Sunday, April 27, 2025

विषय

UPA

राहुल नहीं, शरद पवार हो सकते हैं सोनिया गाँधी के उत्तराधिकारी, इतालवी मूल पर छोड़ी थी कॉन्ग्रेस: रिपोर्ट

सोनिया गाँधी के इतलावी मूल को मुद्दा बनाकर कॉन्ग्रेस छोड़ने वाले शरद पवार यूपीए के चेयरपर्सन की जिम्मेदारी सँभाल सकते हैं।

कॉन्ग्रेस नेता नटवर सिंह के सहयोगी को UPA काल में हुए रक्षा सौदे में मिली थी 25 करोड़ की रिश्वत, बेटा रह चुका है...

इस सौदे में रिश्वत के रूप में 25 करोड़ रूपए लेने वाले विपिन खन्ना यूपीए सरकार में विदेश मंत्री और कॉन्ग्रेस के कद्दावर नेता कुँवर नटवर सिंह के करीबी सहयोगी हैं।

जब UPA सरकार में मंत्री रहे प्रफुल्ल पटेल के विरोध के बाद ब्लूम्सबरी ने वापस ले ली थी किताब

ब्लूम्सबरी इंडिया ने जनवरी 2014 में जितेंद्र भार्गव द्वारा लिखी पुस्तक ‘The Descent of Air India’ के प्रकाशन को वापस ले लिया था।

मनमोहन जमाने का एक और फ्रॉड: ₹21000 करोड़ का मामला, SBI के नेतृत्व वाले बैंकों ने वीडियोकॉन को पहुँचाया फायदा

वीडियोकॉन को गलत तरीके से लाभ पहुँचाने के मामले में CBI ने वेणुगोपाल धूत के ख़िलाफ़ मामला दर्ज किया है।

CAA पर फिर पलटी शिवसेना: कॉन्ग्रेस-UPA को दिया गच्चा, कहा – ‘हमारी खुद की पहचान, हम तुम्हारे साथ नहीं’

'हिंदू हृदय सम्राट' बाल ठाकरे के बेटे उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र में सरकार बना चुके हैं। तीन पहियों वाली कभी भी पलटने वाली सरकार। अब CAA पर एक बार फिर से शिवसेना ने पलटी मारी है। वो भी कॉन्ग्रेस और UPA को आँख दिखाती हुई पलटी।

अमेठी की मालविका में डूबे ₹366 करोड़, मनमोहन सिंह के जमाने में जान-बूझकर किया गया था घाटे का सौदा

1998 में बंद पड़ी एक कंपनी के अधिग्रहण के लिए 2009 में सेल को मजबूर किया गया। प्रचार ऐसे किया गया मानो बड़े पैमाने पर रोजगार पैदा होगा। नतीजा सिफर रहा। 10 साल बाद भी जमीन का टाइटल सेल के नाम ट्रांसफर नहीं हुआ है।

8 साल पहले शरद पवार को मारा था थप्पड़ : हरविंदर सिंह को दिल्ली पुलिस ने दबोचा

हरविंदर ने दिल्ली के संसद मार्ग स्थित एनडीएमसी सेंटर में एक कार्यक्रम से लौट रहे पवार को 2011 में थप्पड़ जड़ दिया था। इस घटना से कुछ ही दिन पहले उसने पूर्व मंत्री सुखराम पर भी हमला बोला था।

GDP से क्या होता है? क्या सचमुच बर्बाद हो गई है हमारी अर्थव्यवस्था? (भाग 1)

ऑक्सफोर्ड से पढ़े हुए मनमोहन सिंह अर्थव्यवस्था पर ज्ञान दिए जा रहे हैं। मनमोहन सिंह कहते हैं कि मोदी की नीतियों ने भारत को इस स्थिति में पहुँचाया है। लेकिन आँकड़े इस दावे के उलट कुछ और ही कहानी कहते हैं।

क्या सच में मोदी ने संस्थाओं को कमज़ोर किया? आंकड़े और तथ्य तो कुछ और ही कहते हैं

अब यदि विपक्ष के द्वारा संवैधानिक अवहेलना एवं संस्थागत अवमानना पर विचार किया जाए, तो कई सारे उदाहरण और मिल जाएँगे। और यदि उनके इतिहास के बारे में सोचा जाए, तो ऐसे उदाहरणों की कोई कमी नहीं होगी। एक भारतीय के रूप में हमें इसमें कोई संदेह नहीं होना चाहिए कि संविधान व संस्थाएँ, दोनो ही मोदी सरकार मैं पूर्ण रूप से संरक्षित हैं।

ताज़ा ख़बरें

प्रचलित ख़बरें