हाल में कई रिपोर्टें आई हैं जो बताती हैं कि नेपाल भारत बॉर्डर पर तेजी से डेमोग्राफी में बदलाव हो रहा है। मस्जिद-मदरसों की संख्या लगातार बढ़ रही है। जमीनी हालात का जायजा लेने के लिए 20 से 27 अगस्त 2022 तक ऑपइंडिया की टीम ने सीमा से सटे इलाकों का दौरा किया। हमने जो कुछ देखा, वह सिलसिलेवार तरीके से आपको बता रहे हैं। इस कड़ी की 18वीं रिपोर्ट:
श्रावस्ती और बलरामपुर जिलों में मुस्लिम आबादी के साथ इबादतगाहों पर रिपोर्ट के बाद हमने अपना रुख नेपाल सीमा से सटे सिद्धार्थनगर जिले की तरफ किया। सिद्धार्थनगर में हमने बलरामपुर जिले के पचपेड़वा मार्ग से प्रवेश किया।
यह रिपोर्ट एक सीरीज के तौर पर है। इस पूरी सीरीज को एक साथ पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।
सिद्धार्थनगर जिले में भी हमें सड़क पर और बाजारों में दिखने वाली इबादतगाहों की संख्या कमोबेश श्रावस्ती और बलरामपुर जिलों जैसी ही लगी। इस रिपोर्ट में हम सिद्धार्थनगर जिले की उन सड़कों और बाजारों की चर्चा कर रहे हैं, जो नेपाल सीमा से लगती हैं।
सिद्धार्थनगर में घुसते ही इबादतगाह
बलरामपुर जिले के पचपेड़वा से जैसे ही हमने सिद्धार्थनगर में प्रवेश किया, वैसे ही हम मलगाहिया गाँव में पहुँचे। यह गाँव नेपाल बॉर्डर से लगभग सटा हुआ है और सीमा को छूती हुई सड़क के किनारे बसा हुआ है। इस गाँव में सड़क से ही 2 इबादतगाहों को साफ़-साफ देखा जा सकता है। दोनों इबादतगाहें सफेद रंग की हैं, जिनकी मीनारें काफी दूर से दिखाई देती हैं। स्थानीय लोगों ने इस गाँव में मदरसा चलने की भी जानकारी दी।
अभी हम मालगाहिया गाँव से अधिकतम 2 किलोमीटर ही चले होंगे कि हमें जियाभारी नाम की बाजार दिखी। ज़ियाभारी बाज़ार में हमने सड़क से कुछ ही दूरी पर पेड़ों और दुकानों के पीछे एक और इबादतगाह देखी। यह इबादतगाह सफेद रंग की थी।
बॉर्डर पर गंदगी और नो मैन्स लैंड में पालतू बकरियाँ
जियाभारी के बाद बीच में कई अन्य मज़ारें और छोटी-बड़ी इबादतगाहें छोड़ कर हम नेपाल सीमा के बढ़नी बाज़ार पहुँचे। यहाँ हमें सीमा पर कूड़े और गंदगी का ढेर दिखा। बॉर्डर के नो मैन्स लैंड एरिया में पालतू बकरियाँ चर रही थीं। बॉर्डर पर सिद्धार्थनगर की तरफ हमें अहमद बूट हाउस, मक़सूद शू सेंटर, सलीम की जूते की दुकान आदि दिखाई पड़ीं।
पहले की सरकारों में ठीक से नहीं मना पाते थे त्यौहार
बढ़नी बॉर्डर पर सिद्धार्थनगर जिले में एक स्कूल के बोर्ड पर लिखे वेदमंत्रों ने हमारा ध्यान अपनी तरफ खींच लिया। यह स्कूल भारतीय सीमा का अंतिम स्कूल है, जिसका नाम ‘दयानंद लघु माध्यमिक विद्यालय’ है। यहाँ छुट्टी हो चुकी थी लेकिन हमने यहाँ मौजूद महिला प्रिंसिपल से बात की।
‘दयानंद लघु माध्यमिक विद्यालय’ की महिला प्रिंसिपल ने हमें बताया कि पहले की सरकारों में 12 बजे दुर्गापूजा की मूर्ति उठाने का आदेश मिल जाता था लेकिन इस सरकार में यहाँ के लोग काफी हद तक सुरक्षित महसूस करते हैं। महिला प्रिंसिपल ने खुद को लगभग डेढ़ दशक से उसी स्कूल में पोस्टेड बताया। इसी स्कूल का एक हिस्सा आर्यकन्या विद्यालय भी है।
