कर्नाटक उच्च न्यायालय ने हत्या के दोष में आजीवन कारावास की सजा काट रहे 28 वर्षीय आनंद को संतान पैदा करने के लिए 30 दिन की परोल दी है। कैदी की 31 वर्षीय पत्नी ने संतान प्राप्ति के अपने अधिकार और अपनी सास की स्वास्थ्य स्थिति के आधार पर अपने पति की रिहाई की माँग के लिए याचिका दाखिल की थी।
हाई कोर्ट के न्यायाधीश एसआर कृष्ण कुमार ने कैदी को नजदीकी थाने में हर हफ्ते हाजिरी देने का भी आदेश दिया। न्यायाधीश ने आनंद के आचरण के आधार पर पत्नी को परोल की अवधि बढ़ाने का अनुरोध करने की भी अनुमति दी। पत्नी ने याचिका में कहा कि उसे संतान के अधिकार से वंचित किया जा रहा है। उसकी सास बुजुर्ग और बीमार हैं। वह अपने पोते-पोतियों के साथ समय बिताना चाहती थी।
दरअसल, कोलार निवासी आनंद को हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया गया था और साल 2019 में जिला सत्र न्यायालय ने उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। उसने इस फैसले को कर्नाटक उच्च न्यायालय में चुनौती दी, जिसने उसकी सजा को घटाकर 10 साल कर दिया। इस समय तक आनंद पहले ही पाँच साल जेल में बिता चुका था।
इससे पहले 5 अप्रैल से 20 अप्रैल 2023 तक की पिछली परोल के दौरान आनंद ने याचिकाकर्ता से विवाह किया था। शादी के बाद पत्नी ने अपने पति के साथ अधिक समय बिताने के लिए 60 दिन की विस्तारित पैरोल माँगी। आनंद के जेल लौटने के बाद उसने जेल अधिकारियों से 90 दिन की पैरोल माँगी, जिसे अस्वीकार कर दिया गया था।
फिर उसने गर्भधारण करने के उद्देश्य से कर्नाटक उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। अदालत ने अब संभावित विस्तार के साथ 30 दिन की पैरोल मंजूर की है। हाईकोर्ट के निर्देशानुसार परप्पना अग्रहारा केंद्रीय कारागार के जेल अधीक्षक आनंद को 5 जून से 4 जुलाई तक रिहा करेंगे। इस बार उसने बच्चा पैदा करने के अपने अधिकार के तहत अपने पति के लिए यह परोल माँगी है।
हाई कोर्ट ने हाल ही में एक याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें एक पति ने पारिवारिक अदालत द्वारा अलग रह रही अपनी पत्नी और नाबालिग बच्चे को दिए गए अंतरिम भरण-पोषण भत्ते पर सवाल उठाया था। न्यायमूर्ति सचिन शंकर मगदुम ने पति की दलील को खारिज कर दिया कि नौकरी छूटने के बाद वह बेरोजगार है और अंतरिम भरण-पोषण देने के लिए उसके पास आय के अन्य स्वतंत्र स्रोत नहीं हैं।
अदालत की एकल पीठ के न्यायाधीश सचिन शंकर मगदुम ने कहा कि पति की आर्थिक स्थिति चाहे जो भी हो, अगर उसने अपनी पत्नी और नाबालिग बच्चों को छोड़ दिया है तो वह उनका भरण-पोषण करने के लिए बाध्य है और वह अपनी जिम्मेदारियों से पीछे नहीं हट सकता। इसलिए उसे एक निश्चित रकम देनी होगी।
पारिवारिक अदालत ने पत्नी के लिए 7,000 रुपए और बच्चे के लिए 3,000 रुपए का अंतरिम भरण-पोषण देने का आदेश दिया था। न्यायमूर्ति मगदुम ने कहा कि वर्तमान समय में महंगाई लगातार बढ़ रही है और जीवनयापन की लागत बहुत अधिक है। ऐसे में पत्नी को खुद का भरण-पोषण करने, नाबालिग बेटी का जीवन चलाने और चल रहे मुकदमे को लड़ने के लिए उक्त राशि की आवश्यकता होगी।