जब 2024 लोकसभा चुनावों में मतदान के सातों चरणों का समापन हुआ, उसके बाद विपक्ष का I.N.D.I. गठबंधन अपना एक अलग एग्जिट पोल लेकर आया। उन्होंने इसे ‘जनता का पोल’ नाम दिया। उन्होंने दावा ठोका कि उनका गठबंधन 295 सीटें जीतने वाला है। ध्यान दीजिए, उन्होंने 290 या 300 का आँकड़ा नहीं दिया, उन्होंने ये नहीं कहाँ कि उनका गठबंधन फलाँ नंबर से लेकर फलाँ नंबर के बीच के आँकड़े को पार करेगी, बल्कि उन्होंने सीधा अपना एक नंबर दिया – 295.
आखिर इसके पीछे क्या सोच थी, क्या तर्क था, अगर ऐसा कुछ था भी तो, इस पर चर्चा स्वाभाविक थी। जब पत्रकारों ने इस विषय में पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी से इस संबंध में पूछा तो उन्होंने संक्षिप्त में सिद्धू मूसेवाला का नाम लिया। सिद्धू मूसेवाला, पंजाब के गायक जिन्होंने कॉन्ग्रेस की तरफ से विधानसभा चुनाव लड़ा था और जिनकी मई 2022 में गैंगवॉर में हत्या कर दी गई थी। अपने गानों के भड़काऊ बोल के कारण कुख्यात सिद्धू मूसेवाला का एक गाना आया था, जिसका नाम था – 295. गाना खूब चला था।
सिद्धू मूसेवाला को अपने गानों के माध्यम से बन्दूकबाजी की संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए भी जाना जाता है। तो क्या राहुल गाँधी द्वारा दिए गए नंबर का संबंध इसी गाने से था? I.N.D.I. गठबंधन वालों ने किसी पोलिंग एजेंसी को सर्वे वगैरह के लिए लगाया तो था नहीं, तो स्पष्ट है कि उन्होंने 295 वाले आँकड़े की भविष्यवाणी की तो इसके पीछे कुछ न कुछ प्रतीकवाद रहा होगा। हालाँकि, पंजाबी गायक-रैपर सिद्धू मूसेवाला के गाने ‘295’ से इसका कोई कनेक्शन सांयोगिक ही लगा।
हालाँकि, मुझे लगता है कि 295 वाला आँकड़ा दिए जाने के पीछे एक और इतिहास जुड़ा हुआ है। 1977 में जब इंदिरा गाँधी के खिलाफ विपक्षी दलों ने एक होकर ‘जनता पार्टी’ का गठन किया था और भारत की उस समय की सबसे शक्तिशाली नेता को मात दी थी। उस समय ‘जनता पार्टी’ को मिली कुल सीटों की संख्या थी – 295. संख्या 295 और इसके साथ ‘जनता का पोल’ वाला टैगलाइन जोड़ा जाना – ये संयोग तो बिलकुल नहीं लगता।
भले ही ‘295’ के पीछे कोई सोचा-समझा प्रतीकवाद न हो, लेकिन कम से कम ये ऐसा आभास तो देता ही है कि इन विपक्षी दलों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता और शक्ति को उसी रूप में आँका, जिस तरह इंदिरा गाँधी की उनके चरम के दिनों में हुआ करती थीं। साथ ही I.N.D.I. गठबंधन वालों ने खुद को एक ‘तानाशाह’ के खिलाफ एकजुट हुए जनआंदोलनकारियों के रूप में देखा। बड़ी बात ये है कि इस समूह का नेतृत्व इंदिरा गाँधी के पोते राहुल गाँधी कर रहे हैं, लेकिन फिर वही बात है कि राहुल गाँधी ऐसी विडम्बनाओं की चलती-फिरती दुकान हैं।
