Sunday, September 8, 2024
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घर के अंदर कब्र और वहीं खाना-पीना-सोना: UP के छह पोखर गाँव के मुस्लिम आबादी की स्थिति दयनीय

छह पोखर गाँव में कब्रिस्तान है ही नहीं। कुछ समय पहले प्रशासन ने 'पूर्णतः सरकारी ढंग' से कब्रिस्तान के लिए जगह आवंटित कर दी थी। 'पूर्णतः सरकारी ढंग' इसलिए क्योंकि जो जमीन कब्रिस्तान के लिए आवंटित थी, वो एक तालाब के बीचोबीच पड़ती है।

सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास – लोकसभा में दूसरी बार जीत कर पहुँचे पीएम मोदी के इस नारे को उत्तर प्रदेश प्रशासन को जरूर सुनना चाहिए। और न सिर्फ सुनना चाहिए बल्कि इस पर अमल भी करना चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि छह पोखर गाँव की मुस्लिम आबादी को विश्वास में लेना बहुत जरूरी है। छह पोखर आगरा में है। और यहाँ के लोग अपने घरों में ही मृतक परिवार वालों को दफनाने के लिए मजबूर हैं।

छह पोखर गाँव के लोग कब्रों के साथ रहने को मजबूर हैं। किसी के घर में चूल्हे के पास कब्र है तो किसी के बरामदे में। गाँव में अधिकांश लोग गरीब और भूमिहीन हैं। नवभारत टाइम्स में प्रकाशित खबर में रिंकी बेगम बताती हैं कि उनके घर के पीछे पाँच लोगों को दफनाया गया है, इनमें उनका दस महीने का बेटा भी है। इसी गाँव की गुड्डी कहती हैं, “हम गरीब लोग इज्‍जत की मौत भी नहीं मर सकते। हमें कब्रों के ऊपर ही बैठना और चलना पड़ता है। घर में जगह की कमी है।”

यहाँ रहने वाले अधिकांश मुस्लिम परिवार गरीब और भूमिहीन हैं। बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं के अभाव में ऐसे घरों में एक से ज्यादा (खासकर बच्चे) मौतें होती हैं। गाँव में कब्रिस्तान के नहीं होने से लगभग हर घर में एक से ज्यादा लोगों की कब्रे हैं। जगह की कमी की समस्‍या के कारण घर में ताजा बनी कब्रों को सीमेंट से पक्‍का नहीं किया जाता क्‍योंकि इससे ज्‍यादा जगह घिरती है। एक कब्र को दूसरी कब्र से अलग दिखाने के लिए उनके ऊपर छोटे-बड़े पत्‍थर रख दिए जाते हैं।

फोटो साभार: वन इंडिया

छह पोखर गाँव में कब्रिस्तान है ही नहीं। गाँव वालों ने कुछ समय पहले जब प्रशासन से इस बाबत अनुरोध किया था तो ‘पूर्णतः सरकारी ढंग’ से कब्रिस्तान के लिए जगह आवंटित कर दी गई थी। ‘पूर्णतः सरकारी ढंग’ इसलिए लिखना पड़ा क्योंकि जो जमीन कब्रिस्तान के लिए आवंटित की गई थी, वो एक तालाब के बीचोबीच पड़ती है।

इस समस्या को लेकर कई बार धरने-प्रदर्शन भी हुए। लेकिन नतीजा आज तक सामने नहीं आया। 2017 में इसी गाँव के मंगल खान की मौत हो गई थी। उनके परिवार के लोगों ने मृत शरीर को दफनाने से तब तक इनकार कर दिया, जब तक गाँव को कब्रिस्‍तान के लिए जमीन आवंटित नहीं करा दी जाती। अधिकारियों ने तब आश्वासन भी दिया था, परिवार वालों को समझा-बुझा के मंगल खान को तालाब के किनारे दफनवा भी दिया था। लेकिन तब से लेकर अब तक वो सरकारी आश्‍वासन खोखला ही साबित हुआ है।

जब इस बात की जानकारी जिलाधिकारी रविकुमार को मिली तो उन्‍होंने कहा, “मैं अधिकारियों की एक टीम गाँव में भेजूंगा। कब्रिस्‍तान के लिए आवश्‍यक जमीन का ब्‍यौरा मँगवा कर देखूँगा और उचित निर्णय लूँगा।” उम्मीद है जिलाधिकारी का यह आश्वासन भी पिछले कई वादों की तरह खोखली न साबित हो।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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