इस घटना को लगभग एक वर्ष होने वाला है और इस एक वर्ष के भीतर ही कॉन्ग्रेस के युवा अध्यक्ष राहुल गाँधी ने जनेऊ भी धारण किया, अमरनाथ यात्रा का भी फोटोशॉप किया, समय और परिस्थिति के अनुसार हिन्दू प्रतीकों के साथ खूब तस्वीरें खिंचवाते नजर आते हैं, उत्तर से लेकर दक्षिण भारत तक के मंदिर का भ्रमण और धोती पहनना सीखने तक के उपक्रम राहुल गाँधी को करने पड़े हैं।
अतंरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का प्रतिनिधित्व कर चुके पहलवान नरसिंह यादव पर आरोप है कि वह उत्तर-मुंबई से कॉन्ग्रेस उम्मीदवार संजय निरुपम के लिए चुनावी प्रचार किया है।
मतदान के दिन राहुल गाँधी ने अपने ट्विटर पर वीडियो पोस्ट करते हुए लिखा, 'भारत में लाखों युवा पहली बार मतदान करने जा रहे हैं। उनके हाथों में भारत का भविष्य है। मुझे विश्वास है कि वे हर भारतीय के लिए NYAY चाहते हैं और बुद्धिमानी से मतदान करेंगे। पहली बार मताधिकार का प्रयोग करने जा रहे युवाओं के साथ इस शार्ट फिल्म को शेयर करें।'
मैं आपकी राजनीतिक विवशता को देख रही हूँ। विडंबना यह कि आप वर्षों से राजनीतिक परिदृश्य में एक मुकाम पाने को कड़ी मेहनत कर रहे हैं, जिसमें सफलता कमोबेश आपके लिए हाथ न आने वाला ही रहा है। ऊपर से नेहरू-गाँधी परिवार में पैदा होने के लाभ को भुनाने में भी सक्षम नहीं रहे आप। अफसोस!
कॉन्ग्रेस आईटी-सेल के सदस्य गौरव पांधी ने ट्विटर पर प्रधानमंत्री मोदी के भाषण के कुछ हिस्सों के साथ एक वीडियो शेयर किया। इस वीडियो को संपादित कर लूप के ज़रिए एक 'अपमानजनक' शब्द को बार-बार सुनाया गया। इस वीडियो पर यूजर्स ने...
यह वीडियो एक राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी के खिलाफ राजनीतिक प्रचार के रूप में कम और हिंदू आतंकवाद सिद्धांत को फिर से हवा देने की रूपरेखा के रूप में ज़्यादा है। कॉन्ग्रेस पार्टी सत्ता में वापस आने के लिए अब देश ही क्या, यहाँ की संस्कृति और सहिष्णुता का भी घोर अपमान करने पर तुली हुई है। सत्ता और तुष्टिकरण के लिए अब ये कोई भी सीमा लाँघ सकते हैं।
तीसरे चरण में कॉन्ग्रेस के कुल 90 उम्मीदवारों में से 40 उम्मीदवार ऐसे हैं, जिन्होंने अपने खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज होने की घोषणा की है। यह कुल उम्मीदवारों का 44% है।
अहमद पटेल ने बीजेपी पर निशाना साधते हुए कहा है कि उन्हें पूरा भरोसा है कि लोकसभा के चुनाव में बीजेपी को हार का सामना करना पड़ेगा। उन्होंने गुजरात में भी अच्छे परिणाम मिलने की भी आशंका व्यक्त की है।
यह भी सच है कि कई सवाल न केवल अंदरूनी सूत्र आरवीएस मणि और पीड़िता साध्वी प्रज्ञा द्वारा उठाए गए हैं, बल्कि कई अन्य लोगों ने उनके आचरण और मिलीभगत के बारे में ‘भगवा आतंक’ का झूठ गढ़ने के लिए उठाए हैं। सच्चाई शायद बीच में कहीं है। लेकिन साध्वी प्रज्ञा की आवाज़ को चुप कराने की कोशिश करने वाले, इन तमाम मीडिया गिरोहों से कोई भी उम्मीद करना बेमानी है।