"सोशल मीडिया पर यूजर्स का कहना है कि शाहरुख की गिरफ्तारी के बाद एनडीटीवी पर मातम छा गया है। रवीश ने बहुत मेहनत की थी उसे अनुराग मिश्रा बताने में। लेकिन अब हकीकत का खुलासा होने के बाद हो सकता है कि रवीश कुमार स्क्रीन काली कर दे।"
पोस्ट में पहले रवीश कुमार लादेन कि फोटो को फोटोशोप बता रहे थे। अंत में रवीश कुमार ने पाठकों के लिए नोट में लिखा कि यह पोस्ट अब अपडेट कर ली गई है। इस बीच जो 5 बार एडिटिंग की गई - असली खबर यहीं छुपी है और मजेदार भी - सब स्क्रीनशॉट में कैद कर लिया गया है।
26 फरवरी को रवीश कुमार ने जिस तरह से तथ्यों को प्राइम टाइम में पेश किया वह इस बात का सबूत है कि मेनस्ट्रीम मीडिया दंगाई के मुस्लिम होने पर न केवल उसका नाम छिपाता है, बल्कि उसे क्लीनचिट भी देता है।
रवीश समेत कुछ लोगों का कहना है कि पुलिस डंडे क्यों मार रही है? भाई, हाथ में पत्थर ले कर घूमने वाले और बसों में आग लगाने वाले छात्र नहीं, फसादी होते हैं। उनसे अपराधियों की तरह ही निपटना चाहिए।
स्वास्तिक जलाना, गाय को काट कर कमल पर दिखाना, आजादी के नारे, तेरा बाप भी देगा आजादी, खिलाफत की बातें, बुर्के में हिंदू औरतों को दिखाना, ये भी एक तरह की हिंसा है। इसे वैचारिक हिंसा कहते हैं।
रवीश को ये भी बताना था कि दिल्ली की पूरी जीडीपी का कितना प्रतिशत शिक्षा को जा रहा है। वो बताएँगे तो पता चल जाएगा कि यह 2 प्रतिशत से कम है, लेकिन रवीश यह नहीं बताएँगे।
जिन NDTV के लिए पसीना बहा कर प्रोपेगेंडा फैलाते-फैलाते बाल सफ़ेद कर दिए, अब उसी NDTV ने रवीश के ब्लॉग को वेबसाइट पर एक कोने में छोटी सी जगह में ढकेल दिया है। क्या रवीश के शो की गिरती TRP के कारण उन्हें अपने ही संस्थान में किनारे किया जा रहा है? दुःखद। निंदनीय।
बजट आ चुका है और स्टूडियो में चर्चा हो रही है। रात में प्राइम टाइम भी होगा जब बजट पर विश्लेषण होगा। हमारे पास रवीश कुमार के बजट की लीक हुई स्क्रिप्ट आ गई है जिसे हमने इस बार न्यूज़लौंडी के झबरा कुत्ते से सुँघवा कर सत्यापित किया है।
मैं इस बजट को सांप्रदायिक मानता हूँ। यकीन मानिए आज इस बजट के दौरान गाँधी जी होते तो इसे पास नहीं होने देते। बजट तो हर साल आता है, जाता है, लेकिन अल्पसंख्यक के मुद्दे पर सभी चुप्पी साध लेते हैं। अंत में सवाल यही कि क्या इस बजट के पैसे से गरीब का पेट भर जाता है?