Friday, October 18, 2024
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जिस दरभंगा में 1930-40 में हवाई जहाज और रनवे था… वो बंद क्यों हुआ? क्यों कॉन्ग्रेसी सरकारों ने यहाँ की जनता को छला?

“उड़ान” नाम की योजना के तहत आज जिस दरभंगा एयरपोर्ट का विकास हो रहा है, उसकी स्थापना काफी पहले हो चुकी थी। द्वित्तीय विश्वयुद्ध के बाद “दरभंगा एविएशन” नाम की एक कंपनी भी थी। 4 हवाई जहाज थे लेकिन 1962 में सब बंद कर दिया गया। क्यों?

भारत की फिरंगियों से आजादी मिलने को एक दशक से ज्यादा का वक्त बीत चुका था। उस वक्त बिहार के ही डॉ. राजेन्द्र प्रसाद राष्ट्रपति थे और उन्होंने 4 जुलाई, 1962 को दरभंगा के महाराज कामेश्वर सिंह को धन्यवाद देते हुए एक चिट्ठी लिखी थी।

इस दौर तक राजशाही बीत चुकी थी, फिर एक लोकतान्त्रिक देश के राष्ट्रपति अपने ही देश के किसी राजवाड़े को धन्यवाद क्यों कह रहे थे? ये चिट्ठी पटना से हैदराबाद जाने के लिए हवाई-जहाज उपलब्ध करवाने और जहाज के कर्मचारियों के अच्छे व्यवहार की प्रशंसा के लिए थी। 

“उड़ान” नाम की योजना के तहत आज जिस दरभंगा एयरपोर्ट का विकास हो रहा है, उसकी स्थापना काफी पहले हो चुकी थी। बाद में जब सभी चीज़ों को लाइसेंस परमिट राज में घुसाया जाने लगा तो ऐसी कई व्यवस्थाएँ तथाकथित समाजवाद ने नष्ट कर डाली।

नरसिम्हा राव के उदारीकरण के दौर के बाद भाजपा सरकारों ने हवाई यात्रा जैसी चीज़ों को आम आदमी के पास पहुँचाने की योजना बनाई। “उड़ान” (यूडीएएन) ऐसी ही महत्वाकांक्षी योजनाओं में से एक है, जिसके तहत देश के 486 क्षेत्रीय हवाई अड्डों को नागरिक उड़ानों के लिए उपलब्ध करवाने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा गया है।

करीब सौ साल पहले 1930 के दशक में ही दरभंगा महाराज ने अपने उपयोग के लिए विमान लिया था। फिर 1940 के दशक में एक रनवे भी तैयार हो गया। सन 1950 में उन्होंने नागरिकों के लिए उड्डयन की व्यवस्था की थी।

इस काम के लिए द्वित्तीय विश्वयुद्ध के बाद “दरभंगा एविएशन” नाम की एक कंपनी की स्थापना भी की गई। इस कंपनी के पास सेना से खरीद लिए गए चार डगलस डीसी3 हवाई जहाज थे। इनमें से दो दुर्घटनाग्रस्त हो गए, एक को किसी निजी कंपनी को बेच दिया गया और एक भारतीय सेना ने ले लिया था। इस तरह 1950 में शुरू हुई इस कंपनी ने 1962 में काम करना बंद कर दिया।

फिर कुछ साल और बीते और बिहार की दशा कुछ और बिगड़ी। कुछ तो दरभंगा और उसके आस-पास के उत्तरी बिहार के जिलों के हर साल बाढ़-पीड़ित होने की वजह से आई और कुछ लालू के जंगल-राज के दौर के अपराधीकरण से।

पलायन चलता रहा, लेकिन लोग अब भी अपनी जड़ों से जुड़े थे और छुट्टियों में घर लौटते थे। आज भी पर्व-त्योहारों के समय किसी भी महानगर से बिहार की तरफ आने वाली ट्रेनों में तिल रखने की जगह नहीं होती। ऐसे में दरभंगा के लिए भी एक अदद एयरपोर्ट की माँग लगातार बढ़ती जा रही थी। समस्या ये थी कि केंद्र की कॉन्ग्रेसी सरकारों को जन सरोकारों से कोई लेना-देना नहीं था।

बिहार में जब नीतीश कुमार की सरकार आई, तो वो भाजपा के समर्थन से बनी सरकार थी। जब केंद्र में भी भाजपा की सरकार बनी तो आम आदमी के लिए दिल्ली तक अपनी आवाज़ पहुँचाना भी सुगम हुआ।

करीब तीन दशक से ऊपर से की जा रही दरभंगा एयरपोर्ट की माँग आखिर सुन ली गई और 2018 में नए एयरपोर्ट का शिलान्यास हो गया। इसके बावजूद लोगों को, पिछले अनुभवों के कारण, कम ही भरोसा था कि सचमुच कभी एयरपोर्ट बनेगा। लेकिन करीब दो वर्षों में एयरपोर्ट का काम पूरा हो चुका है और अब नवम्बर से यहाँ से स्पाइस जेट की तीन उड़ानें दिल्ली, बेंगलुरु और मुंबई जाएँगी।

बाकी मेरा विश्वास है कि स्थानीय नेताओं में इस काम का श्रेय लेने की होड़ मच चुकी होगी। वैसे जनता को पता तो है ही कि काम किसने किया है, इसलिए आसन्न चुनावों में वोट का स्वाद चखने के लिए भी नेताओं को तैयार रहना चाहिए।

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Anand Kumar
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