकार अवनी डायस ने एक्स पर दावा किया कि भारत सरकार ने उनका वीजा नहीं बढ़ाया, इसलिए उन्हें ‘मजबूरी में’ भारत छोड़ना पड़ा। डायस ने दावा किया कि ‘उनकी रिपोर्ट’ भारत सरकार को पसंद नहीं आई, इसलिए ऐसा किया गया। अवनी डायस जनवरी 2022 से नई दिल्ली में हैं और ऑस्ट्रेलियन ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन(एबीसी) की दक्षिण एशिया ब्यूरो चीफ के तौर पर काम कर रही थी।

डायस ने अपने एक्स पोस्ट में लिखा, “पिछले सप्ताह मुझे अचानक भारत छोड़ना पड़ा। मोदी सरकार ने मुझसे ये कहते हुए वर्क वीजा बढ़ाने से इनकार कर दिया कि मेरी खबरें ‘लाइन क्रॉस’ करती हैं। मुझे ये भी बताया गया कि लोकसभा चुनाव की रिपोर्टिंग की भी मान्यता मुझे नहीं मिलेगी। मुझे मतदान के ‘उन’ दिनों में से एक में भारत छोड़ना पड़ा, जिसे मोदी ‘मदर ऑप डेमोक्रेसी’ कहते हैं।”

हालाँकि अवनी डायस ने कहा कि मुझे मेरी फ्लाइट से 24 घंटे पहले 2 माह का वीजा एक्सटेंशन मिल गया था, वो भी ऑस्ट्रेलियाई सरकार के हस्तक्षेप के बाद।

अवनी डायस के इन आरोपों के बाद इंडिया टुडे की पत्रकार गीता मोहन ने उनके सभी दावों की हवा निकाल दी। उन्होंने लिखा, “एबीसी की दक्षिण एशिया संवाददाता अवनी डायस का दावा कि उन्हें चुनाव कवर नहीं करने दिया गया, पूरी तरह से झूठा है और भ्रम फैलाने वाला है। सूत्रों के मुताबिक, वो वीजा नियमों का उल्लंघन करते हुए पकड़ी गई थी। इसके बावजूद उन्होंने जब अनुरोध किया, तब उनका वीजा बढ़ा दिया गया। खासकर चुनाव की कवरेज तक के लिए। उनका पिछला वीजा 20 अप्रैल 2024 तक का ही था। उन्होंने 18 अप्रैल 2024 को वीजा की फीस भरी और उनका वीजा जून के आखिर तक बढ़ा दिया गया। इसके बावजूद उन्होंने 20 अप्रैल को भारत छोड़ने का फैसला किया, जबकि उनके पास वैध वीजा था और उसे बढ़ाया भी जा चुका था।”

उन्होंने आगे लिखा, “रही बात चुनाव कवर करने की अनुमति मिलने की, तो ये बात भी तथ्यात्मक रूप से गलत है। क्योंकि सभी वीजा धारक (विदेशी) पत्रकारों को बूथ के बाहर से चुनाव को कवर करने की अनुमति है। अगर आपको बूथ के अंदर से कवरेज करनी है, तो उसके लिए विशेष अनुमति लेनी पड़ती है। हालाँकि जबतक आपके वीजा के एक्सटेंशन को लेकर प्रक्रिया चल रही हो, तब तक ये अनुमति नहीं दी जाती। ये बात ध्यान देने योग्य है कि एबीसी के अन्य संवाददाताओं मेघना बाली और सोम पाटीदार को पहले ही चुनाव कवरेज के लिए अनमति पत्र मिल चुके हैं।”

गीता मोहन ने साफ कहा कि अवनी जो आरोप लगा रही हैं, वो पूरी तरह से गलत है, क्योंकि उनके साथी चुनाव की कवरेज कर रहे हैं। विदेशी पत्रकार होने के नाते किसी तरह की कोई रोक नहीं लगाई गई है। उनके पास वीजा नहीं था, लेकिन जब उन्होंने वीजा का समय बढ़ाने की अपील की, तो तुरंत उसे बढ़ा दिया गया। ऐसे में उनका दावा पूरी तरह से गलत है।

