Saturday, November 16, 2024
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मोदी जीत गए तो क्या हुआ, उसके पंख कतर दिए जाएँगे: कॉन्ग्रेस ने स्वीकारी ‘Moral Victory’

हेराल्ड ने ख़ुद का सबसे ज्यादा मज़ाक तो बंगाल चुनाव का विश्लेषण करते हुए उड़वाया है। लेख का दावा है कि सारे संसाधन और सारी मेहनत झोंकने के बावजूद भाजपा यहाँ तृणमूल से पीछे नज़र आ रही है।

कॉन्ग्रेस ने शायद अब सार्वजनिक रूप से अपनी हार स्वीकार कर ली है। पार्टी के मुखपत्र ‘नेशनल हेराल्ड’ के एक लेख का विश्लेषण करें तो यही पता चलता है। हेराल्ड ने एक लेख लिखा है, जिसका शीर्षक ही यह बताने के लिए काफ़ी है कि कॉन्ग्रेस और उसके लोग लोकसभा चुनाव 2019 के विभिन्न एग्जिट पोल्स के जारी होने के बाद कितने सदमे में हैं। इस लेख का शीर्षक कहता है कि क्या हो जाएगा अगर मोदी जीत भी जाए, उसके पंख को कतर दिए जाएँगे। शीर्षक कहता है कि यह बात मोदी को भी पता है। कुल मिलाकर देखें तो कॉन्ग्रेस अब इसी बात से ख़ुश है कि मोदी-भाजपा की सीटें पिछली बार से कम होंगी (एग्जिट पोल्स के अनुसार)। लेख की शुरुआत ही होती है एग्जिट पोल्स जारी करने वाली एजेंसियों को गाली देने के साथ।

इस लेख में विभिन्न एजेंसियों द्वारा जारी किए गए एग्जिट पोल्स का विश्लेषण करते हुए उनकी सफलता प्रतिशत का जिक्र किया गया है। कहा गया है कि 2014 में बड़े राज्यों के चुनावों में ये अधिकतर बुरी तरह ग़लत साबित हुए थे। वैसे, ये कोई नई बात नहीं है क्योंकि एग्जिट पोल कोई फाइनल नतीजे नहीं होते और इसे मतदाताओं के सैम्पल के आधार पर जारी किया जाता है। अपने दावों की पुष्टि के लिए कॉन्ग्रेस के मुखपत्र ने पार्टी के ‘डाटा एनालिटिक्स विंग’ के प्रमुख का ट्वीट लगाया है। इसके बाद लेख में एग्जिट पोल पर बहस करने वाले एंकरों की तुलना कार्टून से की गई है।

इस लेख को आगे पढ़ते-पढ़ते पता चल जाता है कि लेखक रात भर सोया नहीं है। एजेंसियों को गाली देने से लेकर एंकरों का मज़ाक उड़ाने तक, सब कुछ एक ख़ास अवसाद से ग्रसित होकर लिखा गया लगता है। भाजपा के बड़े नेताओं के बॉडी लैंग्वेज की पड़ताल करने का दावा करते हुए हेराल्ड ने कहा है कि इससे साफ़-साफ़ दिख रहा है कि सब कुछ ठीक नहीं है। उदाहरण के लिए उसने प्रधानमंत्री और भाजपा अध्यक्ष द्वारा की गई प्रेस कॉन्फ्रेंस को लिया है। इसमें कहा गया है कि मोदी ने सारा लाइमलाइट भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को दे दिया। अव्वल तो यह कि अगर मोदी ख़ुद ही बोलते रहते और अमित शाह को बोलने का मौक़ा नहीं मिलता तो कॉन्ग्रेस के सभी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष मुखपत्र भाजपा में लोकतंत्र न होने का रोना रो रहे होते।

मोदी ने अमित शाह को क्यों बोलने दिया, उन्हें क्यों लाइमलाइट दिया, इस पर भी हेराल्ड को आपत्ति है। इसका कारण भी हेराल्ड ने काफ़ी अजीब सा गिनाया है। हेराल्ड के अनुसार, मोदी को कुछ ऐसा पता है जो मेन स्ट्रीम मीडिया को नहीं पता। लेख के अनुसार, मोदी को पता है कि उनकी छवि अब ख़राब होती जा रही है, इसीलिए उन्होंने अमित शाह को बोलने दिया। इससे आगे का कारण हँसी पैदा करने वाला है। लेख में कहा गया है कि मोदी को यह भी पता है कि राहुल गाँधी की छवि काफ़ी अच्छी होती जा रही है, उनका क़द बढ़ता जा रहा है, इसीलिए मोदी प्रेस कॉन्फ्रेंस में चुप रहे। इस कारण में लॉजिक ढूँढने का ज़िम्मा पाठकों पर छोड़ते हुए आगे बढ़ते हैं।

आगे हेराल्ड इस बात पर ताली पीटता है कि उन्हें शिवसेना और जदयू जैसे अस्त-व्यस्त गठबंधन दलों के साथ सरकार चलाने में मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा। हेराल्ड ने लिखा है कि जिन एग्जिट पोल करने वाली एजेंसियों को सबसे ज्यादा पैसे दिए गए, उन्होंने भी भाजपा को उम्मीद से कम सीटें दी हैं। हेराल्ड का सीधा मानना है कि जिस भी न्यूज़ चैनल या एजेंसी ने भाजपा को एग्जिट पोल में ज्यादा सीटें दी, उन्हें पैसे दिए गए थे। हेराल्ड इस बात पर ताली पीटने में ही व्यस्त है कि मोदी गठबंधन साथियों के साथ उतनी स्वतंत्रता से सरकार नहीं चला पाएँगे, जैसा उन्होंने पिछले पाँच वर्षों में किया था।

