Sunday, November 24, 2024
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CM सुक्खू साहब, सिर्फ आपके तनख्वाह छोड़ने से नहीं सुधरेगी हिमाचल की माली हालत, खटाखट वाली राजनीति भी छोड़ दीजिए: जानें कैसे बने हैं बदतर हालात

हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंदर सुक्खू ने गुरुवार (29 अगस्त, 2029) को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, "मंत्रिमंडल में चर्चा करने के बाद सभी सदस्यों ने फैसला किया है अगले 2 महीने तक वह ना तनख्वाह लेंगे, ना ही DA लेंगे और ना ही TA लेंगे। यही अनुरोध CPS साथियों ने भी मान लिया है।"

हिमाचल प्रदेश की कॉन्ग्रेस सरकार के मुखिया सुखविंदर सिंह सुक्खू ने ऐलान किया है कि वह अगले 2 माह तक अपनी तनख्वाह नहीं लेंगे। उनके साथ हिमाचल सरकार के अन्य मंत्री और मुख्य संसदीय सचिव ने भी अगले दो महीने तनख्वाह-भत्ते ना लेने का निर्णय लिया है। CM सुक्खू का कहना है कि यह निर्णय उन्होंने हिमाचल प्रदेश के आर्थिक संकट को देखते हुए किया है। हालाँकि, जिस आर्थिक संकट से निकलने की बात CM सुक्खू कर रहे हैं, वो राज्य पर लेकर भी कॉन्ग्रेस की खटाखट राजनीति आई है।

हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंदर सुक्खू ने गुरुवार (29 अगस्त, 2029) को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, “मंत्रिमंडल में चर्चा करने के बाद सभी सदस्यों ने फैसला किया है अगले 2 महीने तक वह ना तनख्वाह लेंगे, ना ही DA लेंगे और ना ही TA लेंगे। यही अनुरोध CPS साथियों ने भी मान लिया है। उन्होंने भी अगले दो महीने तक कोई भी तनख्वाह और TA-DA ना लेने का निर्णय किया है। यह छोटी धनराशि है, लेकिन इसका महत्व बड़ा है। मैंने सभी विधायकों से भी यही अनुरोध किया है।”

राजनीतिक स्टंट है तनख्वाह छोड़ने का ऐलान

CM सुक्खू ने इसके बाद बताया कि उन्होंने सुधरती अर्थव्यस्था को और आगे बढ़ाने के लिए यह निर्णय लिया है ताकि इस प्रक्रिया में कोई बाधा ना पड़े। दरअसल, हिमाचल प्रदेश इस वक्त बड़ी आर्थिक समस्या में फंसा हुआ है। दो साल पहले सत्ता में आई कॉन्ग्रेस सरकार लगातार उधार पर उधार लेती जा रही है। इससे भी कोई उपाय नहीं निकल रहा है। हिमाचल सरकार की हालत इतनी खराब हो गई है कि राज्य के सरकारी कर्मचारियों का पैसा भी रुक रहा है।

हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री इस मर्ज का इलाज तनख्वाह छोड़ने से कर रहे हैं। हालाँकि, इससे आर्थिक समस्या में कोई बदलाव तो नहीं पड़ेगा। हाँ, कुछ अखबारों में मुख्यमंत्री सह्रदयता की हेडलाइन जरूर छप जाएँगी। दरअसल, यह मर्ज इस बात की है ही नहीं कि कौन अपनी तनख्वाह ले या ना ले। बल्कि असल मुद्दा है उनकी पार्टी की खटाखट राजनीति। हिमाचल प्रदेश में कॉन्ग्रेस सरकार बड़े-बड़े वादे करके सत्ता में आई थी। चाहे वह मुफ्त बिजली हो या फिर 18 से 60 वर्ष की महिलाओं को हर महीने ₹1500 देने का वादा हो।

