अर्णब गोस्वामी को आज भी जमानत नहीं: बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा- सत्र न्यायालय में कर सकते हैं आवेदन, जानिए आज क्या हुआ

अर्णब गोस्वामी-अन्वय नाइक केस

रिपब्लिक ग्रुप के एडिटर इन चीफ अर्णब गोस्वामी की जमानत याचिका पर 7 नवंबर को बॉम्बे हाईकोर्ट में सुनवाई हुई। 6 घंटे तक चली सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने जमानत के फैसले को सुरक्षित रख लिया है। अर्णब को अभी हिरासत में ही रहना होगा। फिलहाल, कोर्ट ने अर्णब को राहत देते हुए कहा कि वो चाहें तो लोअर कोर्ट में पिटिशन दाखिल कर सकते हैं। 

हाईकोर्ट ने लोअर कोर्ट से कहा, “अगर इनकी तरफ से याचिका दाखिल की जाती है तो उसपर 4 दिन के अंदर फैसला दे दिया जाए।” अर्णब को 2018 के आत्महत्या के मामले बुधवार को गिरफ्तार किया गया था, जिसके बाद कोर्ट ने उन्हें 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया था। गिरफ्तार और रिमांड के खिलाफ उसने बॉम्‍बे हाईकोर्ट में याचिका दायर की है।

शनिवार (नवंबर 7, 2020) को आयोजित विशेष सुनवाई में, जस्टिस एसएस शिंदे और एमएस कार्णिक की खंडपीठ ने अंतरिम राहत के लिए तत्काल आदेश पारित करने से इनकार कर दिया।

6 घंटे तक चली सुनवाई के बाद पीठ ने कहा, “हम आज आदेश पारित नहीं कर सकते। पहले से ही 6 बज चुके हैं। इस बीच हम यह स्पष्ट करते हैं कि याचिका का लंबित होना याचिकाकर्ता को सत्र न्यायालय में जमानत के लिए आवेदन करने से नहीं रोकता है और यदि ऐसा आवेदन दायर किया जाता है, तो उस पर चार दिनों के भीतर फैसला किया जाना चाहिए।”

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हालाँकि, जब याचिकाकर्ता के वकील, वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने जोर देकर कहा कि याचिकाकर्ता को अंतरिम राहत प्रदान की जाए, तो जस्टिस शिंदे ने संकेत दिया कि अदालत ने आदेश को सुरक्षित रखा है और आने वाले सप्ताह में किसी दिन सुनाएगी। उन्होंने आश्वासन दिया कि अदालत जल्द से जल्द आदेश सुनाएगी।

वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने जगदीश अरोड़ा के बंदी मामले का हवाला दिया, जहाँ सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल प्रशांत कनौजिया को हिरासत से रिहा करने का आदेश दिया था। साल्वे ने तर्क दिया कि कनौजिया के मामले के समान, उनके मुवक्किल अर्णब गोस्वामी को भी जमानत दी जानी चाहिए। हालाँकि, अदालत ने मामले में फैसला देने से इनकार कर दिया।

HC की याचिका में तर्क दिया कि पुलिस के पास रिपोर्ट प्रस्तुत करने के आधार पर 2019 में मजिस्ट्रेट द्वारा मामले में एक क्लोजर आदेश पारित करने के बाद न्यायिक आदेश प्राप्त किए बिना मामले को फिर से खोलने के लिए पुलिस के पास कोई शक्ति नहीं है। बचाव पक्ष के वकीलों ने कहा कि मामले में जाँच फिर से शुरू करने के लिए पुलिस अधिकारियों की कार्रवाई अवैध थी, इसलिए आरोपित को रिहा किया जाना चाहिए।

शुक्रवार (नवंबर 6, 2020) को, अर्णब गोस्वामी के वकील की सुनवाई के बाद बॉम्बे हाईकोर्ट के जस्टिस एसएस शिंदे और एमएस कार्णिक की डिवीजन बेंच ने फिर से रिपब्लिक टीवी के एडिटर-इन-चीफ अर्नब गोस्वामी की याचिका को स्थगित कर दिया है। बता दें, इस याचिका में 2018 के आत्महत्या मामले को रद्द करने की माँग की गई है। अदालत ने कहा कि, कोर्ट को निष्कर्ष पर आने से पहले दूसरे पक्ष को सुनने की जरूरत है। इसी आत्महत्या मामले में अर्णब गोस्वामी को गिरफ्तार किया गया है।। 

बॉम्बे HC ने शुक्रवार को कहा था कि निष्कर्ष पर आने से पहले अदालत को दूसरे पक्ष को सुनने की जरूरत है। अर्नब गोस्वामी ने जेल से अंतरिम रिहाई की भी माँग की। सुनवाई 5 नवंबर को शुरू हुई थी, जिसके एक दिन बाद रायगढ़ अदालत ने पुलिस रिमांड की याचिका खारिज कर दी थी और उसे 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया था।

वहीं अर्णब गोस्वामी की गिरफ्तारी मामले पर शुक्रवार (नवंबर 6, 2020) सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई करते हुए महाराष्ट्र विधानसभा के सचिव को फटकार लगाई है। कोर्ट ने पूरे मामले पर उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी करके उनके पत्र पर उनसे दो हफ्तों में जवाब माँगा। इसके साथ ही कोर्ट ने अर्णब को राहत प्रदान करते हुए उनकी गिरफ्तारी पर रोक लगा दी। कोर्ट ने कहा था कि उन्हें वर्तमान कार्यवाही के बाद गिरफ्तार नहीं किया जाएगा।

अर्णब को मुंबई के इंटीरियर डिजाइनर अन्वय और उनकी माँ को कथित तौर पर आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में 4 नवंबर बुधवार को गिरफ्तार किया गया था। मुंबई पुलिस ने उन्हें न्यायिक सहमति के बिना हिरासत में लिया था। वे 18 नवंबर तक ज्यूडिशियल कस्टडी में हैं। पिछली 3 रातों से उन्हें अलीबाग में बने कोविड सेंटर में रखा गया था।

अर्णब ने दावा किया था कि पुलिस ने उन्हें जूते से मारा। पानी तक नहीं पीने दिया। सुनवाई के दौरान अर्नब के वकील ने कोर्ट में सप्लीमेंट्री एप्लिकेशन लगाई थी।। इसके अलावा अर्णब ने अपने हाथ में 6 इंच गहरा घाव होने, रीढ़ की हड्डी और नस में चोट होने का दावा भी किया है। अर्णब ने कहा कि पुलिस ने गिरफ्तारी करते समय उन्हें जूते पहनने का भी वक्त नहीं दिया। 

गौरतलब है कि गोस्वामी को रायगढ़ पुलिस ने 4 नवंबर की सुबह उनके मुंबई आवास से गिरफ्तार किया था, जिसके बाद अलीबाग के CJM ने उन्हें 18 नवंबर तक के लिए 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया था। कथिततौर पर गिरफ्तारी के समय मुंबई पुलिस ने अर्णब के नाबालिग बेटे से मारपीट और उनके परिजनों से बत्तमीजी भी की थी।

जिस पर HC में दायर याचिका में उठाया गया मुख्य तर्क यह है कि मजिस्ट्रेट द्वारा 2019 में पुलिस को सौंपी गई रिपोर्ट के आधार पर मामले में एक क्लोजर आदेश पारित होने के बाद न्यायिक आदेश प्राप्त किए बिना मामले को फिर से खोलने के लिए पुलिस के पास कोई पावर नहीं है।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया