प्रद्युम्न ठाकुर का नाम सुना है? कुछ वर्ष पहले सुना होगा, बस अचानक पूछ लेने पर आपको याद नहीं आया है। दिल्ली के पास गुरुग्राम में ये रयान इंटरनेशनल स्कूल का छात्र था। ये सात साल का बच्चा एक दिन (8 सितम्बर 2017) स्कूल में ही एक वाशरूम के पास मिला। उस वक्त उसके गले और शरीर पर गंभीर चोटों के निशान थे। अफरातफरी में उसी स्कूल के एक बस कंडक्टर पर बच्चे की हत्या करने का अभियोग लगा।
पुलिस ने प्रारंभिक जाँच के बाद उसी बस कंडक्टर को हत्या के अभियोग में गिरफ्तार कर लिया। बच्चे की मौत हो चुकी थी, वो गवाही देने की स्थिति में नहीं था और सोशल मीडिया पर अपना क्षोभ व्यक्त कर रहे कई लोगों का मानना था कि ये हत्या चरसी कंडक्टर ने ही की है।
हरियाणा पुलिस की जाँच सीसीटीवी कैमरे पर आधारित थी। उसमें नजर आ रहा था कि प्रद्युम्न के गले से खून बह रहा है और वो जैसे-तैसे वॉशरूम से बाहर आने की कोशिश कर रहा है। वो लम्बे गलियारे में गिर पड़ा। स्कूल के कर्मचारी वहाँ पहुँच गए थे और उन्होंने अशोक कुमार नाम के कंडक्टर को मदद के लिए कहा। अशोक ने ही प्रद्युम्न को उठाकर कार में डाला था, जिससे उसे अस्पताल ले जाया गया।
एक नामी-गिरामी स्कूल में हुई बच्चे की हत्या की खबर से सारा देश हिल गया। हरियाणा पुलिस ने दस लोगों को हिरासत में लेकर पूछताछ की और कपड़ों पर लगे खून और उँगलियों के निशान के आधार पर अशोक कुमार को कातिल घोषित कर दिया। ये निशान संभवतः बच्चे को कार तक पहुँचाने में अशोक कुमार के कपड़ों पर लग गए होंगे।
उस वक्त के डीसीपी सुमित कुमार ने बताया कि बस के टूल किट में वो सब्जी काटने वाला चाकू था, जिससे हत्या हुई। कहा गया कि उसे धोने के लिए कंडक्टर अशोक स्कूल के बाथरूम में ले गया था, जहाँ प्रद्युम्न पहले से मौजूद था। अशोक ने बच्चे का यौन शोषण करने की कोशिश की और बच्चे के विरोध करने पर उसने चाकू चला दिया जिससे बच्चे की जान चली गई। पुलिस ने यह भी कहा कि इस हत्या में केवल कंडक्टर अशोक ही शामिल था, उसका कोई साथी नहीं था।
एक गरीब बस कंडक्टर, वो भी पुलिस के मुताबिक नशेड़ी, ऊपर से बच्चे का यौन शोषण करने की कोशिश में उसकी हत्या कर दे! ऐसे किसी को कोई मदद क्यों मिलनी चाहिए? हरियाणा बार एसोसिएशन के वकीलों ने भी साफ़ कह दिया कि इस गरीब, नशेड़ी कंडक्टर का मुकदमा उनमें से कोई नहीं लड़ने वाला। बात भी सही थी, आखिर एक गरीब बेकसूर भी हो सकता है, ऐसा सोचा भी क्यों जाए?
