“कबीरा इस संसार में भाँति-भाँति के लोग..” कबीरा कहता ही रहा मगर निधि ने नहीं सुना। नहीं सुना तो परिणाम दुखद निकले। इक्कीस वर्षों तक NDTV की पत्रकार रह चुकी निधि राजदान के साथ हार्वर्ड यूनिवर्सिटी (Harvard University) ने एक दुर्भाग्यपूर्ण प्रैंक (मजाक) कर दिया है। पोटेंशियल हार्वर्ड एसोसिएट प्रोफेसर निधि राजदान ने कहा कि एसोसिएट प्रोफेसर के तौर पर ज्वाइन करने की बातें हार्वर्ड नहीं बल्कि ‘व्हाट्सएप्प यूनिवर्सिटी’ (WhatsApp University) से जारी की गईं थी और वो एक साइबर फ्रॉड या एक तरह के फिशिंग अटैक का शिकार हुई हैं।
इस पूरे प्रकरण में एक महत्वपूर्ण बात यह है कि इसमें एनडीटीवी ने ही निधि राजदान को कई महीनों से ‘हार्वर्ड यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर निधि’ बताकर जमकर फेक न्यूज़ भी चला डालीं। इससे भी बड़ा स्कैम, जो निधि लोगों के साथ करती रही, वो ये कि बिना किसी इंटरव्यू के वो प्रोफेसर बनी घूमती रही और ‘तीस मार खाँ गिरी’ ये कि फिर अपने नाम के नीचे जॉब मिलने से पहले ही ‘प्रोफेसर’ लगा कर ‘जानकार’ वाले मोड में एनडीटीवी पर छपती रही।
निधि राजदान कई दिनों से ट्विटर पर ‘भक्तों’ को ‘बरनोल’ तक बाँटने लगीं थीं और हार्वर्ड से ट्वीट कर भक्तों को सबक सीखाने का भी ख्वाब बना रही थी। लेकिन वामपंथ का हल्कापन बहुत दिनों तक नहीं चल सका और एक आम शोषित और वंचित की तरह निधि को अपनी आवाज सामने रखनी ही पड़ी कि जिस यूनिवर्सिटी की वो एसोसिएट प्रोफेसर बन गई हैं, वो एक व्हाट्सएप्प यूनिवर्सिटी थी। कोई बौड़म सर्वहारा ही निधि के साथ प्रैंक कर गया।
एनडीटीवी और व्हाट्सएप्प यूनिवर्सिटी के कुलपति जात बाबू भी निधि की व्हाट्सऐप यूनिवर्सिटी में पोस्टिंग से इस तरह सीना चौड़ा कर यहाँ-वहाँ जमकर फेक न्यूज़ चलाते घूम रहे थे, जिस तरह एक बाप, जिसका बेटा पहले अटेम्प्ट में UPSC निकाल गया हो, अपने रिश्तेदारों का जीना यही बात सौ तरह से बताकर हराम कर के घूमता है।
लेकिन वस्तुतः व्हाट्सएप्प यूनिवर्सिटी को उन्होंने हार्वर्ड पढ़ लिया था और फिर वहीं से सारी समस्य शुरु हो गई, ऐसा हमें सॉल्ट न्यूज के लोगों ने बताया। कई लोगों ने निधि को सलाह भी दे डाली थी कि उसे अपनी खुशियों पर नियंत्रण रखते हुए हॉवर्ड वाली बात को अपने ट्विटर बायो में कम से कम नहीं रखना चाहिए, हर दूसरे ट्वीट में तो इसका जिक्र ना ही करे, लेकिन निधि ने जिन्हें शुभचिंतक कहना था, उन्हें भक्त और संघी का तमगा दिया।
अभी जनता को अगले ट्वीट में यह न कहा जाए कि यूनिवर्सिटी बदलने का सारा खेल मोदी जी की ही सारी प्लानिंग थी और किसीने बादलों का फायदा उठाकर हार्वर्ड को रातोंरात व्हाट्सएप्प कर दिया।
फिलहाल तमाम वामपंथ का पालतू फैक्ट चेक गिरोह भी शर्मिंदा है क्योंकि हार्वर्ड को व्हाट्सएप्प बना देने वाले लोग जिन्दा हैं और फैक्ट चेकर इतने दिन-महीने और साल तक भी कुछ नहीं कर सके। अभी भी वो अपने लम्पट वामपंथी साथियों के साथ मिलकर ये कर सकते हैं कि मोदी जी या आईटी सेल की साजिश साबित कर दें। फिलहाल उन्होंने निधि को निराश किया है। पहली माफ़ी अब अगर किसीको निधि के प्रति जारी करनी चाहिए तो वो मजहबी फैक्ट चेकर्स हैं।
खैर, पब्लिसिटी कैसी भी हो, बुरी कभी नहीं होती। निधि राजदान के लिए यह कहावत अंतिम संतोष होनी चाहिए। आखिर में बस एक ही पंक्ति निधि राजदान के लिए समर्पित, “बरनॉल नियरे रखिए..”