Sunday, October 6, 2024
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मजहबी मर्द न छेड़छाड़ कर सकते हैं, न ही बलात्कार: तबलीगी जमात की नंगई का स्तंभकार ने किया बचाव

"मैं तबलीगी जमात के विचारों का प्रशंसक नहीं हूँ, लेकिन जिस किसी ने भी उनके साथ समय बिताया है, उनको पता है कि उनका रुढ़िवाद महिलाओं के लिए कितना उपयुक्त और पवित्र है। तबलीगी जमात के सदस्यों द्वारा अभद्रता की बातें झूठी हैं, नीचता से भरी है।"

तबलीगी जमात की लापरवाही ने भारत की बड़ी आबादी को कोरोना वायरस से बचाने की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और देश के स्वास्थ्यकर्मियों की कोशिशों पर काफी हद तक पानी फेर दिया है। देशव्यापी लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग के जरिए कोरोना वायरस संक्रमण पर काफी हद तक लगाम लगाने की उम्मीद थी, मगर अब आलम यह है कि तबलीगी जमात से जुड़े कोरोना वायरस मामले में लगातार वृद्धि देखने को मिल रही है।

तब्लीगी जमात द्वारा आयोजित मजहबी धर्मसभा में देश के विभिन्न हिस्सों के साथ-साथ विदेशों से भी तकरीबन 1500 लोगों ने हिस्सा लिया था। इस मजहबी सभा में भाग लेने वाले लोगों में से 10 की कोरोना वायरस की वजह से मौत भी हो चुकी है, वहीं 400 से अधिक तबलीगी जमात के सदस्यों का कोरोना टेस्ट पॉजिटिव आया है। दक्षिणी दिल्ली स्थित निजामुद्दीन मरकज भारत के विभिन्न भागों में कोरोना वायरस फैलने का एक केंद्र बन गया है। अभी तक तबलीगी जमात से जुड़े लगभग 9000 लोगों की पहचान कर क्वारंटाइन किया जा चुका है।

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अब ये जाहिल जमाती इलाज के दौरान महिला मेडिकल स्टाफ के साथ बदतमीजियाँ कर रहे हैं और डॉक्टरों के ऊपर थूक कर उन्हें संक्रमित करने की बेहूदी कोशिश कर रहे हैं। एक तरफ जहाँ पूरा देश इन तबलीगी जमात द्वारा फैलाए गए संकट से लड़ने में जुटा है, वहीं दूसरी तरफ इतना बड़ा क्राइम करने के बाद भी ये लोग अपनी बेहूदगी से बाज नहीं आ रहे। गाजियाबाद और कानपुर समेत कई जगहों से इनके द्वारा महिला स्टाफ के साथ बदतमीजियाँ की खबरें सामने आई। गाजियाबाद के एमएमजी हॉस्पिटल के आइसोलेशन वार्ड में रखे गए तबलीगी जमाती बिना कपड़ों, पैंट के नंगे घूम रहे थे, अश्लील वीडियो चलाने के साथ ही ये जमाती नर्सों को गंदे-गंदे इशारे कर रहे थे और नर्सों से बीड़ी-सिगरेट की माँग भी कर रहे थे।

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जैसे ही यह खबर सामने आई, इस्लामी कट्टरपंथियों की वकालत करने वाला समूह सक्रिय हो गया। इनको हमेशा माफ कर देने वाले समूह ने इनके समर्थन में उतरकर उनके बचाव की भरपूर कोशिश की। इन्हीं में से एक थे- वॉल स्ट्रीट जर्नल (WSJ) के स्तंभकार सदानंद धुमे। उन्होंने ये साबित करने का भरसक प्रयास किया कि देश को कोरोना संकट में डालने वाले तबलीगी जमात के सदस्य निर्दोष हैं।

सदानंद धुमे ने द वायर की पत्रकार आरफा खानम शेरवानी, जिन्होंने भी तबलीगी जमात के सदस्यों का बचाव किया और नर्सों पर झूठ बोलने का आरोप लगाया, के ट्वीट पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि वो तबलीगी जमात के विचारों के प्रशंसक नहीं है, लेकिन जिस किसी ने भी उनके साथ समय बिताया है, उनको पता है कि उनका रुढ़िवाद महिलाओं के लिए कितना उपयुक्त और पवित्र है। सदानंद धुमे यहीं पर नहीं रुके। उन्होंने आगे यह भी आरोप लगाया कि तबलीगी जमात के सदस्यों के अभद्रता की बातें झूठी हैं और सामान्य तौर पर समुदाय विशेष को बरगलाने की यह कोशिशें नीचता से परे है।

दरअसल धुमे अपने ट्वीट के माध्यम से यह कहना चाह रहे थे कि सबसे पहली बात तो ये कि मजहबी मर्द न तो छेड़छाड़ कर सकते हैं और न ही बलात्कारी हो सकते हैं और दूसरी बात उन्होंने कही कि जिन नर्सों ने तबलीगी जमात के सदस्यों के खिलाफ दुर्व्यवहार की शिकायत की थी, वे झूठ बोल रही थीं क्योंकि वो समुदाय विशेष की छवि को धूमिल करना चाहती थीं। धुमे ने समुदाय विशेष के लोगों को धार्मिक पुरुष साबित करने की कोशिश और उनके बचाव में नर्सों द्वारा लिखित शिकायत को नकार दिया।