अवनी डायस के सभी आरोपों की हवा निकलने के बावजूद ‘विदेशी पत्रकारों’ ने एकजुटता प्रदर्शित करने के लिए एक विरोध पत्र लिखा है, जिसे जॉन रीड नाम के पत्रकार ने एक्स पर साझा किया है। जॉन रीड ने लिखा, “खुला पत्र: एबीसी की अवनी डायस, जिन्हें ‘जबरदस्ती’ भारत से रिपोर्टिंग की ‘लाइन क्वॉस’ करने के आरोपों में बाहर निकाल दिया गया, उसपर विदेशी संववादाताओं का विरोध।” इस पत्र पर 30 ‘विदेशी पत्रकारों’ के नाम हैं।

खैर, इस प्रोपेगेंडा से इतर अवनी डायस से जुड़ा एक और मामला भी है। उसने कनाडा में हरदीप निज्जर की हत्या को भारत से जोड़ने की कोशिश करते हुए एक डॉक्यूमेंट्री बनाई थी, जिस पर भारत सरकार रोक लगा चुकी है और यू-ट्यूब पर पर भी उसके मामले में नोटिस दिख रहा है। दरअसल, यो डॉक्यूमेंट्री न सिर्फ तथ्यात्मक रूप से गलत थी, बल्कि भारत के संवेदनशील सीमाई इलाकों में गलत तरीके से फिल्माई गई थी। उन लोकेशन पर शूट करने के लिए गलत तरीके से अनुमति हासिल की गई थी, जिसका बीएसएफ ने भी विरोध किया था।

उस डॉक्यूमेंट्री के निर्माण के समय डायस ने वीजा शर्तों का भी उल्लंघन किया था, जिसके बाद सरकार ने उन्हें चेताया था। अब बताया जा रहा है कि डायस को कोई और नौकरी मिल गई है, ऐसे में उन्होंने ‘नाखून कटाकर बलिदानी’ बनने का फैसला किया है, जो लोगों में सिर्फ भ्रम फैलाने और उसके भारत विरोधी प्रोपेगेंडा का महज एक हिस्सा मात्र भर है।

पहले भी भारत को लेकर प्रोपेगेंडा फैलाती रही हैं अवनी डायस

अवनी डायस भारत विरोधी, सनातन विरोधी लेखों के लिए जानी जाती है। उसने कई बार प्रोपेगेंडा फैलाने की कोशिश की, लेकिन हर बार एक्सपोज होती रही। इसी साल मार्च में अवनी डायस ने ब्रिसबेस में स्थित श्री लक्ष्मी नारायण मंदिर पर खालिस्तानी कट्टरपंथियों के हमले को नकारते हुए कट्टरपंथियों को क्लीनचिट देने की कोशिश की थी। उन्हें इसे हिंदू समूहों का ही हमला करार दे दिया था। उनके दावों को खुद ऑस्ट्रेलियन हिंदू मीडिया ने एक्सपोज कर दिया था। एक फेसबुक पोस्ट में ऑस्ट्रेलियन हिंदू मीडिया ने अवनी डायस और उनकी साथी नाओमी सेल्वारत्नम को ‘ब्राउन सिपाही’ की संज्ञा दी थी।

जनवरी 2024 में अयोध्या में भगवान राम के भव्य मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा को अवनी ने ‘हिंदू वर्चस्ववाद’ कहा था और बड़ी आसानी से हिंदुओं के 500 सालों के संघर्ष, राम मंदिर के इतिहास और उसे आक्रमणकारी बाबर के लोगों द्वारा 1956 में तोड़ने जाने को छिपा लिया था।

यही नहीं, मार्च 2022 में वो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को ‘हिंदू सुप्रीमिस्ट मॉन्क’ भी कहा था। वो सीएए पर भी गलत जानकारियाँ फैलाती हुई पकड़ी जा चुकी है, जिसके बाद उसने अपना ट्वीट भी डिलीट कर दिया था।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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