इसके अलावा उन्होंने राज्य कर्मचारियों को पुरानी पेंशन का वादा भी कर दिया था। अब यही सब दाँव उलटे पड़ रहे हैं। हिमाचल प्रदेश एक छोटा राज्य है, इसके आय के साधन सीमित हैं। इसका खर्चा अपनी आय और केंद्र से मिलने वाली सहायता से पूरा होता है। बाकी की कमी कर्ज लेकर पूरी की जाती है। इन सब के बीच राज्य का कर्ज इतना बढ़ गया है कि उसको चुकाने के लिए नए कर्ज लेने पड़ रहे हैं। हिमाचल की आर्थिक स्थिति को आँकड़ों से समझा जाना चाहिए।

आमदनी अठन्नी, खर्चा रुपैया की है स्थिति

हिमाचल की बदहाल आर्थिक स्थिति इसके 2024-25 के बजट से समझी जा सकती है। वित्त वर्ष 2024-25 के लिए ₹58,444 करोड़ का बजट सुक्खू सरकार ने पेश किया था। इस बजट में भी सरकार का राजकोषीय घाटा (सरकार की आय और खर्चे के बीच का अंतर, जिसे कर्ज लेकर पूरा किया जाता है) ₹10,784 करोड़ है।

इस बजट का बड़ा हिस्सा तो केवल पुराने कर्जा चुकाने और राज्य के कर्मचारियों की पेंशन और तनख्वाह देने में ही चला जाएगा। इस बजट में से ₹5479 करोड़ का खर्च पुराने कर्ज चुकाने, ₹6270 करोड़ का खर्च पुराने कर्ज का ब्याज देने में करेगी। यानी पुराने कर्जों के ही चक्कर बजट का लगभग 20% हिस्सा चला जाएगा।

इसके अलावा सुक्खू सरकार तनख्वाह और पेंशन पर ₹27,208 करोड़ खर्च करेगी। इस हिसाब से देखा जाए तो ₹38,957 का खर्च तो केवल कर्ज, ब्याज, तनख्वाह और पेंशन पर ही हो आएगा। यह कुल बजट का लगभग 66% है। अगर नए कर्ज को हटा दें तो यह हिमाचल के कुल बजट का 80% तक पहुँच जाता है। यानी राज्य को बाकी खर्चे करने की स्वतंत्रता ही नहीं है।

हिमाचल प्रदेश 2024-25 में लगभग ₹1200 करोड़ सब्सिडी पर भी खर्च करने वाला है। यह धनराशि सामान्य तौर पर छोटी लग सकती है, लेकिन आर्थिक संकट में फंसे हिमाचल के लिए यह भी भारी पड़ रही है। इस सब्सिडी में सबसे बड़ा खर्चा बिजली सब्सिडी का है।

क्यों बन गए आर्थिक संकट के हालात

हिमाचल प्रदेश में आर्थिक संकट की इस स्थिति के पीछे कई कारण हैं। इसका एक बड़ा कारण सुक्खू सरकार का आय के नए स्रोतों पर ध्यान ना देना भी हो सकता है। इसके अलावा हिमाचल प्रदेश ने अपने चुनावी वादे के अनुसार पुरानी पेंशन स्कीम लागू कर दी थी। इस कारण से उसको मिलने वाली मदद में भी कमी आई है।

स्थिति यहाँ तक पहुँच गई है कि हिमाचल सरकार NPS में डाला गया कर्मचारियों का पैसा भी वापस माँग रही है। इसके अलावा वह बिगड़े आर्थिक हालातों के बीच राज्य की महिलाओं को भी ₹1500 दे रही है। यह भी उसके बजट पर असर डाल रहा है। हिमाचल सरकार 125 यूनिट बिजली भी मुफ्त देती है, यह भी राज्य पर एक बोझ बन रहा है।

आगे भी नहीं सुधरेगी स्थिति

राज्य सरकार ने हाल ही में बताया है कि वर्ष 2030-31 तक उसका पेंशन पर होने वाला खर्च ₹19,728 करोड़ हो जाएगा। यह वर्तमान में लगभग ₹10,000 करोड़ से भी कम है। वित्त वर्ष 2026-27 से 2030-31 के बीच कुल ₹90,000 करोड़ का खर्चा हिमाचल प्रदेश को पेंशन पर ही करना पड़ेगा।

