Thursday, October 3, 2024
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मृतसंग्रहणम्, ध्वजारोहणम्, स्नपनम्, चक्रस्नानम्… जानिए क्या है ब्रह्मोत्सवम्, क्या हैं इसके विधान: तिरुपति मंदिर में महाउत्सव की तैयारियाँ संपन्न, प्रतिदिन बनेंगे 72 लाख मोदकम्

ध्वजारोहणम से ब्रह्मोत्सव की आधिकारिक शुरुआत होती है। यह मंदिर परिसर के ध्वज स्तम्भ पर ध्वज फहराया जाता है। मंदिर के अधिकारी पुजारियों द्वारा वैदिक मंत्रों के बीच गरुड़ की तस्वीर वाला ध्वज फहराते हैं। कहा जाता है कि ब्रह्मा, इंद्र, यम, अग्नि, कुबेर और वायुदेव जैसे देवताओं तथा वसिष्ठ और विश्वामित्र जैसे ऋषियों को आमंत्रित करने के लिए गरुण देवलोक जाते हैं।

तिरुपति मंदिर के प्रसाद लड्डू में जानवरों की चर्बी वाले घी को लेकर उठे विवाद के बीच वेंकटेश्वर मंदिर अब ब्रह्मोत्सव की तैयारी कर रहा है। यह त्योहार नौ दिनों तक चलेगा, जिसमें प्रतिदिन लगभग एक लाख भक्तों के आने की उम्मीद है। यह विशाल उत्सव 4 से 12 अक्टूबर तक आयोजित किया जाएगा। इससे पहले मंगलवार (1 अक्टूबर 2024) को मंदिर शुद्धिकरण का पारंपरिक अनुष्ठान किया गया।

मंदिर का प्रबंधन करने वाले तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम (TTD) के कार्यकारी अधिकारी जे श्यामला राव ने बताया कि यह अनुष्ठान ‘कोइल अलवर तिरुमंजनम’ के नाम से मशहूर है। यह अनुष्ठान सभी प्रमुख त्योहारों से पहले साल में चार बार किया जाता है। ये त्योहार हैं तेलुगु उगादी, अनिवरा अस्थानम, वैकुंठ एकादशी और ब्रह्मोत्सवम।

अनुष्ठान के दौरान मंदिर परिसर, मूर्तियों और पूजा के बर्तनों को साफ किया जाता है। मंदिर की दीवारों, छतों और खंभों पर ‘परिमलम’ नामक एक विशेष सुगंधित मिश्रण लगाया जाता है। यह पूरी प्रक्रिया सुबह 6 बजे से 10 बजे के बीच होती है। इस दौरान मुख्य देवता को सफेद आवरण से ढक दिया जाता है और सफाई पूरा होने के बाद इसे हटा जाता है। बाद में देवता को विशेष पूजा और नैवेद्यम अर्पित किए जाते हैं।

बताते चलें कि मंदिर में लड्डू बनाने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले घी में जानवरों की चर्बी मिले होने की बात सामने आने के बाद TTD ने घी रखने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले टैंकों और भंडारण क्षेत्र में शुद्धिकरण अनुष्ठान कराया था। ये अनुष्ठान लड्डू और अन्य प्रसाद तैयार करने और रखने वाली जगह के साथ-साथ रसोई और प्रसाद रखने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली बर्तन के लिए किया गया था।

अधिकारियों ने बताया कि ‘पोटू’ के नाम से प्रसिद्ध रसोई में प्रतिदिन 65,000-80,000 तीर्थयात्रियों के लिए लगभग 3.5 लाख लड्डू तैयार किए जाते हैं। अब ब्रह्मोत्सव के दौरान प्रतिदिन कम से कम 8 लाख लड्डू बनाने की तैयारी की जा रही है। माना जा रहा है कि ब्रह्मोत्सव के दौरान श्रद्धालुओं की संख्या प्रतिदिन लगभग एक लाख होने की उम्मीद है।

क्या होता है ब्रह्मोत्सव

ब्रह्मोत्सवम नौ दिनों तक चलने वाला एक उत्सव है। हर साल तिरुमाला तिरुपति श्री वेंकटेश्वर मंदिर में मनाया जाने वाले इस त्यौहार का नाम भगवान ब्रह्मा के नाम पर पड़ा है। कहा जाता है कि उन्होंने ने ही तिरुपति मंदिर में इस त्यौहार की शुरुआत की थी। इसलिए इसे ब्रह्मोत्सवम या ब्रह्मा का उत्सव कहा जाता है। इसे तिरुमाला के सभी त्यौहारों में सबसे पवित्र माना जाता है।

किंवदंती है कि भगवान ब्रह्मा ने पुष्करिणी नदी के पवित्र तट पर तिरुमाला तिरुपति मंदिर में श्री बालाजी की पूजा की थी और मानव जाति की रक्षा के लिए उनके प्रति आभार व्यक्त किया था। इस त्यौहार के दौरान बालाजी के नाम से प्रसिद्ध भगवान श्री वेंकटेश्वर की प्रतिमा को को विभिन्न रथों में सवार करके सड़कों पर घुमाया जाता है। इस दौरान लाखों लोग उनका आशीर्वाद लेने आते हैं।

