नागरिकता संशोधन कानून (CAA) पर फैले भ्रम को दूर करने के लिए भाजपा ने घर-घर पहुॅंचने का फैसला किया है। इस कड़ी में पार्टी 3 करोड़ परिवारों तक पहुॅंचेगी। कानून के विरोध के नाम पर देश के कुछ हिस्सों में हुई हिंसा के बीच पार्टी ने यह फैसला किया है। इस बीच, करीब 1100 बुद्धिजीवियों ने भी इस कानून का समर्थन करते हुए इसके लिए केंद्र सरकार और संसद को बधाई दी है।
CAA पर विपक्षियों पार्टियों और विरोधियों के भ्रम के जवाब में बीजेपी ने यह फैसला किया है। इस दौरान कार्यकर्ता घर-घर जा कर कानून को लेकर जागरूकता बढ़ाएँगे।
इसकी जानकारी शनिवार को बीजेपी महासचिव और राज्यसभा सांसद भूपेंद्र यादव ने दी। उन्होंने कहा, “पार्टी ने तय किया है कि आने वाले 10 दिनों में हम एक विशेष कैंपेन लॉन्च करेंगे। इसके तहत हम 3 करोड़ परिवारों से मिलेंगे। नागरिकता संशोधन विेधेयक पर लोगों तक अपनी बात पहुंचाएँगे। इस बिल के समर्थन में हम जगह-जगह 250 से ज्यादा प्रेस कॉन्फ्रेंस करेंगे।”
Bhupender Yadav, BJP in Delhi: Our party has decided that in the coming 10 days we will launch a special campaign and contact over 3 crore families for Citizenship Amendment Act. We will hold press briefings in support of this Act at more than 250 places. pic.twitter.com/o8gHHIeMkv
— ANI (@ANI) December 21, 2019
दूसरी तरफ 1,100 अकादमिक विद्वानों, बुद्धिजीवियों और रिसर्च स्कॉलर्स ने इस कानून के समर्थन में साझा बयान जारी किया है। बयान में कहा गया है कि यह एक्ट धर्म के आधार पर सताए गए लाखों शरणार्थियों की माँग को पूरा करता है, जो पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से प्रताड़ित होकर भारत आए हैं। इसके अलावा यह ऐक्ट पड़ोसी देशों में प्रताड़ित होने वाले अहमदिया, हजारा, बलोच या फिर अन्य किसी समुदाय के लोगों को भारतीय नागरिकता हासिल करने से नहीं रोकता।
More than 1,000 academicians from universities across the country release statement in support of Citizenship Amendment Act
— Press Trust of India (@PTI_News) December 21, 2019
इतना ही नहीं, अकादमिक जगत के विद्वानों ने इस एक्ट के लिए केंद्र सरकार और संसद को बधाई भी दी। साथ ही पत्र में भारत के सिद्धांतों को बनाए रखने और धर्म के आधार पर पीड़ित समुदायों को शरण देने के लिए सरकार की सराहना की। बुद्धिजीवियों ने सरकार द्वारा लाए गए एक्ट को जरूरी बताते हुए ये भी कहा गया कि 1950 के नेहरू-लियाकत पैक्ट की असफलता के चलते यह लाया गया है। यहाँ तक कि विचारधारा से ऊपर उठकर सीपीएम, कॉन्ग्रेस जैस पार्टियों ने भी पाकिस्तान और बांग्लादेश से आने वाले शरणार्थियों को भारत की नागरिकता देने की माँग की थी। इनमें ज्यादातर दलित समुदाय के लोग हैं।
पत्र में नॉर्थ ईस्ट के राज्यों की चिंताओं को भी ध्यान में रखने की बात करते हुए कहा गया, “हम यह भी मानते हैं कि पूर्वोत्तर के राज्यों की चिंताओं को भी सुना जाना चाहिए और उनका समाधान होना चाहिए। यह ऐक्ट भारत की सेक्युलरिज्म की परंपरा और संविधान के मुताबिक है। यह किसी भी धर्म और किसी भी देश के व्यक्ति को भारत की नागरिकता लेने से नहीं रोकता।”
साथ ही पत्र में आरोप लगाया गया है कि देश में जानबूझकर डर का माहौल फैलाया जा रहा है, जिसकी वजह से देश के कई हिस्सों में और खास तौर पर बंगाल में हिंसा हुई। बयान में जरिए बुद्धिजीवियों द्वारा समाज के हर तबके से अपील की गई है कि वे शांति बरतें और सांप्रदायिकता और अराजकतावाद की चपेट में न आएँ।
समर्थन में बयान जारी करने वालों में जेएनयू के आनंद रंगनाथन और प्रोफेसर श्री प्रकाश सिंह, वरिष्ठ पत्रकार कंचन गुप्ता, इंस्टिट्यूट ऑफ पीस एंड कॉन्फ्लिक्ट स्टडीज के सीनियर फेलो अभिजीत अय्यर मित्रा, सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट जे साई दीपक, पटना यूनिवर्सिटी के डिपार्टमेंट ऑफ लॉ के गुरु प्रकाश, आईसीएसएसआर की सीनियर फेलो मीनाक्षी जैन, शांतिनिकेतन स्थित विश्वभारती के डॉक्टर देबाशीष भट्टाचार्य, एमिटी यूनिवर्सिटी के मानद प्रोफेसर जीतेन जैन, मणिपुर यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर प्रोफेसर एपी पांडेय, डीयू के भास्कराचार्य कॉलेज की डॉक्टर गीता भट्ट समेत कई नाम शामिल हैं।