छत्तीसगढ़ का एक जिला है कोरिया। इसी जिले में एक जगह है चिरमिरी, जो कोयला खदानों के कारण विशेष पहचान रखता है। राजधानी रायपुर से चिरमिरी की दूरी करीब 300 किलोमीटर है। सड़क मार्ग से इस यात्रा को पूरे करने में छह घंटे के करीब लगते हैं।
2018 के विधानसभा चुनावों से पहले जब मैं रायपुर से चिरमिरी के लिए निकला था तो शुरुआत में सब कुछ दुरुस्त ही लगा था। लेकिन चिरमिरी में जब तत्कालीन मुख्यमंत्री रमन सिंह को पानी की समस्या, उनके आगमन से पहले सड़कों के गड्ढे भरे जाने जैसे सवालों से जूझते देखा तो यह भ्रम टूटा कि दिल्ली के वातानुकूलित दफ्तर में बैठ छत्तीसगढ़ में विकास का जो अनुमान लगाया जाता है, जमीनी हकीकत उससे इतर है।
दिलचस्प यह था कि रमन सिंंह ने ऐसे किसी भी सवाल को खारिज नहीं किया था, बल्कि कहा था कि वे समस्याओं को ही जानने निकले हैं। इस यात्रा ने जिन निष्कर्षों तक पहुँचाया, चुनावी नतीजे आने के बाद वे सही साबित हुए और ‘चाउर वाले बाबा’ के नाम से मशहूर रमन सिंह के नेतृत्व में भाजपा की बुरी हार हुई थी।
इसी चिरमिरी से आती हैं वंदना तिवारी। जिन्हें आज आप गहना वशिष्ठ के नाम से जानते हैं। पोर्न रैकेट मामले में राज कुंद्रा की गिरफ्तारी के बाद से वे लगातार चर्चा में हैं। हालाँकि उनकी गिरफ्तारी कुंद्रा से पहले हो चुकी थी और अभी वे जमानत पर हैं। वंदना उर्फ गहना के चिरमिरी लिंक को लेकर नई दुनिया और दैनिक भास्कर ने हाल ही में स्टोरी की है। बताया है कि कैसे वह बचपन में मेधावी छात्रा थीं। इंजीनयरिंग करते-करते मॉडलिंग करने लगीं। फिर क्या-क्या करने लगीं वो अब आपके सामने है।
इस पूरे प्रकरण ने एक बार फिर बॉलीवुड के गटर पर से पर्दा उठा दिया है। बीते साल सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद इसी समय इंडस्ट्री की ऐसी ही कई नग्न परतें खुलकर सामने आई थी। अमूमन बॉलीवुड की चकाचौंध के पीछे छिपी नग्न सच्चाइयाँ तभी सामने आती हैं, जब पीड़ित/आरोपित आउटसाइडर होते हैं। लेकिन उससे भी शर्मनाक यह है कि देश-दुनिया की हर फटी में टाँग घुसेड़ने वाली बॉलीवुड की जमात अपनों की करतूतों पर अजीब तरह की खामोशी ओढ़ लेती है।
चिरमिरी में बैठ गहना ने मुंबई की फिल्म इंडस्ट्री को वैसे ही जाना होगा, जैसे मैं दिल्ली में बैठ छत्तीसगढ़ के विकास को समझ रहा था। जिस तरह चिरमिरी की धरती पर मेरा जमीन से साक्षात्कार हुआ था, वैसे ही गहना जैसों का मुंबई पहुँच एक अलग हकीकत से साक्षात्कार होता होगा। फिर इनमें से कुछ उसका हिस्सा बन जाती हैं और कुछेक जो ऐसा नहीं कर पाते उनके साथ दिव्या भारती या सुशांत सिंह राजपूत जैसी अनहोनी हो जाती है। पिछले साल हमने सुशांत के मामले में न्याय को लेकर जिस तरह का शोर सुना था, कुछ-कुछ वैसा ही सोशल मीडिया के न रहते हुए भी दिव्या भारती के मामले में भी हुआ था। अफसोस इसके बावजूद ऐसा कोई भी मामला आज तक अपनी मंजिल पर नहीं पहुँच पाया।
संजय दत्त से लेकर सलमान खान तक कई मामले हैं, जिन्होंने सिस्टम पर आम आदमी के भरोसे को डगमगाने का काम किया है। ऐसे किसी भी मामले में आम आदमी का भरोसा बहाल करने के लिए कभी सिस्टम ने सक्रियता नहीं दिखाई, पर याद कीजिए विदेशी एयरपोर्ट पर एक सितारे को रोके जाने के बाद कैसे उस समय की सरकार सक्रिय हो गई थी।
यह वह बॉलीवुड है जो अपनी हिंदूफोबिया और पिछले कुछ सालों से मोदीफोबिया भी, को बोलने की आजादी बताता है। पर अपनी ही इंडस्ट्री के गुनाहों को निजी बता बोलने से कन्नी काट जाता है। यहाँ तक कि आवाजों को खामोश कराने के लिए निजता का हनन और मानहानि जैसे तर्कों के साथ अदालत का दरवाजा खटखटाने से भी परहेज नहीं करता। राज कुंद्रा प्रकरण में शिल्पा शेट्टी का पत्रकारों और मीडिया संस्थानों के खिलाफ बॉम्बे हाई कोर्ट जाना इसी कड़ी का हिस्सा था। अपनी रोजमर्रा की जिंदगी को सार्वजनिक मंचों पर बेचकर खुद की ब्रांड वैल्यू बनाने वाला यह जमात नग्नता के सामने आते ही आखिर निजता का ढाल क्यों ले लेता है? उसके इस खेल में मीडिया का भी एक वर्ग कैसे शामिल हो जाता है? जैसे रिया चकवर्ती के मामले में हमने राजदीप सरदेसाई को करते देखा था। सिस्टम अमूमन इनके मामलों में वैसी ही तत्परता क्यों नहीं दिखा पाता है, जैसे हमारे-आपके घर से एके 47 मिलने पर वह दिखाएगा?
इन सवालों के जवाब मिलने ही चाहिए, क्योंकि हमें सपने दिखाने के नाम पर ही ये स्विट्जरलैंड की वादियों में सिफॉन की साड़ी में अभिनेत्रियों को नचाते हैं। हमारी गाढ़ी कमाई से खर्च किए गए पैसे से ये स्टार का स्टेटस हासिल करते हैं। यह दूसरी बात है कि हम अपनी प्रेमिका/पत्नी के साथ स्विट्जरलैंड तो दूर गाँव के अपने ही सरसों के खेत में कभी सपनों में भी नृत्य नहीं कर पाते! अपनी गाढ़ी कमाई इन कथित सपनों को पूरा करने पर लुटाने का साहस नहीं जुटा पाते हैं!
असल में बॉलीवुड जो कुछ भी समाज की हकीकत, मध्यमवर्ग के सपने बताकर बेचता है, दरअसल यह खुद उसके भीतर का सत्य है। हिंसा, अकाल मौत, ड्रग्स, अंडरवर्ल्ड समेत तमाम गोरखधंधे इस इंडस्ट्री के हिस्सा हैं। हिंदूफोबिया इनमें कितनी कूट-कूटकर भरी है, इसे @GemsOfBollywood जैसे ट्विटर हैंडल लगातार बेनकाब करते रहते हैं। अब वक्त इस इंडस्ट्री की सफाई का है। वरना कहने वाले तो कहते ही हैं कि मुंबई पुलिस के सालाना जलसे में बॉलीवुड का जमावड़ा ही इसलिए लगता है कि मुश्किल वक्त ‘कानून’ काम आए।