जब भारत अपनी स्वतंत्रता के 75वें वर्ष में प्रवेश कर रहा था और चारों ओर इसका जश्न मनाया जा रहा था तब जामिया का छात्र और दिल्ली दंगों का आरोपित आसिफ इकबाल तन्हा अफगानिस्तान में तालिबानी शासन का खुलकर समर्थन कर रहा था।
ट्विटर स्पेस पर साथियों से चर्चा करते हुए रविवार (15 अगस्त 2021) को उसने कहा, “मैं एक अच्छी खबर देना चाहता हूँ, अशरफ गनी ने इस्तीफा दे दिया है। अल्लाह का शुक्रिया कि धीरे-धीरे ही सही लेकिन इस्लामिक एमिरेट ऑफ अफगानिस्तान (तालिबान का शासन) स्थापित हो गया। हमें इससे प्रेरणा लेने और सीखने की की जरूरत है कि कैसे आजादी के आंदोलन के लिए संघर्ष किया जाता है।” स्पेस पर जिस टॉपिक पर चर्चा हो रही थी वह था, “क्या भारत में मुस्लिम आजाद हैं?”
Listen to this
— Flt Lt Anoop Verma (Retd.) 🇮🇳 (@FltLtAnoopVerma) August 15, 2021
Note all these handles
And See what are they discussing
They are all Indian Handles
Quite disgusting & shameful
Arfa, Rana, Saba, Zainab, Farah, Seemi, Sayema & Swara … all think like this pic.twitter.com/Skq5Rd4qVD
ट्विटर स्पेस में शामिल रहे मोहम्मद तनवीर के ट्वीट से इस बात की पुष्टि होती है कि चर्चा में दिल्ली दंगों का आरोपित इकबाल मौजूद था। वीडियो से यह पता चलता है कि बाकी सदस्यों के माइक्रोफोन ऑफ थे और तालिबान की तारीफ करते तथा अल्लाह का शुक्रिया करते हुए आसिफ इकबाल को सुना गया।
इकबाल आजादी पाने के लिए तालिबान से प्रेरणा लेना चाहता है और संभवतः यह वही ‘जिन्ना वाली आजादी’ है जिसके स्लोगन का उपयोग सीएए विरोधी दंगों के दौरान हुआ था। दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल को दिए गए अपने बयान में इकबाल ने कबूल किया था कि वह भारत को एक इस्लामिक देश बनाना चाहता है। इकबाल 2014 से जामिया मिलिया इस्लामिया और स्टूडेंट इस्लामिस्ट ऑर्गनाइजेशन (SIO) का सदस्य है। फरवरी 2020 में पूर्वोत्तर दिल्ली में हुए हिन्दू विरोधी दंगों के साजिशकर्ता के रूप में इकबाल को UAPA के अंतर्गत गिरफ्तार किया गया था।
भारत को इस्लामिक देश बनाने की इच्छा के अलावा भी उसने कई खुलासे किए थे। इक़बाल ने अपने बयान में कहा था कि वह नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) को मुस्लिम विरोधी मानता था इसी कारण वह इसके विरोध में शामिल हुआ था। उसने शांतिपूर्ण प्रदर्शन के नाम पर बसों को आग लगाने की बात भी स्वीकार की थी।
रिपोर्ट्स के मुताबिक आसिफ इकबाल ने 12 दिसंबर को जामिया मिलिया इस्लामिया के गेट नंबर 7 से 2500-3000 लोगों के मार्च का नेतृत्व करने की बात स्वीकार की थी। उसने खुलासा किया था कि शरजील इमाम ने 13 दिसंबर को भड़काऊ भाषण देकर प्रदर्शनकारियों को चक्का जाम करने के लिए उकसाया था।
आसिफ ने यह भी स्वीकार किया था कि 15 दिसंबर को जामिया मेट्रो स्टेशन से संसद की तरफ गाँधी शांति मार्च का आयोजन किया गया था और गाँधी नाम का उपयोग इसलिए किया गया था ताकि अधिक से अधिक संख्या में लोग जुड़ सकें। इकबाल ने कोलकाता, लखनऊ, कानपुर, उज्जैन, इंदौर, पटना, साहिबगंज, समस्तीपुर और अहमदाबाद जैसे शहरों में भड़काऊ भाषण देने की बात स्वीकार की। उसके द्वारा मुस्लिमों को प्रदर्शन करने और रूरत पड़े तो हिंसा भी करने का सुझाव दिया गया।
जेल से रिहा होने के बाद 22 जून को इकबाल ने ट्वीट कर कहा था, “अस्सलामलैकुम दोस्तों, 13 महीने जेल में रहने के बाद आज अपनी माँ, परिवार, दोस्तों और साथी कार्यकर्ताओं से मिल रहा हूँ। ऐसा लग रहा है जैसे पिंजरे में कैद किसी पक्षी को खुला आसमान मिला है जो पहले से भी बड़ा है।”
यहाँ ध्यान देने की बात है कि जब इकबाल अफगानिस्तान में तालिबानी शासन की प्रशंसा कर रहा था तब उत्तर प्रदेश के पत्रकार अली सोहराब को समर्थन में ‘अल्हम्दुलिल्लाह’ कहते हुए सुना गया। सोहराब को उत्तर प्रदेश पुलिस ने नवंबर 2019 में हिन्दू समाज के संस्थापक कमलेश तिवारी की हत्या के बारे में आपत्तिजनक पोस्ट करने के जुर्म में दिल्ली से गिरफ्तार किया था। सोहराब के खिलाफ आईटी एक्ट की धारा 295A, 295B, 66, 67 के अंतर्गत मामला दर्ज किया गया था।