OpIndia is hiring! click to know more
Thursday, April 10, 2025
Homeविचारराजनैतिक मुद्देPM की इफ्तार पार्टी में CJI का जाना 'सेकुलरिज्म', मुख्य न्यायाधीश की गणेश पूजा...

PM की इफ्तार पार्टी में CJI का जाना ‘सेकुलरिज्म’, मुख्य न्यायाधीश की गणेश पूजा में प्रधानमंत्री का होना ‘लोकतंत्र पर खतरा’: इतना दोगलापन कहाँ से लाते हो लिब्रांडुओं

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ के घर पहुँचकर पीएम मोदी ने आरती की तो इससे लिबरल कौम के लोगों को समस्या हो गई, लेकिन इसी जगह अगर इफ्तार पार्टी होती तो लिबरलों को न तो लोकतंत्र खतरे में आता और न सेकुलरिज्म।

गणेश चतुर्थी के मौके पर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश के मुख्य न्यायधीश डीवाई चंद्रचूड़ के घर पहुँचे। इस दौरान सीजेआई चंद्रचूड़ और उनकी पत्नी ने प्रधानमंधी का स्वागत किया। बाद में सबने हाथ में थाल लेकर गणेश भगवान की पूजा-अर्चना की… ये दृश्य सामान्य हिंदू के लिए अभिभूत करने वाला था लेकिन लिबरलों के लिए ये किसी जख्म से कम नहीं है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वीडियो को देखने के बाद लिबरल बिलबिलाए हुए हैं। उनके लिए स्वतंत्रता, लोकतंत्र और संविधान सब खतरे में आ गया है। कहा जा रहा है कि अब सीजेआई और प्रधानमंत्री के बीच के रिश्ते खुलकर दिखने लगे हैं। ऐसे में उन्हें आशंका है कि उन्हें अदालत से न्याय मिल सकेगा या नहीं।

रोना रोने वालों में पहला नाम आरफा खानुम शेरवानी का है। उन्हें सीजेआई के घर में पीएम मोदी को आरती करता देख इतना दुख हुआ कि उन्होंने अपने पोस्ट पर लिखा- “इंसान जालिमों की हिमायत में जाएगा। ये हाल है तो कौन अदालत जाएगा।”

उनके हिसाब से यहाँ ‘इंसान’ सीजेआई हैं और ‘जालिम’ पीएम मोदी हैं। अगर पीएम मोदी ही सीजेआई से अच्छे संबंध रखेंगे तो फिर आखिर उन लोगों की कौन सुनेगा।

इसी तरह अगला नाम नेहा सिंह राठौड़ का है। आरती की घंटी की तुलना खतरे की घंटी से करते हुए नेहा राठौड़ कहती हैं- “जज साहब के घर गणपति पूजा की आरती में लोकतंत्र के लिए ख़तरे की घंटी बज रही है।”

आगे वकील इंदिरा जयसिंह इस वीडियो को देखने के बाद कहती हैं कि मुख्य न्यायाधीश ने कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच शक्तियों के विभाजन को लेकर समझौता किया है। सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन को इसकी निंदा करनी चाहिए।

इस तरह अशोक धावले सीजेआई के घर पीएम मोदी को पूजा करते हुए देख कहते हैं अब न्यायाधीश चंद्रचूड़ को उनकी रिटायरमेंट के बाद राज्यसभा में पोस्ट मिलेगी, वो राज्यपाल बनेंगे या फिर अडानी बोर्ड के डायरेक्टर या हो सकता है अगले कानून मंत्री ही बन जाएँ।

प्रशांत भूषण इस वीडियो को देख कहते हैं- हैरानी है कि मुख्य न्यायाधीश ने मोदी को अपने आवास पर प्राइवेट मीटिंग के लिए आने दिया। बहुत बुरा संदेश जाएगा कि जिस न्यायपालिका का काम मौलिक अधिकारों की रक्षा करना है वह सरकार के दायरे में काम करे। प्रशांत भूषण बताते हैं कि कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच दूरी होनी चाहिए।

लिबरल पत्रकार और लिबरल वकीलों के बाद कुछ राजनेता भी हैं जिन्हें पीएम मोदी द्वारा सीजेआई के घर जाने पर आपत्ति हो रही है। शिवसेना के संजय राउत कहते हैं कि उनकी पार्टी का मामला कोर्ट में हैं जिसमें दूसरी पार्टी केंद्र सरकार हैं ऐसे में वो कैसे सोचें कि उन्हें न्याय मिलेगा। इसी तरह पूर्व कॉन्ग्रेस प्रवक्ता प्रियंका चतुर्वेदी भी अपने ट्वीट में इस मुद्दे को उठाती हैं पूछती हैं कि क्या जो महाराष्ट्र का मामला कोर्ट में है उसमें फैसला आ जाएगा या चुनाव आने तक उसे टाला जाता रहेगा।

पूजा-पाठ से है समस्या, इफ्तार पार्टी से नहीं

ध्यान रहे अलग-अलग प्रोफेशन से आने वाले लिबरलों की ये सारी आशंका, ये सारा डर सिर्फ पीएम मोदी के सीजेआई के घर पहुँच जाने के कारण है। दिलचस्प बात ये है कि इसी लिबरल जमात को इफ्तार पार्टी से समस्या नहीं है।

