कॉन्ग्रेस (Congress) एक समस्या से निकलने की कोशिश करती है तो दूसरे में फँस जाती है। राजस्थान में भी यही देखने को मिल रहा है। प्रदेश के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाकर एक समस्या का समाधान खोजा जा रहा था तो प्रदेश में सीएम पद को लेकर दूसरी समस्या शुरू हो गई है।
राजस्थान के पूर्व उप-मुख्यमंत्री सचिन पायलट (Sachin Pilot) को प्रदेश का अगला मुख्यमंत्री बनाए की सुगबुगाहट के बीच अशोक गहलोत गुट के विधायकों ने इसका विरोध किया है। विधायकों की माँग है कि कॉन्ग्रेस विधायक दल द्वारा नया मुख्यमंत्री चुना जाए।
सचिन पायलट को अशोक गहलोत का उत्तराधिकारी बनाए जाने के विरोध में गहलोत समर्थक माने जाने वाले 92 विधायकों ने विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी को विरोध में अपना इस्तीफा भी सौंप दिया है। हालाँकि, पायलट समर्थकों का मानना है कि केंद्रीय प्रवेक्षक मल्लिकार्जुन खड़गे और अजय माकन की रिपोर्ट के बाद पार्टी आलाकमान सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाने के लिए कोई ना कोई रास्ता निकालेगी।
राज्य की वर्तमान हालात को देखते हुए पार्टी हाईकमान के पास वर्तमान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को पार्टी अध्यक्ष के साथ-साथ राज्य का मुख्यमंत्री पद भी दे सकती है। जब राज्य के राजनीतिक हालात में सुधार देखने को मिलेगा तो उस पर किसी तरह की बदलाव का विचार कर सकती है। कहा जा रहा है कि अशोक गहलोत भी पार्टी अध्यक्ष बनने के बजाय मुख्यमंत्री बने रहना पसंद कर रहे हैं।
कॉन्ग्रेस के पास दूसरा रास्ता है कि पार्टी हाईकमान अशोक गहलोत के बजाय पार्टी अध्यक्ष के लिए किसी अन्य उम्मीदवार को चुने। इससे राजस्थान की कमान अशोक गहलोत के पास ही रहेगी और पार्टी में किसी तरह की टूट या विरोध को टाला जा सकेगा। हालाँकि, पार्टी के पास इसके लिए नए सिरे से विचार करना होगा।
हाईकमान के पास तीसरा विकल्प है कि सचिन पायलट को प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाए और अशोक गहलोत को अपने खेमे के विधायकों को पायलट का समर्थन करने के लिए मनाए। हालाँकि, इसकी संभावना कम है, क्योंकि बीते समय में दोनों को बीच तल्ख रिश्ते अलग आयाम ले चुके हैं।
वहीं, हाईकमान किसी तीसरे ऐसे व्यक्ति को प्रदेश का मुख्यमंत्री चुन सकता है, जो अशोक गहलोत और सचिन पायलट दोनों को स्वीकार हों। कहा जा रहा है कि केंद्रीय पर्यवेक्षकों ने इसको लेकर पार्टी के विधायकों के समक्ष कुछ नामों पर चर्चा की थी, लेकिन पायलट गुट इसके लिए तैयार नहीं दिखा। वहीं, बैठक में गहलोत गुट के विधायक भी नहीं पहुँचे।
दरअसल, अशोक गहलोत समर्थक विधायकों का कहना है कि जो व्यक्ति एक बार पार्टी तोड़ने की कोशिश कर चुका है, उसे मुख्यमंत्री नहीं बनाया जा सकता और यदि पार्टी हाईकमान ऐसा करता है तो उन्हें यह स्वीकार नहीं होगा। माना जा रहा है कि इस पूरे गेम के पीछे मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का ही हाथ है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अशोक गहलोत पार्टी अध्यक्ष बनने के बाद भी सीएम पद की कुर्सी अपने पास रखना चाहते हैं। वे चाहते हैं कि वे खुद बने रहें या फिर अगला सीएम बनने का अधिकार उनके पास हो और वे अपनी पसंद के विधायक को इस कुर्सी पर बैठा सकें।
बता दें कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का नाम पार्टी अध्यक्ष के लिए आगे बढ़ चुका है। वे 28 या 29 सितंबर को अपना नामांकन दाखिल भी कर सकते हैं। ऐसे में पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गाँधी के सामने दुविधा खड़ी हो गई है।
राहुल गाँधी भी ‘भारत जोड़ो’ अपनी यात्रा के दौरान कह चुके हैं कि पार्टी में एक व्यक्ति एक पद का फॉर्मूला रहेगा। ऐसे में अशोक गहलोत के लिए भी संकट खड़ा हो गया है। अगर गहलोत कॉन्ग्रेस अध्यक्ष बनते हैं तो उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़नी होगी।
ऐसे में अशोक गहलोत के धुर विरोधी और लंबे समय से सीएम पद की कुर्सी पर टकटकी लगाए बैठा सचिन पायलट का खेमा इस मौके पर चुकना नहीं चाहता है। पायलट गुट चाहता है कि अशोक गहलोत को अध्यक्ष बनाए जाने के बाद मुख्यमंत्री की कुर्सी सचिन पायलट को मिले। अशोक गहलोत समर्थक सचिन को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं। अगला निर्णय अब पार्टी पर्यवेक्षकों की रिपोर्ट पर निर्भर करता है।