ब्रह्मोत्सव उत्सव के दौरान श्रद्धालु गहन एवं दिव्य आनंद का अनुभव करते हैं। इसे वे ‘वैकुंठ अनुभव’ कहते हैं। ब्रह्मोत्सव के शुरू होने से पहले भगवान श्री वेंकटेश्वर के मंदिर की धार्मिक ग्रंथों में दिए गए दिशा-निर्देशों के अनुसार सफाई की जाती है। मंदिर परिसर और उसके आस-पास के क्षेत्र को फूलों और आम के पत्तों से सजाया जाता है। इस प्रक्रिया को आलय शुद्धि और अलंकारम (सजावट) कहा जाता है।

ब्रह्मोत्सव के पहले दिन से एक दिन पहले मृतसंग्रहणम (मिट्टी इकट्ठा करने की प्रक्रिया) की जाती है। मंदिर के अधिकारी विश्वक्सेन, अनंत, सुदर्शन और गरुड़ जैसे देवताओं से प्रार्थना करते हैं। वे धरती माता से भी प्रार्थना करते हैं और थोड़ी मात्रा में मिट्टी इकट्ठा करते हैं, जिसके साथ अंकुरार्पण अनुष्ठान किया जाता है। इसमें मिट्टी को एक कमरे में फैलाया जाता है और उसमें नौ प्रकार के अनाज बोए जाते हैं। यह समृद्धि, उर्वरता और प्रचुरता का प्रतीक है।

ध्वजारोहणम से ब्रह्मोत्सव की आधिकारिक शुरुआत होती है। यह मंदिर परिसर के अंदर नादिमी पाडी कविली के पास ध्वजा स्तम्भ पर फहराया जाता है। मंदिर के अधिकारी पुजारियों द्वारा वैदिक मंत्रों के बीच गरुड़ की तस्वीर वाला ध्वज फहराते हैं। कहा जाता है कि ब्रह्मा, इंद्र, यम, अग्नि, कुबेर और वायुदेव जैसे देवताओं तथा वसिष्ठ और विश्वामित्र जैसे ऋषियों को आमंत्रित करने के लिए गरुण देवलोक जाते हैं।

भगवान को अलग-अलग वाहनों पर तिरुमाला की सड़कों पर जुलूस के रूप में ले जाया जाता है। प्रत्येक वाहन का अपना महत्व है, और वह अपने तरीके से भगवान का संदेश देता है। ब्रह्मोत्सव के दौरान भगवान को शोभायात्रा में घुमाने के बाद मुख्य मंदिर में उनका दरबार लगाया जाता है। इसके बाद भगवान को स्नपनम की प्रक्रिया शुरू की जाती है। इसे उत्सवनंतर स्नपनम भी कहा जाता है।

स्नपनम के तहत भगवान को हर्बल पानी से स्नान कराया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इससे शोभायात्रा के दौरान भगवान को होने वाली थकान और तनाव से राहत मिलती है। इसके बाद मंदिर के पुजारी भगवान को नैवेद्यम चढ़ाते हैं। फिर चूर्णाभिषेकम प्रक्रिया में भगवान और उनकी पत्नियों को चंदन के चूर्ण से अभिषेक करने के बाद स्नान कराया जाता है।

यह ब्रह्मोत्सव के नौवें दिन की सुबह किया जाता है। इसके बाद भगवान को तिरुमाला की सड़कों पर जुलूस के रूप में ले जाया जाता है। मंदिर के पुजारी भगवान के लिए इस्तेमाल किए गए चंदन के चूर्ण को भक्तों में वितरित करते हैं। ऐसा माना जाता है कि चंदन के चूर्ण में व्यक्ति के मार्ग से आने वाली बाधाओं को दूर करने की शक्ति होती है।

चक्रस्नानम अनुष्ठान यज्ञ के बाद स्नान अनुष्ठान के समान है। ब्रह्मोत्सव के अंतिम दिन की सुबह भगवान, उनकी पत्नियाँ और श्री सुदर्शनचक्र को स्वामी पुष्करिणी में स्नान कराया जाता है। भक्त श्री सुदर्शनचक्र के साथ स्वामी पुष्करिणी में भी स्नान कर सकते हैं। इसे बहुत पवित्र अनुष्ठान माना जाता है और भक्त इस अनुष्ठान में धर्म, जाति या पंथ से परे भाग लेते हैं।

ब्रह्मोत्सव के अंतिम दिन ऋषियों और देवताओं को देवलोक में विदा करने की रस्म को देवतोद्वासनाम कहा जाता है। यह दैनिक अर्चना के बाद किया जाता है। उत्सव के आयोजन के लिए भगवान ब्रह्मा की प्रशंसा की जाती है और मंदिर के पुजारी और अधिकारी उनका सम्मान करते हैं। ब्रह्मोत्सव के अंतिम दिन की शाम को ध्वज को नीचे उतार दिया जाता है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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