कॉन्ग्रेस के OPS के वादे से राज्य के अन्य विकास कार्यों के बजट में कटौती होने की आशंका है। ऐसा इसलिए है क्योंकि राज्य के बजट में पहले पेंशन का हिस्सा मात्र 13% था जो कि OPS के बाद बढ़कर 17% हो जाएगा। पुरानी पेंशन के कारण होने वाला यह खर्च राज्य सरकार के कर्मचारियों को दी जाने वाली तनख्वाह पर खर्च के लगभग बराबर होगा।

2026-27 में राज्य सरकार अपने कर्मचारियों को ₹20,639 करोड़ तनख्वाह देगी। 2026-27 में दी जाने वाली पेंशन की धनराशि ₹16,728 करोड़ होगी। राज्य में पेंशन पाने वालों की संख्या भी आने वाले सालों में नौकरी कर रहे कर्मचारियों से ज्यादा हो जाने के कयास हैं।

यह भी बात सामने आई है कि 2030-31 तक राज्य में 2.38 लाख पेंशनर हो जाएँगे। यह संख्या आने वाले समय में राज्य कर्मचारियों से भी अधिक होगी क्योंकि औसतन हर वर्ष 10,000 कर्मचारी रिटायर हो रहे हैं। इसकी तुलना में नए कर्मचारी भर्ती नहीं हो रहे।

हिमाचल प्रदेश को 2026-27 से 2030-31 बीच तनख्वाह और पेंशन पर कुल मिलाकर ₹2.11 लाख करोड़ खर्चने पड़ेंगे। राज्य सरकार की आर्थिक स्थिति को देखते हुए यह अनुमान लगाया गया है कि वह इस बोझ को अकेले सहन नहीं कर पाएगी। इसके लिए उसे विशेष मदद की जरूरत होगी।

कॉन्ग्रेस ने 2022 के हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में जोर-शोर से पुरानी पेंशन स्कीम का वादा किया था और इसे राजनीतिक हथियार बनाया था। हालाँकि, अब इसके दुष्परिणाम सामने दिखने लगे हैं। आर्थिक बोझ के कारण राज्य की अर्थव्यवस्था चरमरा रही है।

कर्ज का बढ़ रहा है बोझ

कॉन्ग्रेस सरकार का धुआंधार तरीके से कर्ज लेने का मुद्दा इस बीच जोर पकड़ रहा है। हिमाचल प्रदेश पर वर्तमान में ₹88,000 करोड़ से भी अधिक का कर्ज है। कॉन्ग्रेस सरकार बीते डेढ़ वर्ष में ही लगभग ₹19,000 करोड़ का कर्ज राज्य पर चढ़ाया है। लोकसभा में दिया गया जवाब बताता है वित्त वर्ष 2024-25 खत्म होते-होते राज्य का कर्ज ₹94000 करोड़ के पार हो जाएगा।

राज्य के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने खुद माना है कि उनके राज्य को कर्ज चुकाने के लिए ही नया कर्ज लेना पड़ रहा है। राज्य का कर्ज उसकी GDP का 40% से अधिक हो चुका है। उसका राजकोषीय घाटा भी GDP का लगभग 5% है। जबकि नियमों के मुताबिक़, किसी भी राज्य का कर्ज GDP का 20% जबकि राजकोषीय घाटा 3% से अधिक नहीं होना चाहिए।

राज्य की सत्ता में रेवड़ी वादे करके आई कॉन्ग्रेस अब राजनीतिक स्टंट में जुटी है। कॉन्ग्रेस शासित अन्य राज्यों का भी हाल कोई ख़ास अच्छा नहीं है। कर्नाटक की कॉन्ग्रेस सरकार भी दलितों के विकास के फंड में से अपनी गारंटियाँ पूरी करने में जुटी हुई हैं। यह राजनीति राज्यों के लिए घातक तो है ही, देश के आर्थिक विकास में भी रोड़े डालने वाली है।

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