Friday, November 15, 2024
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भारत में कोरोना ने क्यों नहीं मचाई तबाही, मोदी घृणा से सना NYT तलाश रहा रहस्य

पश्चिमी मीडिया में इतनी जलन की भावना क्यों है। दरअसल, वे चाहते थे कि भारत में कोरोना वायरस तेज़ी से फैले, ताकि वो मोदी सरकार को कोस सकें। भारत का मजाक बना सकें। बता सकें कि यहाँ किस कदर अराजकता फैली हुई है और लोग जानवरों की भाँति मर रहे हैं। उन्हें ये मौका नहीं मिलने का अफ़सोस है।

चीन के वुहान से कोरोना वायरस का संक्रमण शुरू हुआ था। दुनिया के करीब 150 देश इसकी चपेट में हैं। 5900 के करीब जानें जा चुकी हैं। इस वैश्विक महामारी से अब तक जिस तरीके से भारत निपटा है उसकी दुनिया भर में तारीफ हो रही है। लेकिन, एक वर्ग ऐसा भी है जो इस बात से निराश है कि कोरोना अब तक भारत में तबाही क्यों नहीं मचा पाया। इस वर्ग में न्यूयॉर्क टाइम्स जैसे कुछेक मीडिया संस्थान भी हैं। मोदी घृणा से सने इस संस्थान को कोरोना का प्रसार रोकने के लिए भारत सरकार की ओर से उठाए गए कदमों में कुछ नहीं दिखता। उसे तो यह रहस्य लगता है कि दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाले देश में संक्रमण बेहद सीमित क्यों है।

न्यूयॉर्क टाइम्स के एक लेख के अनुसार भारत कोरोना वायरस के ख़तरे से निपटने के लिए संघर्षशील है। अब तक उसके प्रयासों का परिणाम अच्छा रहा है। वो लिखता है कि अब तक भारत में कोरोना वायरस के महज सवा सौ केस ही आए हैं और ये एक रहस्य ही है कि 130 करोड़ की जनसंख्या वाला देश अब तक इस खतरे से अछूता ही रहा है। वो भी तब, जब इसके पूर्व और पश्चिम में हाहाकार मचा हुआ है। ऑस्ट्रेलिया और चीन इससे ज्यादा दूर नहीं हैं।

एनवाइटी के इस लेख की बात करने से पहले प्रमुख ऑस्ट्रेलियाई मीडिया संस्थान एबीसी के दक्षिण एशियाई कॉरस्पोंडेंट जेम्स ओटेन के कहे पर गौर करिए। उन्हीं की बातों में एनवाइटी के दर्द का कारण छिपा हुआ है। उन्होंने एबीसी के एक लेख के माध्यम से बताया है कि वो भारत में अपने देश ऑस्ट्रेलिया से ज्यादा सुरक्षित महसूस कर रहे हैं। मार्च की शुरुआत में जब देश में कोरोना वायरस के मात्र 6 मामले आए थे, तभी भारत ने जापान, दक्षिण कोरिया, इटली और ईरान के लिए अपनी सीमाओं को बंद कर दिया था। 12 मार्च को जैसे ही मरीजों की संख्या 70 हुई, सभी देशों से आने वाले नागरिकों के वीजा को अस्थायी रूप से निष्प्रभावी कर दिया गया।

जेम्स लिखते हैं कि जब ऑस्ट्रेलिया ‘मास गैदरिंग’ के लिए निर्णय लेने में माथापच्ची कर रहा था, तभी भारत ने एक जगह पर भीड़ न जुटने को लेकर सलाह दी और आदेश जारी कर दिया। दिल्ली सहित कई बड़े शहरों में स्कूल और सिनेमा हॉल्स में ताले जड़ दिए गए। हाँ, भारत को पता था कि इससे देश की अर्थव्यवस्था को नुकसान हो सकता है लेकिन लोगों की जान बचाने के लिए मोदी सरकार ने स्वास्थ्य को अर्थ से ऊपर रखा। जेम्स ने याद दिलाया है कि कैसे क्रिकेट के प्रति भारत में इतना पागलपन और लेकर जूनून होने के बावजूद लोकप्रिय टी-20 लीग की तारीख आगे बढ़ा दी गई।

