वीर सावरकर ने एक बार लंदन में लेनिन को 3 दिन तक शरण दी थी। कम्युनिस्ट यह स्वीकार नहीं कर पाते कि सावरकर को कई प्रमुख वामपंथियों ने वीर कहने का साहस किया था।
"मुस्लिमों में भारतीयता का बहुत अभाव है। इसलिए वे सभी भारतीयता के महत्व को नहीं समझते हैं और अरबी एवं फारसी लिपि को पसंद करते हैं। पूरे भारत की एक भाषा होनी चाहिए और वह भी हिंदी। जिसे वे कभी नहीं समझते हैं, इसलिए वे अपनी उर्दू की प्रशंसा करते रहते हैं और एक तरफ बैठते हैं।"
दरअसल, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में सुबनसर हॉस्टल के नजदीक एक सड़क का नाम बदलकर वीर सावरकर मार्ग कर दिया गया था। इसे देखने के बाद जेएनयू के वामपंथी छात्र काफी नाराज हुए थे। वामपंथी छात्रों के संघ ने इस कदम को शर्मनाक कहा था। साथ ही सावरकर के नाम पर मार्ग का नाम रखे जाने की निंदा की थी।
लोगों का आरोप है कि इस कुकृत्य को AISA और SFI के गुंडों ने अंजाम दिया है। सोशल मीडिया पर यूजर्स की माँग है कि देश में अब विभाजनकारी मानसिकता को खत्म किया जाना चाहिए।
आज JNU में एक मार्ग का नाम सावरकर जी के नाम पर रखा जाना निसंदेह एक दूरदर्शितापूर्ण कदम है। यह कदम उस स्थान पर अत्यावश्यक हो जाता है, जहाँ बैठकर स्वतन्त्रता उपरांत एक खास इतिहासकारों के वर्ग ने भारतीय मूल्यों को धूलि-धूसरित करने का कार्य करते हुए इतिहास की मनगंढ़त व्याख्या हमारे समक्ष रखी।
“ये जेएनयू की विरासत के लिए शर्म की बात है कि इस आदमी का नाम इस विश्वविद्यालय में रखा गया है। सावरकर और उनके लोगों के लिए विश्वविद्यालय के पास न कभी जगह थी और न ही कभी होगी।”