मगर समस्या यह थी कि प्रद्युम्न ठाकुर के परिवार वाले ये मानने को तैयार नहीं थे कि अशोक नाम के उस बस कंडक्टर ने उनके बच्चे की हत्या की है। इस वक्त तक हरियाणा पुलिस अपने तरीकों से अशोक से अपराध भी कबूल करवा चुकी थी। इन सबके बावजूद प्रद्युम्न के माता-पिता मान नहीं रहे थे कि ये हत्या अशोक नाम के कंडक्टर ने की है। संभवतः पूरे मामले में इक्का-दुक्का लोगों को छोड़ कर सिर्फ वही थे, जो गरीब कंडक्टर को फाँसी पर टाँगने को तैयार नहीं थे।
आखिरकार बच्चे के माता-पिता के दबाव पर हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने मामले की जाँच का काम सीबीआई को दे दिया। जाँच जब ढंग से शुरू हुई तो मामले में नए खुलासे होने लगे। जिस बस में कंडक्टर अशोक काम करता था, उसके ड्राइवर सौरभ ने बताया कि चाकू बस के टूल किट में था, ऐसा कहने के लिए उसे पुलिस ने कहा था।
प्रद्युम्न के शव की फॉरेंसिक जाँच में पता चल चुका था कि यौन शोषण का कोई मामला नहीं था। स्कूल के माली हरपाल सिंह ने बताया कि पहले अशोक के कपड़ों पर खून के कोई दाग नहीं थे। वो निशान बच्चे को कार तक पहुँचाने में ही लगे होंगे।
थोड़े ही समय के बाद सीबीआई की जाँच रयान इंटरनेशनल स्कूल के ही ग्यारहवीं कक्षा के एक छात्र तक पहुँच गई। सोलह वर्षीय इस छात्र ने प्रद्युम्न की हत्या इसलिए की थी ताकि स्कूल की पैरेंट-टीचर मीटिंग ना हो और परीक्षाएँ कुछ दिनों के लिए टाल दी जाएँ।
जैसा रायन इंटरनेशनल स्कूल है, ये कहना नहीं होगा कि हत्या करने वाला ये “बच्चा” किस किस्म के आर्थिक परिवेश से आता था। स्कूल प्रबंधन में लापरवाही बरतने के लिए रयान इंटरनेशनल स्कूल के तीन ट्रस्टी भी बाद में गिरफ्तार हुए थे। उन्हें कुछ समय बाद जमानत मिल गई।
इस मामले के खुलने के बाद हरियाणा की सरकार ने स्कूलों में बच्चों की सुरक्षा बढ़ाए जाने के लिए कई नीतिगत सुधार भी किए थे। जनभावनाओं का अंदाजा लगाना हो तो बता दें कि इस मामले में जनता से शांति बनाए रखने के लिए, मृत बच्चे के पिता, वरुण ठाकुर को जनता से अपील करनी पड़ी थी।
जाहिर है कि हरियाणा एक भाजपा शासित राज्य था तो “बनाना रिपब्लिक” की तर्ज पर किसी को पकड़ कर फाँसी पर टाँग देने के लिए कई गिरोह लालायित थे। जनभावनाओं का उन्होंने जम कर दोहन भी किया और बेक़सूर गरीब बस कंडक्टर अशोक कुमार की #मीडिया_लिंचिंग तो लगभग कर ही डाली थी। शुक्र है कि प्रद्युम्न के माता-पिता नहीं माने और उन्होंने मामले की पूरी जाँच करवा डाली।
पुरानी घटनाओं से सीखना हो तो सबसे पहले ये सीखिए कि अपराध के मामले हों तो जज्बात आपा को घर छोड़ आइए। जरा-जरा सी बात पर हर्ट होती सेंटिमेंट सिस्टर और हर मोड़ पर जिसे ठेस लग जाए, ऐसी जज्बात आपा का यहाँ कोई काम नहीं होता।
जघन्य अपराधों के मामले में मीडिया लिंचिंग नहीं तटस्थ भाव से जाँच की जरूरत होती है। बाकी राजनेताओं का क्या है? आज गिद्ध की तरह हाथरस में मंडरा रहे हैं तो कल कहीं और होंगे। जज्बात आपा को घर छोड़ कर ना आने की वजह से किसी बेक़सूर की मीडिया लिंचिंग में आप शामिल होना चाहते हैं, या बेगुनाह के क़त्ल का पाप अपने सर नहीं लेना, ये तो आपको सोचना है।