BBC में काम करने वाली समीरा अहमद अपने संस्थान पर महिलाओं को पुरुषों से कम पेमेंट देने का आरोप लगा कर कोर्ट तक घसीट लाई हैं। जेरेमी (पुरुष) को जिस 15 मिनट के शो के लिए 2.72 लाख रुपए/शो मिलते थे, वहीं समीरा को मात्र 40,000 रुपए।
'बगदादी फुटबॉल के स्टार थे' से लेकर 'बगदादी अंतर्मुखी थे' तक, बीबीसी ने ISIS के सरगना को ऐसे सम्मान दिया, जैसे उसने उसकी रूह की शांति के लिए तर्पण की जिम्मेदारी ली हो। आतंकी बगदादी की मौत से शोकग्रस्त बीबीसी के प्रोपेगेंडा का काला चिट्ठा पढ़ें उसके ही शब्दों में।
रवीश कुमार ने एक रिपोर्टर के रिपोर्ट का मजाक सिर्फ इसलिए उड़ाया क्योंकि वो रिपोर्टर उनके इतना बड़ा पत्रकार नहीं है और उसने रिपोर्ट अयोध्या के दीपोत्सव पर लिखी। आखिर रवीश से उम्मीद भी तो यही बची है।
रवीश कुमार आईटी सेल के लड़कों के बारे में तो बता दिए, तालियाँ भी लूट गए लेकिन... उन लड़कियों को तीन तलाक, हलाला, मदरसे की हकीकत, बलात्कारी मौलवियों, कौशाम्बी जैसी घटनाओं के बारे में बताना भूल गए। इनके शब्दों के भ्रमजाल में फँसने से बचना लड़कियो!
The Hindu ने भारतीय सेना के बारे में बड़े ही स्पष्ट और सीधे शब्दों में लिखा है, मगर प्रदर्शनकारियों के बारे में लिखते हुए इसी अखबार के शब्द खत्म हो गए! या फिर यूँ कहें कि ये भी प्रोपेगेंडा फैलाने वाले गिरोह का हिस्सा बनकर अराजत तत्वों का तुष्टिकरण करना चाहते हैं।
न्यूयॉर्क टाइम्स ने अपने विज्ञापन में लिखा कि कश्मीर में अब तक सुरक्षाबलों के हाथों 60000 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि दस लाख से ज्यादा लोग घायल हो चुके हैं। पत्रकारिता की खातिर न्यूयॉर्क टाइम्स को ये बताना चाहिए कि आखिर जो आँकड़े छापे हैं, वो कहाँ से आए?
BBC ने जब इस खबर को सोशल मीडिया पर शेयर किया तो उसकी हेडिंग, "असम: पुलिस ‘पिटाई’ से मुसलमान महिला का गर्भपात" रखी, जबकि वेबसाइट पर इसी ख़बर की हेडिंग थी - "असम: पुलिस ‘पिटाई’ से महिला का गर्भपात"। सोशल मीडिया पर शेयरिंग के दौरान हेडिंग में 'मुसलमान' शब्द जोड़ना बीबीसी की नीयत को साफ़ कर देता है।
वीडियो में अभिसार शर्मा सरकार के कथित 'दोहरे मापदंड को एक्सपोज' करते हुए नजर आ रहे हैं। उनका कहना है कि एक ओर यह सरकार गाय की बात करती है जबकि दूसरी ओर बीफ एक्सपोर्ट का यह आँकड़ा हमारे सामने है। इसके बाद अभिसार शर्मा एक सूची के जरिए ये बताते नजर आ रहे हैं कि बीफ एक्सपोर्ट में भारत का विश्व में दूसरा स्थान है।
यह ब्रह्मांड का पहला पुरस्कार है, जो जीतने वाले को उस चीज के लिए मिला है, जिसको वो गलत ठहराता और झूठ कहता रहा। देश में असहिष्णुता है, डर का माहौल है और अभिव्यक्ति की आजादी नहीं है, ऐसा कहने वाले रवीश जी को अपनी अभिव्यक्ति के लिए ही पुरस्कार मिल गया।
वामपंथी विचारधारा (हम जो कह दें, वही सत्य है) वाले अविनाश दास ने एक फर्जी नोटिस को ट्विटर पर टाँग तो दिया लेकिन फैक्ट चेक के जमाने में बेचारे खुद टँग गए। 2-4 की-वर्ड अगर गूगल कर लेते तो शायद छीछालेदर से बच जाते। लेकिन ऐसा करते तो फिर वामपंथी कैसे कहलाते!