इन जाहिलों और अशिष्ट व्यक्तियों के बचाव में उतरने पर कई लोगों ने उन्हें आड़े हाथों लिया। लोगों ने ना सिर्फ उनसे कट्टरपंथी इस्लाम के लिए माफी माँगने के लिए कहा, बल्कि उन्हें महिला के खिलाफ हो रहे अपराध के लिए भी जिम्मेदार ठहराया।

प्रत्याशा रथ नाम की एक ट्विटर यूजर ने कहा कि धूमे ने पीड़ितों को मजहबी कट्टरता के साथ दोषी ठहराया। उन्होंने कहा कि धूमे पीड़ितों पर अपने कथित अनुभवों के आधार पर दोषारोपण कर रहे हैं और उस अनुभव के कारण, वह इस बात की उपेक्षा कर रहे हैं कि उन पीड़िता के साथ दुर्व्यवहार किया गया, जो अपनी सुरक्षा की परवाह किए बिना ईलाज कार्य में जुटे थे।

ऋषा नाम की एक अन्य यूजर ने लिखा, “यह मानसिकता ही एकमात्र कारण है, जिसकी वजह से कई मामलों में इन धर्मगुरुओं द्वारा बलात्कार करते हुए देखा जाता है। हाँ, वे सभी सार्वजनिक स्थान पर अपनी कामुकता के बारे में आपसे अधिक पवित्र दिखते (दिखने की कोशिश करते हैं) हैं, फिर अपने पीड़ितों को यह कहते हुए ब्लैकमेल करते हैं कि “तुम पर विश्वास कौन करेगा”।”

दिलचस्प बात यह है कि ऋषा की यह बातें काफी प्रांसगिक हैं, क्योंकि धुमे ने मी टी मूवमेंट के दौरान भी अपनी इस मानसिकता का परिचय दिया था। हालाँकि उस समय उन्होंने धर्मगुरुओं के बारे में नहीं बोला था, लेकिन महिलाओं को लेकर अपनी मानसिकता दर्शाई थी। उन्होंने कहा था कि महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार करने वाले शक्तिशाली पुरुष कैसे दूर हो जाते हैं क्योंकि महिलाएँ डर जाती हैं। पुरुषों के पास शक्ति थी और इसीलिए महिलाओं ने बात नहीं की क्योंकि उन्हें डर था कि शक्तिशाली पुरुषों के खिलाफ उनके आरोपों पर विश्वास नहीं किया जाएगा। अब धुमे अपनी इसी मानसिकता को आगे बढ़ाते हुए तबलीगी जमात के कट्टरपंथी इस्लामियों को बचाने के लिए इसका इस्तेमाल कर रहे हैं।

सदानंद धुमे ने अपने ट्वीट में कहा कि चूँकि उन्होंने तबलीगी जमात के कुछ लोगों से मुलाकात की है और उनके अनुसार वो लोग ‘पवित्र’ थे, तो इसका मतलब ये है कि तबलीगी जमात का कोई भी सदस्य महिलाओं के साथ छेड़छाड़ नहीं कर सकता है। इसलिए महिलाएँ झूठ बोल रही हैं।

दरअसल 2011 का एक मामला ही साबित करता है कि वास्तव में धूमे का ज्ञान कितना छिछला, तुच्छ और अधूरा है। 2011 में टोरंटो में एक इमाम पर यौन उत्पीड़न के लिए 13 मामलों के तहत आरोप लगाया गया था। 48 वर्षीय मोहम्मद मसरूर ने एक इमाम के रूप में काम किया और कई देशों का दौरा किया था, जिसमें बच्चों और युवाओं को कुरान की शिक्षा दी थी। पुलिस ने अपनी जाँच में मसरूर के पास से उसके खुद के पासपोर्ट के अलावा तीन अन्य नाम का पासपोर्ट पाया था। मसरूर के खिलाफ पाँच पूर्व छात्राओं ने खिलाफ दुर्व्यवहार के 13 आरोप लगाए गए थे। जानकारी के मुताबिक इमाम तबलीगी जमात का सदस्य था, जिसका उद्देश्य इस्लामिक आंदोलन को जमीनी स्तर पर चलाना था। यह आंदोलन काफी हद तक बांग्लादेश में सक्रिय है।

दरअसल इमामों और मौलवियों द्वारा बलात्कार और नाबालिग का यौन उत्पीड़न करने वाले इतने मामले सामने आए हैं कि एक थीसिस हो सकती है, और शायद इस पर लिखा जाना चाहिए कि इस्लामिक धर्मगुरु महिलाओं और नाबालिग लड़कों के खिलाफ अपराधों में लिप्त क्यों होते हैं। हालाँकि तबलीगी जमात के सदस्यों को बचाने की इनकी ये कोशिश दिखाती है कि ये सच्चाई को देखना ही नहीं चाहते हैं।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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