जेम्स की बातों से पता चलता है कि NYT जैसे पश्चिमी मीडिया में इतनी जलन की भावना क्यों है। दरअसल, वे चाहते थे कि भारत में कोरोना वायरस तेज़ी से फैले, ताकि वो मोदी सरकार को कोस सकें। भारत का मजाक बना सकें। बता सकें कि यहाँ किस कदर अराजकता फैली हुई है और लोग जानवरों की भाँति मर रहे हैं। उन्हें ये मौका नहीं मिलने का अफ़सोस है।

इसी बहाने उन्हें होली को गालियाँ देने का मौका मिल जाता और वो एक हिन्दू त्यौहार के बहाने पूरे हिंदुत्व को मानवता के लिए ख़तरा बताने से बाज नहीं आते। हाँ, इस पर वो ज़रूर चुप हैं कि दक्षिण कोरिया में शिनचियोंजी चर्च के कारण जो कोरोना वायरस से पूरा देश तबाह हुआ है, उसकी जवाबदेही कौन लेगा? कई ऐसी मस्जिदें हैं, जिन्हें अभी भी बंद नहीं किया गया है। विदेशी प्रोपेगेंडा पोर्टलों को भारत सरकार और भारत को गाली देने का मौका नहीं मिल पाया। एबीसी ने अपने लेख में बताया है कि किस तरह लोगों ने सावधानी से होली खेली और वायरस भी नहीं फैला।

यहाँ कुछ सनकी लोगों द्वारा गोमूत्र की पार्टी की गई, जिनका जुड़ाव समाजवादी पार्टी जैसे दलों से रहा है। उन्हें पूरी भारत का चेहरा बता कर पेश किया जा रहा है। क्योंकि मीडिया के इस वर्ग के पास अब गाली देने के लिए कुछ बचा नहीं है। शाहीन बाग़ का महिमामंडन करते-करते अब वो थक चुके हैं। दंगों में निर्दोष हिन्दुओं के कत्लेआम की बात लोगों की जुबान पर हैं। इस असफलता से बौखलाए एनवाइटी जैसे संस्थानों को ये भी पता चल गया है कि कोरोना वायरस को लेकर विशेषज्ञों की सलाहों को सबसे ज्यादा यही प्रदर्शनकारी धता बता रहे हैं।

दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास वो क्षमता है, जिससे वो किसी साधारण से कार्य को भी जनांदोलन में परिवर्तित करने की क्षमता रखते हैं। जब उन्होंने झाड़ू पकड़ी तो स्वच्छता अभियान घर-घर में आंदोलन की तरह बन गया। इसी तरह जब उन्होंने अपने सोशल मीडिया हैंडल्स के जरिए जागरूकता फैलानी शुरू की तो लोगो ने बचाव व सावधानी के लिए बताए गए उन उपायों पर अमल किया। विदेश में फँसे भारतीय नागरिकों को वापस वतन लाने में विदेश मंत्रालय ने तो तत्परता दिखाई, उससे भी विदेशी मीडिया का ये वर्ग ख़ासा नाराज़ है।

‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ दबे जबान से मानता है कि जल्दी से प्रभावी कार्रवाई करने के कारण भारत में कोरोना वायरस के कम मामले हो सकते हैं, लेकिन साथ ही कथित विशेषज्ञों के हवाले से ये भी दावा करना नहीं भूलता कि इतनी कम संख्या तो डिटेक्ट हुए मामलों की है। कई मामले ऐसे होंगे जो टेस्टिंग सेंटर तक पहुँचे ही नहीं। लेकिन, ऐसे केस तो सभी देशों में हो सकते हैं? जब बात तुलनात्मक रूप से की जा रही है फिर पक्षपात क्यों? यूरोप के कई देशों के अस्पतालों में बिस्तर कम पड़ रहे हैं और कई लोगों को लौटा दिया गया, जबकि वहाँ हेल्थकेयर सिस्टम सबसे अच्छा माना जाता रहा है।

दिक्कत ये है कि भारत सरकार के प्रयासों ने इन प्रोपेगेंडा संस्थानों को चित कर दिया है। अब तक सब सही है और आगे भी आशा है कि सब ठीक ही रहेगा। इसके बाद तमाम भौगोलिक और वैज्ञानिक कारण के नाम पर बकैती की जाएगी कि भारत में कोरोना क्यों नहीं फैला? देश की तैयारियों को कमतर करने के लिए अलग-अलग तकनीकी टर्म्स गढ़े जाएँगे। ये निराश मीडिया संस्थान चुप नहीं बैठेंगे, तैयार रहिए।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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