Friday, November 22, 2024
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‘हमारी लड़ाई बंग्लादेशियों से है, ना कि भारतीय अल्पसंख्यकों से’- हेमंत बिस्वा शर्मा

'बांग्लादेशी घुसपैठिए हमारे देश में आकर राजनीतिक समस्या को जन्म देते हैं क्योंकि वो यहाँ के समाज को अपना नहीं मानते हैं।'

केंद्र सरकार के प्रस्ताव पर लोकसभा में नागरिकता संशोधन विधेयक 2016 पारित होने के साथ ही इसका विरोध भी देखने को मिला। इस मुद्दे पर इंडियन एक्सप्रेस ने हेमंत बिस्वा शर्मा से बातचीत की। बता दें कि हेमंत बिस्वा शर्मा 23 साल तक कॉन्ग्रेस के साथ काम करने के बाद बीजेपी में शामिल हो गए थे। हेमंत ने दावा किया है कि आशंकाओं के बावजूद, पूर्वोत्तर के लोग मोदी सरकार के विकास कार्यों के लिए भाजपा को वोट देंगे।

इस दौरान जब हेमंत बिस्वा शर्मा से पूछा गया कि नागरिकता (संशोधन) विधेयक, 2016 के विरोध के बावजूद, भाजपा ने पूर्वोत्तर के लगभग सभी राज्यों में प्रमुख गठबंधन किए हैं। ये करने में वे कैसे सफल रहे? तो उन्होंने इसका जवाब देते हुए कहा कि जब पार्टी ने नागरिकता (संशोधन) विधेयक को पारित करने की कोशिश की, तो कुछ लोगों ने इसका समर्थन किया और कुछ लोगों ने आरक्षण को मुद्दा बनाया। लेकिन उन्होंने परिणाम की चिंता किए बिना इस विधेयक को पारित करवाया, क्योंकि उनका मानना है कि किसी एक मुद्दे पर चुनाव नहीं लड़ा जा सकता है। और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में वहाँ पर जो विकास कार्य हुआ है, उसके बाद कोई भी भाजपा के खिलाफ नहीं है। सभी को ऐसा लगता है कि उन्होंने सही किया है।

उनसे पाकिस्तान के बालाकोट पर भारतीय वायुसेना की तरफ से किए गए एयर स्ट्राइक पर पूछा गया कि क्या राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा चुनाव के सभी मुद्दों पर भारी पड़ेगा। क्या इससे भाजपा को कोई फायदा मिल सकता है? इसका जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं है कि सिर्फ इसी मुद्दे पर लोग वोट करेंगे। लोग सरकार के पूरे कामकाज के आधार पर वोट देंगे। अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा कि अभी अगर सिर्फ पिछले 6 महीने की ही बात की जाए, तो आयुष्मान भारत, आर्थिक रूप से पिछड़े सवर्णों को 10% आरक्षण आदि कई ऐसे मुद्दे हैं, जो पीएम मोदी के पक्ष में है। सरकार जहाँ राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर सक्रिय है, वहीं स्वास्थ्य और आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को लेकर गंभीर भी। ऐसे में मतदाता पीएम मोदी को पूरे कामकाज के लिए वोट देंगे।

असम में हुए आंदोलन को लेकर जब उनसे पूछा गया तो उन्होंने इसके धार्मिक और सामाजिक दोनों पहलूओं को जवाब के तौर पर रखा। हेमंत बिस्वा शर्मा ने बताया कि असम आंदोलन में उन मजहबी प्रवासियों का हवाला दिया गया था, जिनकी वजह से असम के लोग अपनी पहचान खो रहे हैं। उनका कहना है कि हमारी पहचान से जुड़ा संकट बांग्लादेशियों से है, ना कि भारतीय समुदाय विशेष से। भारतीय अल्पसंख्यक हों या हिंदू या सिख-बौद्ध-जैन… इनसे आपको समस्याएँ इसलिए नहीं होती क्योंकि ये सभी लोग राजनीतिक रूप से भारतीय होते हैं और आपके सामाजिक ताने-बाने को तोड़ते नहीं हैं। जबकि बांग्लादेशी घुसपैठिए हमारे देश में आकर राजनीतिक समस्या को जन्म देते हैं क्योंकि वो यहाँ के समाज को अपना नहीं मानते हैं।

हेमंत बिस्वा शर्मा ने यह भी बताया कि पहले पूरे भारत में लोग इस बारे में खुलकर नहीं बोलना चाहते थे। क्योंकि उन्हें लगता था कि अगर वो कुछ बोलेंगे तो उनको धर्मनिरपेक्ष नहीं समझा जाएगा। मगर पिछले 10 वर्षों में, और खासकर भाजपा के सत्ता में आने के बाद, लोगों ने थोड़ा और खुलकर बोलना शुरू कर दिया है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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