Sunday, November 17, 2024
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सावन का महीना, चाय का ठेला और मात्र 1 रुपए से नरेंद्र मोदी ने कर दिखाया था ‘Sivaji: The Boss’ जैसा कारनामा: 9वीं कक्षा के बच्चे की एक कहानी

इस एक रुपए को देख कर उनके मन में भी ये बात उठने लगी कि कैसे बाढ़ पीड़ितों की मदद की जाए, लेकिन इस रकम से शायद ही कुछ हो सकता था।

मेरी माँ का स्वभाव सेवाभावी है। वो थोड़ी वैद्यकी जानती थीं। बच्चों को विशेष तरह की दवाइयाँ दी जाती थीं, जिन्हें लेने वो सूर्योदय से पहले आ जाया करते थे। सुबह 5 बजे से ही हमारे यहाँ बच्चों की कतारें लग जाती थीं। माँ को तक़रीबन 50 किस्म की दवाओं की जानकारी थी। वो अनपढ़ थीं, लेकिन उनमें ये दैवी शक्ति थी। हम भी सुबह उठ कर बच्चों की मदद में लग जाते। उन्हें व्यवस्थित रूप से बिठाने से लेकर अन्य कार्य करते। परिवार के अन्य सदस्यों में भी सेवा भाव इसी तरह आया। मैं लीडर नहीं हूँ, पहल करने वाला व्यक्ति हूँ।

एक इंटरव्यू के दौरान कहे इन शब्दों से स्पष्ट है कि नरेंद्र मोदी में सेवा का भाव कहाँ से आया और उनमें ज़रूरतमंदों के प्रति संवेदनशीलता बचपन से पनपी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शनिवार (17 सितंबर, 2022) को 72 वर्ष के हो गए। पिछले 8 वर्षों से भी अधिक समय से भारत की सत्ता पर काबिज नरेंद्र मोदी विश्व के सबसे लोकप्रिय नेताओं में से एक हैं। जन-कल्याणकारी नीतियों, हिंदुत्व व राष्ट्रवाद की विचारधारा, कुशल संगठनात्मक क्षमता और उनके चमत्कारिक व्यक्तित्व का प्रभाव ऐसा है कि आगामी 2024 लोकसभा चुनाव में भी कोई चेहरा उनके मुकाबले खड़ा होने लायक नहीं दिख रहा है, कड़ी टक्कर देना तो दूर की बात है।

प्रधानमंत्री ने कई मौकों पर खुद अपनी पुरानी कहानियाँ समझा की हैं और अपने छात्र जीवन के साथ-साथ RSS-भाजपा के संगठनात्मक कार्यों की जिम्मेदारी वाले दिनों की बातें बताई हैं। उनके परिवार वालों और पुराने जानने वालों ने भी उनके बारे में कई चीजें साझा की। ये एक ऐसा व्यक्तित्व है, जिसके बारे में सब और ज्यादा जानना चाहते हैं। यहाँ हम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से जुड़े ऐसे ही कुछ वाकयों की चर्चा करते हैं, जो उन्हें चाहने वालों को खासे पसंद आएँगे।

आपको सुपरस्टार रजनीकांत की फिल्म ‘शिवाजी: द बॉस’ याद होगी। कैसे उसमें एक रुपए के सिक्के से ‘शिवाजी’ का किरदार न सिर्फ गुंडे को सलाखों के पीछे पहुँचाता है, बल्कि कालेधन के खिलाफ लड़ाई लड़ते हुए जनता की भलाई करता है। वास्तविक जीवन में अपने बचपन के दिनों में कोई इस तरह की चीज करे, तो उसे चमत्कार नहीं तो और क्या कहा जाएगा? इस घटना के बारे में जान कर आपको विश्व के सबसे लोकप्रिय नेता कहे जाने वाले व्यक्ति के संघर्ष में बीते बचपन और उनकी संवेदनशीलता पर नाज हो जाएगा।

लेखक किशोर मकवाना अपनी पुस्तक ‘Common Man Narendra Modi‘ में इस घटना का जिक्र करते हुए बताते हैं कि घर की कमजोर आर्थिक स्थिति के कारण 6 भाई-बहनों में से कोई भी ठीक से पढ़ नहीं पाया। लेकिन, चीजों को अलग दृष्टि से देखने की क्षमता नरेंद्र मोदी के पास बचपन से ही थी और गुजरात के वडनगर में स्थित पुस्तकालय में अध्ययन करते हुए उनका अधिकतर समय व्यतीत होता था। समस्याओं का चुटकी में हल निकाल लेना उनकी काबिलियत थी।