कॉन्ग्रेस यहाँ अपनी हार मानती नज़र आ रही है और इसी बात से ख़ुश है कि राजग को बहुमत मिला तो क्या हो गया, सरकार ठीक से थोड़ी न चल पाएगी, हेराल्ड को उम्मीद है कि गठबंधन साथी तो ज़रूर परेशान करेंगे। अर्थात, अब कॉन्ग्रेस अपनी हार से दुःखी नहीं है लेकिन मोदी को थोड़ी परेशानी तो होगी, इस उम्मीद में ख़ुश है। लेकिन, हेराल्ड ने ख़ुद का सबसे ज्यादा मज़ाक तो बंगाल चुनाव का विश्लेषण करते हुए उड़वाया है। लेख का दावा है कि सारे संसाधन और सारी मेहनत झोंकने के बावजूद भाजपा यहाँ तृणमूल से पीछे नज़र आ रही है। असल में जिन्हें भी राजनीति की जरा भी समझ है, उन्हें पता है कि बंगाल में अगर भाजपा को 10 सीटों के क़रीब भी मिलती है तो यह बड़ी सफलता है, एग्जिट पोल्स में तो 23 तक दिए गए हैं।

बंगाल में कभी बराबर की लड़ाई तो थी ही नहीं। यह वहाँ सत्ता पर काबिज ममता बनर्जी, उनकी पूरी सरकारी मशीनरी और गुंडागिरी में दक्ष पार्टी कार्यकर्ताओं से एक ऐसी पार्टी की लड़ाई थी, जिसका राज्य में अब से पहले कोई कैडर ही नहीं था। बावजूद इसके भाजपा के अच्छे प्रदर्शन को Downplay कर के दिखाने के चक्कर में नेशनल हेराल्ड अपनी राजनीतिक नासमझी का परिचय दे रहा है। कॉन्ग्रेस के मुखपत्र का यह भी दावा है कि दमदम, जौनपुर और आजमगढ़ की रैलियों में पीएम मोदी को जनता से ठंडी प्रतिक्रिया मिली। अगर दमदम में मोदी की रैली फ्लॉप रही तो तृणमूल के गुंडों ने रैली के तुरंत बाद वहाँ से भाजपा प्रत्याशी मुकुल रॉय पर हमला क्यों किया?

आजमगढ़ और जौनपुर के सपा और बसपा का गढ़ होने के बावजूद मोदी की रैली में यहाँ अच्छी-ख़ासी भीड़ जुटी और नेशनल हेराल्ड के दावे यहाँ भी झूठे साबित होते हैं। मोदी ने जनता के रुख को देखते हुए सातवें चरण के मतदान के दौरान केदारनाथ का दौरा किया, ऐसा नेशनल हेराल्ड का दावा है। इसके बाद इसने भी लिबरलों के उसी मुद्दे को उठाया, पीएम मोदी जब मंदिर में गए तो रेड कार्पेट क्यों बिछाया गया, कैमरे उनके साथ क्यों थे, वगैरह-वगैरह। इस बारे में हमने भी एक लेख प्रकाशित किया था, जिसमें इस बात पर चिंतन किया गया था किचश्मा पहन कर ध्यान लगाने को लेकर गिरोह विशेष के निशाने पर आए मोदी को अपनी आध्यात्मिक साधना कैसे करनी चाहिए और क्या-क्या पहनना चाहिए, वे वामपंथी भी अब इस पर चर्चा कर रहे हैं, जिन्हें सनातन हिन्दू परंपरा पर कोई विश्वास ही नहीं।

नेशनल हेराल्ड लेख का अंत होते-होते कॉन्ग्रेस की ‘मोरल जीत’ स्वीकार कर लेता है और भाजपा सरकार ठीक से तो चला नहीं पाएगी, इस उम्मीद में ख़ुश होने की झूठी कोशिश करता है। इसके बाद चुनाव आयोग की आलोचना का भी सिलसिला शुरू हो जाता है, जिसमें पूछा जाता है कि मोदी को केदारनाथ दौरे की अनुमति क्यों दी गई? नेशनल हेराल्ड की चले तो किसी व्यक्ति को अपनी व्यक्तिगत धार्मिक आस्था के लिए मंदिरों के दर्शन के भी लाले पड़ जाएँ। इस लेख का विश्लेषण इसीलिए ज़रूरी था, क्योंकि कॉन्ग्रेस ने अपनी नैतिक जीत स्वीकार करते हुए भाजपा के गठबंधनों से यह उम्मीद रखी है कि वो मोदी को सरकार चलाने के दौरान परेशान करें।

नेशनल हेराल्ड ने मोदी की जीत को ‘Pyrrhic Victory’ कहा है। इसका अर्थ हुआ कि ऐसी जीत, जो हार के बराबर हो (सम्राट अशोक के कलिंग विजय की तुलना इससे कर सकते हैं, इसका अर्थ हुआ कि ऐसी जीत जिसमें विजेता को भारी नुकसान का सामना करना पड़ा हो)। नेशनल हेराल्ड को उम्मीद है कि मोदी जीत कर भी हार सकते हैं। ऐसे शब्दों के चयन के साथ ही नेशनल हेराल्ड ने जता दिया है कि आएगा तो मोदी ही।

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अनुपम कुमार सिंह
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भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

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