आज 17 सितंबर है यानी ‘हैदराबाद मुक्ति दिवस’। आज ही के दिन 1948 में निजाम के चंगुल से निकालकर हैदराबाद का भारत में विलय किया गया था। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह हैदराबाद में स्थित परेड ग्राउंड में गए और निजाम की सेना और रजाकारों (निजाम के शासन के सशस्त्र समर्थक) के खिलाफ लड़ने वाले सैनिकों को श्रद्धांजलि दी।
#WATCH | Telangana: Union Home Minister Amit Shah inspects the parade during Hyderabad Liberation Day celebrations at Parade Ground. pic.twitter.com/2Xh1eDCsSl
— ANI (@ANI) September 17, 2023
15 अगस्त 1947 को देश को आजादी मिलने के पहले से ही निजाम हैदराबाद को एक स्वतंत्र मुल्क बनाने की कोशिश में था। निजाम मीर उस्मान अली खान ने 3 जून 1947 को फरमान जारी कर हैदराबाद को आजाद मुल्क घोषित कर दिया था। इसके बाद सरदार पटेल के नेतृत्व में कार्रवाई पर हैदराबाद को भारत में मिला लिया गया।
जब हैदराबाद को भारत में मिलाने की बातचीत चल रही थी, तब हैदराबाद के निजाम मीर उस्मान अली खान ने भारत में विलय के आग्रह को खारिज कर दिया था। उसे रजाकारों के नेता कासिम रिजवी ने भरोसा दिया था कि हैदराबाद को मिलाने के लिए भारत किसी तरह की सैनिक कार्रवाई करता है तो उसके नेतृत्व में रजाकार भारती सेना का मुकाबला करेंगे।
भारतीय नेतृत्व को डराने के लिए कासिम के नेतृत्व में क्रूर रजाकारों और निजाम के सैनिकों ने राज्य के हिंदुओं पर जुल्म ढाना शुरू कर दिया। इतना ही नहीं, कासिम रिजवी ने धमकी दे डाली कि अगर भारत ने उस पर किसी तरह सैनिक कार्रवाई करने की कोशिश की तो उसे 1.40 करोड़ हिंदुओं की हड्डियों एवं राख के अलावा कुछ नहीं मिलेगा। वीपी मेनन ने अपनी किताब ‘द इंटीग्रेशन ऑफ स्टेट्स’ में इसका जिक्र किया है।
रजाकारों के अत्याचारों को देखतेे हुए तत्कालीन केंद्रीय गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने 13 सितंबर 1948 को ऑपरेशन पोलो शुरू किया और 17 सितंबर को हैदराबाद को भारत में मिला लिया। पाँच दिनों की कार्रवाई में 1373 रजाकार और हैदराबाद रियासत के 807 जवान मारे गए। वहीं, भारतीय सेना के 66 जवान भी वीरगति को प्राप्त हो गए।
अंत में निजाम और कट्टरपंथी मुस्लिमों के संगठन रजाकारों ने सरेंडर कर दिया। इसके बाद रिजवी को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया और मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन पर प्रतिबंध लगा दिया गया। लगभग एक दशक तक जेल में रखने के बाद कासिम रिजवी को इस शर्त पर रिहा कर दिया गया कि वह 48 घंटों में पाकिस्तान चला जाएगा। रिजवी को पाकिस्तान ने अपने शरण दे दी थी।
हैदराबाद मुक्ति आंदोलन को लेकर डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने अपने स्पष्ट विचार रखे थे। उन्होंने कहा था कि निजाम के अत्याचारी शासन में रहने वाले लोगों ने निजाम के खिलाफ के बड़े आंदोलन को शुरू किया। इसमें कई हीरो ने अपने बलिदान दिए। डॉक्टर अंबेडकर के अलावा, शेड्यूल कास्ट फेडरेशन ने भी निजाम का खुलकर विरोध किया था।