अगर देश का प्रधानमंत्री इफ्तार पार्टी का आयोजन कराए और देश के बड़े बड़े नेता उसमें शामिल होने जाएँ… तब इन्हें डर नहीं सताता कि सेकुलर देश में इस तरह देश के प्रधानमंत्री द्वारा आयोजित इफ्तार से देश की बहुसंख्यक आबादी को कैसा चलेगा।

इफ्तार पार्टी की बात कोई काल्पनिक नहीं है। साल 2009 में प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह द्वारा उनके घर पर इफ्तार पार्टी होस्ट की गई थी और उस समय उनकी मेहमानों में एक चेहरा तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश केजी बालकृष्णन का भी था।

आज लोकतंत्र को खतरे में बताकर चिल्लाने वालों को शायद तब सब कुछ सही लगा हो। तब उन्हें ये डर न सताया हो कि आखिर जब सीजेआई ही प्रधानमंत्री के घर आकर उनसे हँस-हँस कर बात कर रही हैं तो फिर इंसाफ कौन करेगा।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ

इनका ये डर आज सिर्फ इसलिए है क्योंकि देश के प्रधानमंत्री ‘नरेंद्र मोदी’ हैं और वो हिंदू धर्म को मानने वाले सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ के घर जाकर पूजा कर रहे हैं। लिबरलों के हिसाब से तो शायद सीजेआई का धर्म हिंदू है तो उन्हें मन से नास्तिक होना चाहिए, क्योंकि अगर वो अपने धर्म का पालन करेंगे तो इस जमात को हमेशा यही लगेगा कि जो शख्स पूजा पाठ करता है वो कैसे न्याय कर पाएगा! लेकिन वही व्यक्ति बैठकर घर में इफ्तार पार्टी कर दे तो उसकी विश्वसनीयता इनकी नजरों में दुगनी बढ़ जाएगी, उसमें न्याय की क्षमता आ जाएगी, उसके सेकुलरिज्म के कसीदे पढ़ें जाएँगे।

लिबरलों का ये हाल तब है जब उनके ऊपर खुद को न्यूट्रल दिखाने के लिए दबाव है। सोचिए, अगर वो ये दिखावा करना छोड़ दें तो इनके ट्वीट में न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच के संबंध पर बात नहीं होगी बल्कि ये खुलेआम हर हिंदू त्योहार का विरोध करते दिखेंगे।

संविधान देता है धर्म मानने और धर्म का आचरण करने की आजादी

आज जिस लोकतंत्र और संविधान को खतरे में बताकर ये लोग सीजेआई के घर होती पूजा और उसमें शामिल हुए पीएम का विरोध कर रहे हैं वहीं संविधान देश के नागरिकों को अनुच्छेद 25 के तहत अपने-अपने धर्म को मानने की आजादी देता है। वहीं अनुच्छेद 25 (1) में उल्लिखित है कि लोक व्यवस्था, सदाचार और स्वास्थ्य तथा इस भाग के अन्य उपबंधों के अधीन रहते हुए, सभी व्यक्तियों को अंत:करण की स्वतंत्रता का और धर्म को अबाध रूप से मानने, आचरण करने और प्रचार करने का समान हक होगा

अब ये जमात ये तो नहीं कह सकती न कि देश का पीएम बनने से और सीजेआई बनने से देश की नागरिकता छिन जाती है… सच तो यही है कि जो अधिकार एक नागरिक के होते हैं वही अधिकार पीएम मोदी और सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ के पास भी हैं। ऐसे में अगर ये दोनों लोग अपने इन अधिकारों से वाकिफ हैं और इन्हें अपने धर्म का आचरण करने में समस्या नहीं है तो जाहिर है वो लोग इस तरह कार्यक्रमों में आ जा सकते हैं। और अगर लिबरलों के हिसाब से जवाब नहीं होना चाहिए, तो फिर उन्हें आपत्ति का आधार इफ्तार पार्टियों और सम्मेलनों को बनाना चाहिए जहाँ पहुँचकर कार्यपालिका और न्यायपालिका के लोग मिलते भी हैं और उनके बीच हँस-हँसकर बात भी होती है।

OpIndia is hiring! click to know more
Join OpIndia's official WhatsApp channel

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

कभी हथौड़ा लेकर ‘शक्ति प्रदर्शन’, कभी शिक्षकों से बदसलूकी: गली के गुंडों की फोटोकॉपी बने छात्र नेता, अब बिगड़ैल राजनीति पर अंकुश समय की...

जो प्रत्याशी या संगठन धनबल और बाहुबल का इस्तेमाल नहीं करता, या उसके इस्तेमाल में झिझकता है; उसे कमजोर मान लिया जाता है। पूरी चुनावी व्यवस्था इतनी दूषित हो चुकी है कि सही और सकारात्मक  साधनों से लड़कर चुनाव जीतना लगभग असंभव है।

चाऊमीन का ठेला लगाने वाला बन गया कैफे मालिक, चलाने लगा ड्रग्स-सेक्स का गैंग: पहले खुद करता रेप, फिर दूसरों से भी करवाता; वाराणसी...

अनमोल ने 15 लड़कों की गैंग तैयार की थी, जो मासूम लड़कियों को फँसाते, नशा देते, खुद भी रेप करते और फिर दूसरे भेड़ियों के सामने परोस देते।
- विज्ञापन -