एक तरह से देखा जाए तो 2024 में नरेंद्र मोदी उसी चुनौती से जूझ रहे थे जिससे 10 वर्ष पूर्व मनमोहन सिंह जूझ रहे थे – एक दशक तक सरकार चलाने के बाद तीसरे कार्यकाल के लिए जनमत की माँग। मुझे व्यक्तिगत रूप से लगता था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ज़्यादा चिंता करने की ज़रूरत है नहीं, क्योंकि तब मनमोहन सिंह की हार के जो भी कारक थे वो सब यहाँ लागू नहीं हो रहे थे। मैं पूरी तरह गलत भी नहीं था क्योंकि चुनाव परिणाम में भाजपा भले ही पूर्ण बहुमत से चूक गई लेकिन NDA को बहुमत मिला और नरेंद्र मोदी लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने जा रहे हैं।
UPA-III भले ही वास्तविकता में तब्दील नहीं हो पाया, ‘मोदी 3.0’ हमारे सामने है। चुनावों के दौरान ये तो स्पष्ट हो गया कि विपक्ष और उसका पूरा का पूरा समर्थक तंत्र नरेंद्र मोदी को उस तरह से हराने में नहीं लगा था जिस तरह से मनमोहन सिंह को हराया गया था, भले ही उन्होंने चुनावी बॉन्ड और अडानी जैसे मुद्दे गढ़े। 2019 में इसी तरह से राफेल घोटाले का शिगूफा छेड़ा गया था। लेकिन, इतना तो दिख ही गया कि ये नरेंद्र मोदी को उसी तरह हराने में लगे थे जैसे इंदिरा गाँधी को हराया गया था।
आप देखिए तो सही कि 1977 में इंदिरा गाँधी को कैसे हराया गया था – विरोध प्रदर्शन कर-कर के अशांति और अराजकता पैदा की गई, खासकर छात्रों का आंदोलन और बेरोजगारी से जुड़े प्रदर्शन, महँगाई का अब तक का उच्चतम स्तर, चुनाव में धाँधली के आरोप जिस कारण बाद में इंदिरा गाँधी को बतौर सांसद अयोग्य घोषित कर दिया गया था, जिसके बाद देश पर आपातकाल थोपा गया। ये हाल ही में नरेंद्र मोदी पर विपक्षियों और उनके तंत्र द्वारा लगाए गए आरोपों से मेल खाते हैं।
ये 1977 की याद दिलाने को इतने बेताब थे कि इन्होंने ‘अघोषित आपातकाल’ तक का जम कर रट्टा लगाया। अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इंदिरा गाँधी की तरह कोई लोकतंत्र विरोधी कदम उठाया तो था नहीं, तो इन्होंने ‘अघोषित’ जोड़ दिया। हालाँकि, उनका 295 वाला सपना पूरा नहीं हुआ और I.N.D.I. गठबंधन 234 सीटों पर ही सिमट गया। लेकिन, वो पूरी तरह नाकाम भी नहीं हुए। विपक्ष और उसके तंत्र को देखिए – अंतरराष्ट्रीय मीडिया, यहाँ उनके पाले हुए यूट्यूबर्स, बुद्धिजीवी वर्ग, AI का इस्तेमाल कर के नैरेटिव बना कर चुनाव को प्रभावित करने वाली विदेशी ताकतें और इच्छाधारी आंदोलनकारियों का गुट।
इस पूरे के पूरे इकोसिस्टम ने पूरी ताकत लगा दी और उन्होंने एक तरह से खून चख लिया है, क्योंकि उत्तर प्रदेश में उनकी रणनीति काम आ गई है। कारण – यूपी में भाजपा 2014 में 71 और 2019 में 62 सीटों से 2024 में सीधा 33 पर गिर गई। अब वो इन करतूतों को एक अलग स्तर पर ले जाने वाले हैं। यही तो कारण है कि वो उतना जश्न मना नहीं रहे हैं, वो अभी अगले स्तर पर जाने वाले हैं। अब जब उनकी साजिश थोड़ी-बहुत सफल हो गई है, एक राष्ट्र के रूप में अब इसका पूरा भार हमलोगों पर आ जाता है कि हम अपने देश को असफल न होने दें।