उस समय फेडरेशन के प्रदेश अध्यक्ष भाऊसाहेब मोरे ने दलित समुदाय को लेकर निजाम के खिलाफ पम्फलेट बाँटा था। उसमें कहा गया था, निजाम को उखाड़ फेंका जाना चाहिए और उसकी जगह एक लोकतांत्रिक सरकार बनाई जानी चाहिए। यह अंबेडकर के हर अनुयायी की नीति होनी चाहिए। दलितों को रजाकारों के साथ भी शामिल नहीं होना चाहिए।” यहाँ तक कि दलित नेता मोरे ने दलितों को मुस्लिम इलाके में भी जाने से मना किया था।
डॉक्टर अंबेडकर ने भी हैदराबाद के दलितों से अपील की थी। उन्होंने कहा था, “मैं एक ही बात कहना चाहता हूँ कि पाकिस्तान, निजाम और मुस्लिम लीग के मुस्लिमों पर विश्वास करना दलित समुदाय को नुकसान पहुँचाएगा। पाकिस्तान या हैदराबाद के दलितों को इस्लाम की ओर नहीं जाना चाहिए। उनका प्राथमिक उद्देश्य अपनी जीवन की सुरक्षा करना होनी चाहिए है।”
डॉक्टर अंबेडकर ने कहा कि हैदराबाद के दलित समुदाय को निजाम को स्वीकार नहीं करना चाहिए। डॉक्टर अंबेडकर ने आगे कहा था, “हमें भारत विरोधियों का साथ देकर अपने समुदाय के मुँह पर कालिख नहीं पोतना चाहिए।” डॉक्टर अंबेडकर के इस बयान का जिक्र धनंजय कीर ने अपनी पुस्तक ‘बायोग्राफी ऑफ डॉक्टर बाबासाहेब अंबेडकर’ में किया है।
निजाम के खिलाफ डॉक्टर अंबेडकर ने पहली रैली 30 दिसंबर 1938 को कन्नड़ जिले के मक्रणपुर में आयोजित की गई थी। औरंगाबाद की इसी रैली में भाऊसाहब मोरे ने डॉक्टर अंबेडकर के पहले ‘जय भीम’ का नारा दिया था। इस रैली ने हैदराबाद मुक्ति आंदोलन में बड़ी भूमिका निभाई थी।
दरअसल, निजाम दलितों पर जुल्म की सीमा पार कर चुका था। निजाम का शासन हिंदुओं के प्रति अत्याचार के कुख्यात हो चुका था और उसके शासन को लेकर लोगों को विद्रोह पनपने लगा था। इसके कारण निजाम ने शेड्यूल कास्ट फेडरेशन के कई नेताओं की हत्या करवा दी। इसके विरोध में दलित नेताओं के समर्थन में डॉक्टर भीमराव अंबेडकर भी आए।
दलितों पर अत्याचार और उनके धर्मांतरण से बाबा साहेब को ठेस पहुँची। निजाम के शासन के अंतर्गत आने वाले मराठवाड़ा में दलितों की हालत और भी बदतर थी। दलितों के साथ बड़े पैमाने पर भेदभाव होता था और उन्हें शिक्षा से भी वंचित रखा गया था। डॉक्टर अंबेडकर और सरदार पटेल के प्रयास मराठवाड़ा निजाम के चंगुल से मुक्त हो गया। इसके बाद वहाँ बड़े पैमाने पर स्कूल-कॉलेज खुले।
बताते चलें कि ये वही मराठवड़ा है जिसकी मुक्ति का विरोध असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM के नेता करते है। मराठवाड़ा मुक्ति दिवस पर AIMIM के सांसद तिरंगा फहराने के कार्यक्रम से भी अनुपस्थित रहे। यह वही AIMIM है, जो रजाकारों की MIM से संबंधित है और ओवैसी के पूर्वज इससे जुड़े थे। इस तरह दलितों से अंतर्मन से घृणा करने वाले राजनीति के लिए ‘जय भीम जय मीम’ की बात कर रहे हैं।