Friday, May 3, 2024

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इस्लामी आतंक

मजहबी नारे चिल्लाती, मंदिर तोड़ती भीड़ को मजहब बताने में शर्म क्यों आती है?

जब भीड़ की एक निश्चित पहचान है, और तुम्हें पता है कि ये भीड़ एक खास कम्यूनिटी या समुदाय विशेष की है, तो फिर उसके नामकरण में समस्या क्यों?

श्री लंका हमलावर और ज़ाकिर नायक का ‘फैन’ रियास केरल से गिरफ़्तार, आतंकी वारदात की कर रहा था तैयारी

वह श्री लंका हमले का साज़िशकर्ता ज़हराम हाशिम और इस्लामिक उपदेशक ज़ाकिर के वीडियो देखता था। वह भगोड़ा अब्दुल राशिद के ऑडियो क्लिप्स सुना करता था। वह आतंकी अब्दुल खयूम से भी ऑनलाइन चैट कर रहा था। वह अशफ़ाक़ मज़ीद से भी संपर्क में था।

स्वामी असीमानंद और कर्नल पुरोहित के बहाने: ‘सैफ्रन टेरर’ की याद में

कल दो घटनाएँ हुईं, और दोनों ही पर मीडिया का एक गिरोह चुप है। अगर यही बात उल्टी हो जाती तो अभी तक चुनावों के मौसम में होली की पूर्व संध्या पर देश को बताया जा रहा होता कि भगवा आतंकवाद कैसे काम करता है। चैनलों पर एनिमेशन और नाट्य रूपांतरण के ज़रिए बताया जाता कि कैसे एक हिन्दू ने ट्रेन में बम रखे और समुदाय विशेष को अपनी घृणा का शिकार बनाया।

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