चलिए, उत्तर प्रदेश के परिणामों को देख कर तो हम ये कह रहे हैं कि हमें इसका बिलकुल भी अंदाज़ा नहीं था, हम इसे पढ़ने में कामयाब नहीं रहे, लेकिन कम से कम I.N.D.I. गठबंधन वालों की जो मंशा है और आगे ये लोग जो करने वाले हैं उसके बारे में तो हम कम से कम ऐसा नहीं कह सकते। राहुल गाँधी को लेकर अब तक एक चीज तो समझ आ गई है, वो अपनी सनक में बार-बार एक ही चीज दोहराते रहेंगे भले ही 100वीं बार में इसमें सफलता क्यों न मिले।
राहुल गाँधी का समर्थन करने वाला इकोसिस्टम भी इसमें उनका साथ देने में उफ्फ तक नहीं करता है, थकना तो दूर की बात है। इसीलिए तो उन्हें 2004 से लेकर अब तक दर्जनों बार लॉन्च किया जा चुका है। अतः, साफ़ है कि अब वैसी-वैसी चुनौतियाँ ही खड़ी की जाने वाली हैं जैसी इंदिरा गाँधी के सामने कभी आई थीं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तीसरे कार्यकाल में अशांति और अराजकता का माहौल बनाया जाएगा, विभिन्न वर्गों को उसके खिलाफ सड़क पर उतारा जाएगा झूठतंत्र का सहारा लेकर।
इसका विश्लेषण ज़रूरी है कि राहुल गाँधी, उनकी पार्टी कॉन्ग्रेस और इनका समर्थन करने वाला इकोसिस्टम अब आगे क्या साजिश कर रहा है? अराजकता, संघर्ष और शांति का दौर पैदा करना, यही उनकी मंशा है। इसकी शुरुआत विरोध प्रदर्शनों से होगी, हर प्रकार के विरोध प्रदर्शन। इसकी पूरी संभावना है कि सिद्धू मूसेवाला और AK47 का स्टिकर लगा कर किसान आंदोलनकारी फिर से दिल्ली में लौटेंगे। इसीलिए, राहुल गाँधी ने जो 295 का आँकड़ा दिया था वो सिर्फ संयोग प्रतीत नहीं होता।
उत्तर प्रदेश में भाजपा को हराने में जातिवाद का खूब इस्तेमाल किया गया, इसीलिए इस बार जाति का इस्तेमाल खूब किया जाने वाला है और जातिगत संघर्षों को जन्म दिया जाएगा। अगर आप कथित किसान आंदोलन को भी याद करें तो उसका नेतृत्व जाट किसान नेताओं ने ही किया था। अब कुछ ऐसी पटकथा लिखी जा सकती है कि एक के बाद एक जातीय समूह अपने ‘अधिकारों’ के लिए सड़क पर उतर आएँ। भाजपा को इससे बड़े ही सलीके से निपटना होगा, क्योंकि अब तक पार्टी और समर्थक ऐसी समस्याओं के इर्दगिर्द विरोधाभासी नैरेटिव ही परोसते रहे हैं।
2014 में नरेंद्र मोदी के पहली बार प्रधानमंत्री बनने के बाद ‘Subaltern Hinduva’ का विचार ज़रूर आया, जिसमें ये कहा गया कि जातिगत पहचान आपके धर्म के आड़े नहीं आता। हालाँकि, ये कॉन्सेप्ट जाति व्यवस्था को लेकर अधिक व्याख्या नहीं करता। इसका समाधान कैसे करना है, ये हमें देखना होगा। 2021 से ही भारत में आम जनगणना नहीं हो पाई है, ऐसे में नई सरकार बनने के बाद इसे जल्द से जल्द पूरा करवाना होगा। इस बीच जाति जनगणना की माँग और जोर-शोर से उठाई जाएगी।
