सुशांत, रिया और कंगना के मुद्दे को लेकर जिस तरह की रिपोर्टिंग हुई है, उस पर काफी लोगों ने हैरानी जताई। कुछ लोगों ने कटाक्ष लिखे और कुछ लोगों ने ट्रोल किया। जिनका चैनल खुद यही काम कर रहा है, उन लोगों ने भी मजाक उड़ाने की कोशिश की कि यह सड़क छाप एटीट्यूड है। यह कुछ भी हो सकता है, लेकिन पत्रकारिता नहीं। यहाँ पर राहुल कंवल की बात हो रही है।
कुछ लोगों का कहना है कि मीडिया ट्रायल हो रहा है। कुछ हद तक कहा भी जा सकता है, लेकिन यदि मीडिया में इस तरह से आवाज नहीं उठाई जाती तो सुशांत का केस आत्महत्या का केस बनकर ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता, क्योंकि 60 दिनों तक FIR भी नहीं लिखी गई थी। जनमानस के दवाब के बाद ही केस सीबीआई को दिया गया और नए-नए एंगल सामने आ रहे हैं।
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