सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार (सितंबर 15, 2020) को सुदर्शन न्यूज के कथित विवादित कार्यक्रम ‘नौकरशाही में मुस्लिमों की घुसपैठ’ पर सुनवाई की। इस पीठ का नेतृत्व न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ ने किया। इस दौरान जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि कल के बाद फिर से इस मामले पर विचार किया जाएगा। इसके साथ ही सुदर्शन टीवी पर अगली सुनवाई तक प्रसारण को स्थगित कर दिया गया।
वरिष्ठ वकील दिवान ने इस पर दलील देते हुए कहा, “मैं इसे प्रेस की स्वतंत्रता के रूप में दृढ़ता से विरोध करुँगा। कोई पूर्व प्रसारण प्रतिबंध नहीं हो सकता है। हमारे पास पहले से ही चार प्रसारण हैं, इसलिए हम विषय को जानते हैं। यदि यह एक पूर्व संयम आदेश है तो मुझे बहस करनी होगी। विदेशों से धन पर एक स्पष्ट लिंक हैं।”
जस्टिस चंद्रचूड़ ने आगे कहा, “हम इस बात को लेकर चिंतित हैं कि जब आप कहते हैं कि जामिया मिलिया के छात्र सिविल सेवाओं में घुसपैठ करने वाले समूह का हिस्सा हैं, तो फिर हम बर्दाश्त नहीं कर सकते। देश के सर्वोच्च न्यायालय के रूप में, हम आपको यह कहने की अनुमति नहीं दे सकते कि मुस्लिम सिविल सेवाओं में घुसपैठ कर रहे हैं। आप यह नहीं कह सकते कि पत्रकार को यह करने की पूर्ण स्वतंत्रता है।”
वहीं जस्टिस केएम जोसेफ ने कहा, “हमें विजुअल मीडिया के स्वामित्व को देखने की जरूरत है। कंपनी का संपूर्ण शेयर होल्डिंग पैटर्न जनता के लिए साइट पर होना चाहिए। उस कंपनी के राजस्व मॉडल को यह जाँचने के लिए भी रखा जाना चाहिए कि क्या सरकार एक में अधिक विज्ञापन डाल रही है और दूसरे में कम।”
Justice Joseph: Media can’t fall foul of standards prescribed by themselves. Next in debates one needs to see the role of anchor. How one listens when others speak But check in the TV debates the percentage of time taken by anchor to speak. They mute the speaker and ask questions
— Bar & Bench (@barandbench) September 15, 2020
Justice Joseph: The freedom of media is on behalf of the citizens.
— Bar & Bench (@barandbench) September 15, 2020
उन्होंने आगे कहा कि मीडिया खुद के द्वारा निर्धारित मानकों की बेईमानी नहीं कर सकता। डिबेट में एंकर की भूमिका देखने की जरूरत है। जब कोई बोलता है, तो उसे सुनना चाहिए। मगर जब हम टीवी डिबेट को देखते हैं, तो एंकर सबसे अधिक समय लेता है। वह वक्ता की आवाज को म्यूट करके सवाल पूछते हैं। उनका कहना था कि मीडिया की स्वतंत्रता नागरिकों की ओर से है।
Justice Chandrachud: power of electronic media is huge. The electronic media can become focal point by targeting particular communities or groups. The anchors grievance is that a particular group is gaining entry into civil services. How insidious is this?
— Bar & Bench (@barandbench) September 15, 2020
जस्टिस चंद्रचूड़ आगे कहते हैं, “इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की शक्ति बहुत बड़ी है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया विशेष समुदायों या समूहों को लक्षित करके केंद्र बिंदु बन सकता है। एंकरों की शिकायत यह है कि एक विशेष समूह सिविल सेवाओं में प्रवेश प्राप्त कर रहा है। यह कितनी धूर्तता है?”
Justice Chandrachud: Such insidious charges also puts a question mark on the UPSC exams. Aspersions have been casr on UPSC. Such allegations without any factual basis, how can this be allowed? Can such programs be allowed in a free society?
— Bar & Bench (@barandbench) September 15, 2020
उन्होंने आगे यह भी कहा, “इस तरह के धूर्त आरोप यूपीएससी परीक्षाओं पर प्रश्न चिन्ह लगाते हैं। बिना किसी तथ्यात्मक आधार के ऐसे आरोप लगाने की अनुमति कैसे दी जा सकती है? क्या मुक्त समाज में ऐसे कार्यक्रमों की अनुमति दी जा सकती है?”
सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने इस पर दलील देते हुए कहा, “पत्रकार की स्वतंत्रता सर्वोच्च है। जस्टिस जोसेफ के बयानों के दो पहलू हैं। इस तरह से प्रेस को नियंत्रित करना किसी भी लोकतंत्र के लिए विनाशकारी होगा।”
SG: There is also a parallel media other than electronic media where a laptop and a journalist can lead to lakhs of people viewing their content.
— Bar & Bench (@barandbench) September 15, 2020
Justice Chandrachud: we are not on social media today. we cannot choose not to regulate one thing because we cannot regulate all
उन्होंने आगे कहा, “इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के अलावा एक समानांतर मीडिया भी है जहाँ एक लैपटॉप और एक पत्रकार लाखों लोगों को अपनी सामग्री पहुँचा सकते हैं। मैं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और प्रिंट मीडिया के बारे में बात कर रहा हूँ। पत्रकार की स्वतंत्रता को सम्मान देकर जस्टिस जोसेफ की चिंताओं को दूर किया जाना चाहिए। बड़ी संख्या में वेब पोर्टल हैं, जिनका स्वामित्व उनके द्वारा दिखाए जाने वाले कार्यों से भिन्न है।”
Justice Joseph: When we talk about journalistic freedom, it is not absolute. He shares same freedom as like other citizens. There is no separate freedom for journalists like in the US. We need journalists who are fair in their debates
— Bar & Bench (@barandbench) September 15, 2020
जस्टिस जोसेफ का कहना था, “जब हम पत्रकारिता की स्वतंत्रता की बात करते हैं, तो यह निरपेक्ष नहीं है। वह अन्य नागरिकों की तरह ही स्वतंत्रता साझा करता है। अमेरिका की तरह भारत में पत्रकारों की कोई अलग स्वतंत्रता नहीं है। हमें ऐसे पत्रकारों की जरूरत है जो अपनी डिबेट में निष्पक्ष हों।”
गौरतलब है कि दिल्ली हाई कोर्ट ने सुदर्शन न्यूज की ‘नौकरशाही में मुस्लिमों की घुसपैठ’ वाली कथित रिपोर्ट के प्रसारण पर रोक लगा दी थी। शुक्रवार 28 अगस्त 2020 को रात आठ बजे इसका प्रसारण होना था। जामिया के छात्रों ने इस पर रोक लगाने को लेकर हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। उनका कहना था कि यह रिपोर्ट समुदाय के खिलाफ घृणा को बढ़ावा देती है।