ये तब की बात है, जब नरेंद्र मोदी नौवीं कक्षा में पढ़ते थे। उनकी उम्र यही कोई 14-15 साल रही होगी। सावन का महीना था और देश के विभिन्न हिस्सों में बाढ़ से स्थिति विकराल बनी हुई थी। इस उम्र में एक आर्थिक रूप से पिछड़े घर का लड़का भला क्या कर सकता था? लेकिन, नरेंद्र मोदी के मन में ये बातें चल रही थीं कि पीड़ितों की सहायता के लिए वो क्या योगदान दे सकते हैं। सावन के महीने में देश के कई इलाकों की तरह वडनगर में भी मेला लगा करता था।

वहाँ आसपास के गाँवों के लोगों का जुटान भी होता था। बाल नरेंद्र को उसके पिता ने मेले में खर्च करने के लिए एक रुपए दिए। इस एक रुपए को देख कर उनके मन में भी ये बात उठने लगी कि कैसे बाढ़ पीड़ितों की मदद की जाए, लेकिन इस रकम से शायद ही कुछ हो सकता था। तब उनकी संगठनात्मक क्षमता और अलग सोचने की कला उनके काम आई। उन्होंने अपने दोस्तों को जुटाया और एक तरकीब सोच निकाली।

उन्होंने निर्णय लिया कि वो लोग उस मेले में चाय का ठेला लगाएँगे और उससे जो भी आय होगी, वो बाढ़ पीड़ितों की सहायता हेतु खर्च करेंगे। सभी दोस्तों ने इसके लिए मात्र एक-एक रुपया कर के जो भी धन था उसे इकट्ठा किया। नरेंद्र मोदी ने भी अपने हिस्से का एक रुपया उसमें लगाया। स्टोव और बर्तन वो अपने घर से ही लेकर आ गए। मेले में चाय का टहला लग चुका था। जो भी आय हुई, उसे बाढ़ पीड़ितों के लिए भेज दिया गया।

इस तरह एक रुपए से नरेंद्र मोदी ने कमाल कर दिखाया। तब वडनगर में डॉक्टर वसंत पारीख नाम के एक समाजसेवी हुआ करता थे। उनकी संगत में नरेंद्र मोदी ने बाढ़ पीड़ित दक्षिणी गुजरात का दौरा किया और वहाँ के पीड़ितों की सेवा भी की। इसी तरह जब 1962 में भारत-चीन का युद्ध हुआ, तब मेहसाणा स्टेशन से गुजरने वाले भारत के वीर जवानों के भोजन-पानी की जिम्मेदारी 12 साल के नरेंद्र मोदी और उनकी टोली ने उठाई।

आधी रात के समय भी जवान वहाँ से गुजरते तो नरेंद्र मोदी उस समय तक जाग कर उनकी सेवा करते और स्टेशन पर ही नींद की झपकी ले लिया करते। जवानों को चाय-बिस्किट खिलाने के लिए वो रोज वडनगर से मेहसाणा जाया करते थे, जिसके किराया तब 8 से 12 आना हुआ करता था। गाँव के तालाब में तैराकी सीखने वाले नरेंद्र मोदी तैर कर एक छोटे से मंदिर में जाकर झंडा लहराया करते थे। ये करना उन्हें खासा अच्छा लगता था।

ये तो सभी को पता है कि मात्र 17 वर्ष की आयु में आध्यात्मिक यात्रा पर नरेंद्र मोदी घर छोड़ कर निकल गए थे और हिमालय पर पहुँचे थे। शुरू में माता-पिता असमंजस में थे, लेकिन बेटे का निश्चय दृढ़ था। अतः, माँ ने मीठा खिला कर और टीका लगा कर उन्हें विदा किया था। माँ को एक साधु ने बेटे की कुंडली देख कर पहले ही बताया था कि अगर वो राजनीति में गया तो चक्रवर्ती सम्राट की कीर्ति पाएगा और संन्यासी बना तो शंकराचार्य जैसी प्रतिष्ठा। 2 वर्षों तक घूमते रहने के बाद वो राजकोट के रामकृष्ण मिशन वापस गुजरात पहुँचे। लेकिन, वहाँ भी ज्यादा दिन ठहरे नही।

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अनुपम कुमार सिंह
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भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

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