सेना ने कश्मीर में हिजबुल मुजाहिद्दीन के सबसे बड़े आतंकी रियाज नायकू (Riyaz Naikoo) को मार गिराया। यह कोई छुपी हुई बात नहीं है कि भारत में मौजूद वामपंथी वर्ग के हृदय में हमेशा ही इन इस्लामिक कट्टरपंथी आतंकवादियों के प्रति स्नेह और ममता का भाव पलता रहा है। इसका प्रदर्शन वामपंथी मीडिया गिरोह हर आतंकवादी के मार गिराए जाने के बाद करता भी रहा है।
आतंकवादी नहीं ‘ओपरेशन चीफ़’ रियाज नाइकू
The Wire (द वायर) से लेकर बीबीसी, NDTV आदि मीडिया गिरोह अक्सर आतंकवादियों के मानवीय पक्ष (यदि यह होता भी है) को जबरन साबित करने का प्रयास करते रहते हैं। लेकिन रियाज नायकू (Riyaz Naikoo) की मौत के बाद बेहद मामूली परिवर्तन मीडिया गिरोहों के स्वरों में देखने को मिला है।
यह बदलाव बस आतंकवादियों को ‘शहीद’ होने की जगह ‘मारने’ जैसे शब्दों को इस्तेमाल करने को लेकर है। लेकिन द वायर जैसे मीडिया गिरोहों की कलम आज भी हिजबुल कमांडर रियाज नायकू को ‘आतंकवादी’ कहने से कतराती है। आतंकवादी के स्थान पर द वायर ने रियाज़ नायकू के लिए रिपोर्ट के भीतर ‘ऑपरेशनल चीफ़‘ शब्द का प्रयोग किया है।
इस बार इन्डियन एक्सप्रेस ने भी आतंकवादियों की शिक्षा, पेंशन, दिनचर्या पर गद्य लिखकर सस्ती लोकप्रियता बटोरने में पहल की है।
‘द वायर’ ने रियाज नायकू की मौत की खबर तो प्रकाशित की, लेकिन कहीं भी यह जिक्र नहीं किया है कि वह एक आतंकवादी था, जिसका पहला लक्ष्य भी हर दूसरे आतंकी की तरह ही जिहाद था।
आतंकवादियों में चाहे घाटी में जिहाद की चाह रखने वाले और अपनी गर्लफ्रेंड में से ही एक की बेवफाई से मारा गया बुरहान वानी हो, जाकिर मूसा हो, लश्कर-ए-तैयबा का आतंकी अबू दुजाना हो या चाहे अन्य कोई जन्नत उल फिरदौस में आराम फरमा रहा जिहादी हो, ‘द वायर’, NDTV आदि ने हमेशा ही इन्हें आतंकवादी कहने से परहेज किया है।
आश्चर्यजनक रूप से आज NDTV ने रियाज नाइकू के लिए आतंकवादी शब्द का प्रयोग किया है। वास्तव में देखा जाए तो जब NDTV किसी आतंकी को आतंकी कहता है, तो बड़ी खबर उस आतंकवादी की मौत नहीं बल्कि NDTV जैसों की बहादुरी बन जाती है।
घाटी में मौजूद आतंकवादियों का महिमामंडन और उन्हें पीड़ित, बेचारा, आदि-आदि साबित करने का यह अभियान बरखा दत्त जैसे कथित पत्रकारों से शुरू हुआ था। इस कतार में फिर ओसामा बिन लादेन जैसे आतंकवादियों को एक ‘आदर्श पिता’ की तरह पेश करने वाले ‘द क्विंट’ आदि भी शामिल होते रहे।
लेकिन अब बरखा एंड कम्पनी को प्रतिस्पर्धा अपने ही खेमे से मिलती नजर आने लगी है। यह इस कारण कि उनकी लीग में अब Huffpost आदि गिरोह भी अपनी आहुति देने लगे हैं। हफ़पोस्ट के लेखक अज़ान जावेद ने तो साल 2018 में ही रियाज नाइकू के एक गणित का टीचर होने से हिजबुल मुखिया बनने तक के इस मार्मिक घटना पर साहित्य लिख डाला था।
वास्तविक दुर्भाग्य यह है कि शायद ‘जमात-ए-प्रोपेगेंडा’ यानी, द वायर, क्विंट, NDTV, बीबीसी आदि आतंकवादियों के नाम के आगे इस कारण भी ‘आतंकी’ जैसी उपमा नहीं लगाते हैं, क्योंकि ये जानते हैं कि वास्तविक आतंकी बन्दूक वाले नहीं बल्कि कलम वाले वामपंथी प्रोपेगेंडा गिरोह हैं।