एक ओर कॉन्ग्रेस पार्टी के तमाम नेता अपने युवा अध्यक्ष राहुल गाँधी को इस्तीफ़ा वापस करने के लिए मनाने को लेकर संघर्षरत नजर आ रही है वहीं नेशनल हेराल्ड मामले में भी कुछ ऐसे मोड़ आ रहे हैं, जिन्हें सुनकर गाँधी परिवार को अच्छा नहीं महसूस होगा।
पिछले दिनों की कुछ खबरों पर चर्चा जिसमें आज हुए BJP प्रेस कॉन्फ्रेंस, राहुल गाँधी की प्रेस कॉन्फ्रेंस, मीडिया के समुदाय विशेष के लोगों के ट्रोल बन कर सिमट जाने की बात और सोनिया गाँधी के मिशन 272 की बात शामिल है।
बॉलीवुड प्रोड्यूसर अशोक पंडित ने एक समाचार पत्र की रिपोर्ट को रीट्वीट करते हुए कटाक्ष किया है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि सोनिया गाँधी ने लोकसभा में बहुमत के लिए जरूरी 272 के आँकड़े के लिए काम करना शुरू कर दिया है।
सोनिया की इस क़वायद का मक़सद 23 मई को आने वाले चुनावी नतीजों से पहले विपक्षी दलों के बीच आपसी समझ विकसित कर लेना है, ताकि वो जनादेश हासिल करने के लिए राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद से सरकार बनाने का पहला न्यौता पाने की स्थिति में ख़ुद को सक्षम साबित कर सकें।
तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष ने स्वामी की शिकायत पर स्पष्टीकरण के लिए सोनिया गाँधी से पत्राचार किया। उस वक्त सोनिया गाँधी के हवाले से जवाब दिया गया था कि उन्होंने 'कैम्ब्रिज' से डिग्री ली है न कि 'कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी' से। सोनिया गाँधी का कहना था कि लोकसभा पब्लिकेशन में यूनीवर्सिटी शब्द गलती से छप गया है।
उनके पास 60,000 रुपए कैश में है और 2.4 करोड़ रुपए शेयर्स में हैं। सोनिया गाँधी ने इस हलफनामे में यह भी बताया है कि उनके रिलायंस हाइब्रिड बॉन्ड्स में भी शेयर्स हैं। उन्होंने पोस्टल सेविंग्स में 72 लाख इन्वेस्ट कर रखा है।
रायबरेली में सोनिया क़ाफ़िला रोड शो के दौरान रास्ता ही भटक गया था, इससे जाम लग गया। ऐन वक्त पर अधिकारियों ने स्थिति को संभाला। सोनिया गाँधी 4 बार यहाँ से जीत दर्ज कर चुकी हैं। उनका मुक़ाबला भाजपा के दिनेश प्रताप सिंह से है।
कॉन्ग्रेस के घोषणापत्र में कई कोरी बातें कही गई हैं, जिसका वास्तविकता से कोई लेना-देना नहीं है। इसके अलावा सुरक्षा जैसे संवेदनशील मुद्दे पर भी पार्टी द्वारा अनाप-शनाप बका गया है। लेकिन सोनिया की नाराजगी इन मुद्दों पर नहीं बल्कि राहुल को लेकर है।
ऑपइंडिया ने इस तरफ अपना ध्यान केंद्रित किया और सबूतों को प्राप्त करने की दिशा में क़दम आगे बढ़ाए जिससे यह पता चल सके कि कहीं सोनिया गाँधी और उनका इटैलियन परिवार बोफोर्स घोटाले में शामिल तो नहीं था और फिर उनके नाम सार्वजनिक रूप से छिपा दिए गए हों।