जनगणना की प्रक्रिया जैसे ही शुरू होगी, इसे NRC से जोड़ते हुए ‘कागज़ नहीं दिखाएँगे’ वाला ड्रामा फिर से वापस रचा जाएगा। और हाँ, उत्तर-दक्षिण में विभाजन का अभियान और तेज़ किया जाएगा। विडम्बना देखिए कि आज यही इकोसिस्टम उत्तर प्रदेश के लिए अपने प्यार और सम्मान को प्रकट करने का दिखावा कर रहा है, क्योंकि भाजपा को यहाँ मात मिली है। लेकिन, कुछ ही दिनों बाद ये इकोसिस्टम ‘जनसंख्या में तेज़ी से बढ़ते’, ‘अशिक्षित’ और ‘अस्वच्छ’ ‘भैय्या’ लोगों को अपमानित करना, उन पर तंज कसना, उन्हें बदनाम करना और उन्हें लेकर घृणा फैलाना जारी रखेगा।
ये ट्रेंड और खतरनाक होगा, क्योंकि 2026 या उसके बाद संसदीय सीटों का पुनः परिसीमन ही होना है। सीटों की संख्या बढ़ेंगी, इसे लेकर भी खूब झूठ फैलाया जाएगा। परिसीमन भी जनसंख्या के अनुपात के हिसाब से ही परिसीमन भी होना है, ऐसे में जनगणना कराना मोदी सरकार के लिए एक बड़ा सिरदर्द शामिल होने वाला है। इसकी प्रक्रिया पूरी कराने से अधिक इसे लेकर जो प्रोपेगंडा फैलाया जाएगा जो लोगों को इसे लेकर जिस तरह से डराया जाएगा, उससे मोदी सरकार कैसे निपटेगी ये देखना है।
जनगणना से घुसपैठियों को बाहर रखा जाएगा, विदेशी मीडिया इसे ‘मुस्लिमों पर अत्याचार’ बता कर प्रचारित करेगा। ये सब तो उन समस्याओं की सूची है, जो सीधे दिख रही है या जिसका इशारा मिल रहा है। क्षेत्र, भाषा, जाति, धर्म, वर्ग या किसी भी चीज़ के आधार पर अराजकता या शांति फैलाई जा सकती है, किसी समूह को भड़काया जा सकता है। किसी भी कन्फ्यूजन की स्थिति का फायदा उठाया जा सकता है। अचानक से विदेशी मीडिया में चलने लगेगा कि समूह A समूह B पर अत्याचार कर रहा है, विदेशी राष्ट्राध्यक्षों से इन कृत्रिम संघर्षों पर सवाल पूछे जाएँगे जबरन।
आप देखिए, आखिर सबकी निगाहें भारत पर ही है। भारत के किसी भी हिस्से से ऐसी कहानी पेश कर के उसका अंतरराष्ट्रीय करण किया जा सकता है। इसीलिए, अब वो समय गया जब हम ‘पप्पू पास हो गया’ या ‘पप्पू कांट डांस साला’ पर हँसते थे। पप्पू न सिर्फ पास हो गया है, बल्कि औपनिवेशिक ताकतों के इशारे पर नाच भी रहा है। हम तो यह तय करें कि अनजाने में ही सही लेकिन कहीं हम ऐसी ताकतों के क्रियाकलापों को समर्थन देकर उन्हें पुष्ट तो नहीं कर रहे हैं?
हमें ये नहीं सोचना चाहिए कि ये सब सिर्फ और सिर्फ नरेंद्र मोदी के खिलाफ किया जा रहा है, हमें इससे क्या! हाँ, सीधे तौर पर तो ये दिख ही रहा है कि ये सब उन्हें सत्ता से बेदखल करने के लिए किया जा रहा है। गहराई से देखेंगे तो आपको भी पता चल जाएगा कि अंदरखाने क्या सब पक रहा है। हम ये नहीं कह सकते कि अभी देश में परम आदर्श स्थिति है, लेकिन अगर हमने थोड़ी सी भी ढील बरत दी या गलती कर दी तो हम अराजकता और संघर्ष के चक्र में फँसते चले जाएँगे।
(ये लेख मूल रूप से ऑपइंडिया के CEO राहुल रौशन द्वारा हमारी अंग्रेजी वेबसाइट पर प्रकाशित किया गया है, इसे मूल रूप में पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।)