Sunday, September 29, 2024

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बॉलीवुड

इलेक्शन है तो मंदिर भी जाना पड़ता है – 582 दिनों का सच अब आया सामने

जामा मस्जिद के शाही इमाम द्वारा किसी खास पार्टी के समर्थन की घोषणा करने से लेकर जनेऊ और शिव-भक्त बनते हुए भारतीय राजनीति ने लंबा सफर तय कर लिया है। इस सफर में मजार पर चढ़ते चादर से लेकर गंगा आरती तक के स्टेशन आए। लेकिन अब जो आया है, वो 'रंगीला' है, 'खूबसूरत' है।

एक्टर्स बेशर्मी से अपनी सेक्स लाइफ पर बात करते हैं, लेकिन देश के मुद्दों पर कहते हैं ‘माई पर्सनल चॉइस’: कंगना रनौत

कंगना ने कहा, “जब एक्टर्स को ऑन कैमरा अपनी सेक्स लाइफ पर चर्चा करने की बात आती है, तो इन एक्टर्स को कोई शर्म नहीं आती है, इंस्टा पर फोटो शेयर करते हैं। लेकिन जब देश के महत्वपूर्ण मुद्दों की बात आती है, तो उनके बारे में बात करने से बचते हैं, कहते हैं कि हमारी पर्सनल च्वॉइस है।'

पहलाज निहलानी मेरे साथ सॉफ़्ट पॉर्न बनाना चाहते थे: कंगना रनौत

कंगना ने कहा कि उन्हें लड़की के पोज़ में अपने बॉस को खुश करने का रोल करना था जो वासना से भरी है। यह सॉफ्ट पोर्न जैसा किरदार था। उन्होंने ये फोटोशूट करवा लिया था, लेकिन फिर उन्हें लगा कि वो ये फिल्म नहीं कर सकतीं।

बॉलीवुड के ‘पाक’ कलाकार: संवेदना मौत से नहीं, ‘मस्जिद में मौत’ पर जागती है

हम उनके न्यूजीलैंड हमले पर दुख जाहिर करने पर सवाल नहीं उठा रहे। उठाएँगे भी क्यों? हम तो जानना चाहते हैं कि पुलवामा पर उनके चुप रहने के क्या कारण हैं? 'कर्मभूमि' की रक्षा पर तैनात सैनिकों पर हुए हमले से जिनका दिल नहीं पसीज़ा वो न्यूजीलैंड हमले पर एकदम से भावुक हो उठे! कैसे?

‘खलनायकों’ और ‘डरे’ हुए ख़ानों से आगे का नाम है अभिनंदन, पर्दे के हीरो से आगे आ चुके हैं हम

एक समय हम 'खलनायक' संजू और शाहरुख़ जैसे बाल रखने लगे थे। 'डर' के कारण बच्चों के नाम 'राहुल'। समय बदला है। जब अभिनन्दन लौटे तो कई बच्चों का नाम अभिनन्दन रखे जाने की ख़बर है।

वामपंथी मानसिकता में जकड़े बॉलीवुड के विरुद्ध राष्ट्रवाद की जलती हुई मशाल है कंगना रानौत

पर्दे से इतर आम ज़िंदगी में भी कंगना अतिविद्रोही स्वभाव की है, जो एकदम मुँहफट होकर वो सब कुछ कह देती है, जिसने कभी उनको क्षुब्ध किया है।

‘उरी’ से हमारी जली, ‘मणिकर्णिका’ से हुए धुआँ-धुआँ: कट्टर वामपंथी गिरोह एवं एकता मंच

आज तक इस निर्धारित पैटर्न में होता यह था कि 'संप्रदाय विशेष' हमेशा दोस्ती के लिए जान देने को तैयार दिखाया जाता था। ब्राह्मण और पुजारी को व्यभिचारी, बनिया को हेरफ़ेर करने वाला दिखाया जाता रहा था। तब तक इस गिरोह को कभी समस्या नहीं हुई थी।

‘उल्लू का पट्ठा’ जिसने मनमोहन देसाई और अमिताभ को सितारा बना दिया

"तू कमाने जाना चाहता है, जा, मैं तुझे रोकूंगी नहीं, पर सोच बेटा इस तरह तू कितना कमायेगा? दो रुपये? तीन रुपये? पर याद रखना, ऐसे हमेशा तेरी औकात तीन रुपये की ही रहेगी। घर की तंगहाली और भूख से निपटने के लिए मैं मेहनत मजदूरी करुँगी। तू बस एक ही काम कर, तू पढ़। तू बस पढ़।"

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