अभिनेत्री और अब भाजपा सांसद कंगना रनौत पर गुरुवार (6 जून, 2024) को चंडीगढ़ एयरपोर्ट में हमला हुआ। यह हमला एक CISF सुरक्षाकर्मी ने किया। सुरक्षाकर्मी का नाम कुलविंदर कौर है और उसने किसान आन्दोलन को इस हमले का कारण बताया है। उसे CISF की सेवा से निलम्बित कर दिया गया है और मामले की आगे जाँच चल रही है।
इस हमले के बाद लोगों ने हैरानी जताई है कि कोई सरकारी कर्मचारी चुने हुए सांसद के विरुद्ध ऐसा काम कर सकता है क्या, लोगों का यह भी प्रश्न है कि सरकारी कर्मचारी कैसे कट्टरपंथी विचारों के घेरे में आ रहे हैं। कुलविंदर का एक सांसद के प्रति यह बर्ताव उसकी अनुशासनहीनता के साथ ही उसका अपनी विचारधारा के प्रति कट्टरता को भी प्रदर्शित करता है।
कुलविंदर कौर ने जो किया है, वह कोई नई बात नहीं है। वह ऐसी पहली सरकारी कर्मचारी नहीं है जिसने अनुशासनहीनता की। इससे पहले के सैकड़ों ऐसे उदाहरण हैं जो दिखाते हैं कि लोग इस राष्ट्र के करदाता का पैसा मोटी तनख्वाह के रूप में उठा कर भी अपने कर्तव्य का निर्वहन नहीं करते।
यह इकोसिस्टम तमाम दिनों से मौजूद है और इसके उदाहरण भी मौजूद हैं। देश में 2014 में NDA सरकार आने के बाद से कश्मीर में दसियों ऐसे कार्रवाई हुई है जिनमें सरकारी कर्मचारियों को आतंकियों से संबंध रखने, उनकी वित्तीय मदद करने, उनको शरण देने और आतंकी गतिविधियों में भाग लेने के कारण नौकरी से हटाया गया है। अकेले 2023 में ही कम से कम 7 ऐसे कर्मचारी नौकरी से निकाले गए जिनके आतंकियों से लिंक थे।
इस इकोसिस्टम ने जम्मू कश्मीर को बहुत नुकसान पहुँचाया है। सरकारी कर्मचारियों के देश से गद्दारी के कारण सुरक्षा व्यवस्था में सेंध लगती है, संस्थाएँ और उनमें आमजनों का विश्वास कमजोर होता है। हाल में ही इसका एक बड़ा उदाहरण सामने आया है।
अलगाववादियों को सरकारी कर्मचारियों का मत
लोकसभा चुनाव 2024 में ऐसा ही एक उदाहरण सरकारी कर्मचारियों द्वारा अलगाववादियों के पक्ष में मतदान किया जाना रहा है। 2024 लोकसभा चुनाव में पंजाब और जम्मू-कश्मीर से तीन अलगावादियों को जीत मिली है। पंजाब में जहाँ UAPA मामले में जेल में बंद भिंडरांवाले समर्थक अमृतपाल सिंह को खडूर साहिब से तो वहीं फरीदकोट से सरबजीत सिंह खालसा को विजय मिली। सरबजीत सिंह खालसा पंजाब के मुख्यमंत्री बेअंत सिंह के हत्यारे का बेटा है।
कश्मीर में आतंक को फंडिग करने के मामले में जेल में बंद अलगाववादी राशिद को भी बारामूला से जीत हासिल हुई। इनके जीत हासिल करने का अर्थ है कि उनके लोकसभा क्षेत्र की जनता उनके कर्मों पर ध्यान नहीं देती। लेकिन इन सबके बीच इन तीनों ही लोगों को सरकारी कर्मचारियों के वोट भी हासिल हुए हैं। चुनाव आयोग का आँकड़ा दिखाता है कि अमृतपाल सिंह को खडूर साहिब में 1830 पोस्टल बैलट वोट मिले। पोस्टल बैलट के वोट सामायतः उन कर्मचारियों के होते हैं जो कि मतदान के काम में लगे होते हैं।
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इसके अलावा सरबजीत सिंह खालसा को 1140 वोट पोस्टल बैलट से हासिल हुए।
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इंजीनियर राशिद को 2907 वोट पोस्टल बैलट के जरिए हासिल हुए हैं।
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क्या होता है पोस्टल बैलट, क्यों महत्वपूर्ण?
पोस्टल बैलट एक ऐसी सुविधा है जिसमें एक मतदाता अपने मत का प्रयोग बूथ पर ना जाकर उससे पहले ही निजी तौर पर करता है और उसे चुनाव अधिकारियों को भेज दिया जाता है। यह सुविधा मतदान में लगे सरकारी कर्मचारी, सेना और अर्धसैनिक बलों के जवानों, दिव्यांगो और मीडिया कर्मियों को मिलती है ताकि उनका मतदान नहीं छूटे। इन मतों में अधिकांश मत ऐसे होते हैं जो सरकारी कर्मचारियों द्वारा दिए गए होते हैं।
इंजीनियर राशिद, सरबजीत सिंह खालसा और अमृतपाल सिंह को मिले पोस्टल बैलट वोट में अधिकांश वोट इन सरकारी कर्मचारियों के रहे होंगे। ऐसे में यह माना जाना चाहिए कि इन सरकारी कर्मचारियों ने अलगाववाद की विचारधारा रखने वालों को वोट दिया। ऐसे कर्मचारियों का झुकाव सुरक्षा एजेंसियों के लिए चिंता की बात होनी चाहिए।