कभी बॉर्डर पर थी दयानन्द विद्यालय की सबसे ज्यादा जमीन
बॉर्डर पर मौजूद दयानन्द विद्यालय की बॉउंड्री से सट कर ‘जय माँ अन्नपूर्णा गिरी गैस चूल्हा रिपेयर’ नाम से दुकान चला रहे बुजुर्ग व्यक्ति ने हमें बताया कि कभी बढ़नी बॉर्डर पर सबसे ज्यादा जमीन इसी दयानन्द स्कूल के प्रिंसिपल तिवारी जी की हुआ करती थी। उन्होंने हमें आगे बताया कि धीरे-धीरे कई लोगों ने उनकी जमीनें खरीद डालीं और अब तिवारी जी का एकमात्र स्कूल बचा हुआ है।
बढ़नी में थोक भाव में मिलते हैं नकाब
सिद्धार्थनगर के बढ़नी बाजार में हमें जो बेहद ख़ास बात दिखी, वो थी नकाब सेंटर। हमने बढ़नी रेलवे स्टेशन के कुछ ही दूर पर नकाब की दुकान देखी, जिसका नाम ‘उमर नकाब सेंटर’ है। इस दुकान के बोर्ड पर बाकायदा हिजाब और बुर्का पहने महिलाओं को दिखाया गया है।
‘उमर नकाब सेंटर’ के बोर्ड के ऊपर अरबी भाषा में कुछ लिखा हुआ था। इस जगह पर ईरानी चादर भी बनाई जाती है। इस दुकान से नकाब खरीद कर ले जा रहे एक व्यक्ति ने हमें बताया कि यहाँ हिजाब की अच्छी बिक्री होती है।
गौरतलब है कि इसी सिद्धार्थनगर जिले में डुमरियागंज नाम की बाज़ार भी है, जहाँ विगत विधानसभा चुनाव होने के बाद सपा की महिला मुस्लिम प्रत्याशी सैयदा खातून के समर्थन में आपत्तिजनक नारेबाजी हुई थी। उस केस में पुलिस ने नव निर्वाचित महिला विधायक और उनके कई समर्थकों पर भी FIR दर्ज की थी। डुमरियागंज बाजार भी मुस्लिम बहुल मानी जाती है।
नेपाल बॉर्डर पर बढ़ती मुस्लिम आबादी और पनपते मस्जिद-मदरसों वाली सीरीज में ही सिद्धार्थनगर जिले के डुमरियागंज पर हमने पहले भी एक रिपोर्ट की है। डुमरियागंज ही वो जगह है, जहाँ की ‘खैर टेक्निकल सोसाइटी’ के द्वारा उर्दू और अरबी नेमप्लेट वाले नल भारत-नेपाल बॉर्डर पर जगह-जगह लगाए गए हैं। इन नलों पर अरबी भाषा में ‘संयुक्त अरब अमीरात एसोसिएशन’ और इंग्लिश में ‘खैर टेक्निकल सोसाइटी इंडिया’ लिखा मिला था। स्थानीय लोगों ने इस रिपोर्ट में बताया था कि ऐसे नल ‘जकात’ के पैसे से लगाया गया है।
बॉर्डर के पास सैकड़ों मस्जिद-मदरसे
ऑपइंडिया ने सिद्धार्थनगर जिले में भी नेपाल बॉर्डर पर मौजूद मस्जिदें और मदरसों की जानकारी जुटाई। हमारे द्वारा जुटाई गई जानकारी के मुताबिक सिद्धार्थनगर में नेपाल बॉर्डर से 15 किलोमीटर क्षेत्र में लगभग 260 मस्जिदें, 175 मदरसे और 20 ऐसी मस्जिदें हैं, जिसमें साथ में मदरसा भी संचालित है।
सिद्धार्थनगर जिले में मज़ारों की गिनती इन इबादतगाहों से अलग है। हालाँकि ये आँकड़े सिद्धार्थनगर की पूरी नेपाल से लगी सीमा के नहीं हैं। स्थानीय लोगों ने कैमरे पर न आने की शर्त पर हमें बताया कि मस्जिद और मदरसों की अनुमानित संख्या इससे भी ज्यादा है।
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