इतने विशाल जनसैलाब का सफलतापूर्वक प्रबंधन करना अपने आप में एक बड़ी चुनौती मानी जाती थी। लेकिन मोदी सरकार और उत्तर प्रदेश में योगी सरकार ने यह साबित कर दिखाया कि हिन्दुओं की आस्था को यदि प्राथमिकता और समय दिया जाए तो उन्हें आसानी से ही किसी आपदा में बदलने से रोका जा सकता है।
यह देखना दिलचस्प होगा कि सबसे बड़े लोकतंत्र के सबसे बड़े सूबे के लिए क्या राहुल या प्रियंका राफ़ेल पर 'बोफोर्स' से हमला करेंगे या कुतुब पर चढ़ 'आसमानी' बातें करेंगे?
अच्छा होता कि अखिलेश यादव अपनी संवेदनहीनता को इस बात तक ही सीमित रखते कि उत्तर प्रदेश में ज़हरीली शराब कौन बना रहा है। उनका ये सवाल उचित होता कि प्रशासन आख़िर क्यों इन शराब की भट्टियों को चलने देता है।
कवाला गाँव की घटना के बाद मुजफ़्फरनगर शहर और शामली में भी दो संप्रदाय के बीच दंगे हुए थे। इस दंगे में लगभग 60 से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी, जबकि सैकड़ों लोग घायल हुए थे।
योगी आदित्यनाथ रांची से बोकारो होते हुए पुरुलिया जाएँगे। इस राजनीतिक उठा-पटक पर उत्तर प्रदेश सरकार के इकलौते मुस्लिम मंत्री ने तृणमूल से पूछा - हाउ इज द खौफ? यानी डर कैसा है?
योगी आदित्यनाथ ने 2013 में अखिलेश सरकार के दौरान हुए मुज़फ़्फ़रनगर दंगों से जुड़े जिन मुक़दमों को वापस लेने का निर्णय लिया है, उनमे कोई भी भाजपा नेता आरोपित नहीं है।
सरकारी सम्पत्ति को नुकसान पहुँचाने वाले देशहित और जनता की बात करते हैं! अखिलेश यादव जी आप किसी पर भी सवाल उठाने से पहले अपने कार्यकाल का समय आखिर क्यों भूल जाते हैं?