"जब उनसे आईडी के बारे में पूछा गया तो उन्होंने दिखाने से मना कर दिया। वह यहाँ का माहौल बिगाड़कर धर्म के नाम पर खेल करवाना चाह रहे थे। हम यहाँ बरसों से रह रहे हैं। यहाँ सभी प्यार से रहते हैं यहाँ ऐसा कुछ नहीं है।"
1979 में तत्कालीन ज्योति बसु सरकार की पुलिस व सीपीएम काडरों ने बांग्लादेशी हिंदू शरणार्थियों के ऊपर जिस निर्ममता से गोलियाँ बरसाईं उसकी दूसरी कोई मिसाल नहीं मिलती।
ऐसे में गोकुलपुरी के कुछ नवयुवक क्या करते? आप इस स्थिति में क्या करेंगे जब आप शत-प्रतिशत जानते हों कि यह भीड़ आपके घरवालों को पहली नजर में हाथ काट कर, पैर काट कर दिलबर नेगी की तरह आग में जलने को फेंक देगी?