हिन्दुओं की धरती है, सर्वसमावेशी विचार के लोग हैं, सहिष्णुता के प्रवर्तक और स्नेह में डूबे हुए लोग कि इस्लामी आक्रमणकारियों, इस्लामी बलात्कारियों, इस्लामी और विदेशी हत्यारों को भी बसने की ज़मीन दी। और कितने उदाहरण चाहिए? ऐसे लोग किसी को क्या डराएँगे? हम तो स्वयं ही हर पर्व पर एक खास तरह के आतंक से डर जीते रहे हैं। अब तो तुम हमें, जीने दो, जीने दो!
रवीश मुहल्ले की गली का वो लौंडा है जो किसी लड़की के नाम से हाथ काट लेता है, और लड़की को पता भी नहीं होता कि उसका नाम क्या है। रवीश के ऐसे प्रोग्रामों को देख कर मैं बस इसी इंतज़ार में हूँ कि वो किस दिन कलाई का नस काट कर कहेंगे कि उन्हें कुछ होगा तो ज़िम्मेदार मोदी ही होगा।
मोदी ने तो माताजी का आशीर्वाद लिया और चले गए, लेकिन लिबरल ब्रीड अभी भी पागल हो रहा है। मोदी रैली में व्यस्त है, इंटरव्यू खत्म हो गया, लेकिन लिबरल ब्रीड उसे कंधे पर लेकर घूम रहा है। लिबरलों के पोस्टर ब्वॉय लिंगलहरी कन्हैया की गरीब माँ पर खूब आहें निकलीं, कैमरा तो उसके घर में भी घुसा था, उसके घर का राजनीतिकरण हुआ कि नहीं?
दिक्कत है मामले की गंभीरता और शब्दों के चुनाव से छिछोरेपन को, सेक्सिस्ट बयान को, नारीविरोधी शब्दों को 'तंज' और 'ज़ुबानी जंग' के नाम पर ऐसे प्रस्तुत करना जैसे इतना तो चलता है।
मुझे इससे कोई मतलब नहीं है कि फ़लाँ किताब के फ़लाँ चैप्टर में यह लिखा है कि एक मानव की हत्या पूरे मानवता की हत्या है, क्योंकि ये कहने की बातें हैं, इनका वास्तविकता से कोई नाता नहीं है। ये फर्जी बातें हैं जो आतंकियों के हिमायती उनके बचाव में इस्तेमाल करते हैं।
हमें पोलिटिकली करेक्ट होकर स्वीकारने में भले ही अनंत काल लग जाए, लेकिन सत्य यही है कि बड़े आतंकी हमलों के केन्द्र में इस्लामी विचारधारा और आईसिस का झंडा है।
भाजपा के सर पर सम्प्रदायवाद मढ़ दिया जाता है, लेकिन याद कीजिए कि कॉन्ग्रेस के दंगाई इतिहास और वामपंथियों के आतंक के शिकार लोगों के लिए, उनके और तृणमूल के पोलिटिकल किलिंग्स पर कितनी बार माफ़ी माँगी गई? किसी ने कह दिया कि भाजपा कम्यूनल है, तो वो गई क्या? सिद्धू ने अपने बयान के लिए माफ़ी माँगी? मणिशंकर अय्यर ने? आज़म खान ने? राहुल गाँधी ने?
आपको सेना के जवानों से सबूत माँगते वक्त लज्जा नहीं आई, आपको एयर स्ट्राइक पर यह कहते शर्म नहीं आई कि वहाँ हमारी वायु सेना ने पेड़ के पत्ते और टहनियाँ तोड़ीं, आपको बटला हाउस एनकाउंटर वाले अफसर पर कीचड़ उछालते हुए हया नहीं आई, लेकिन किसी पीड़िता के निजी अनुभव सुनकर आपको मिर्ची लगी कि ये जो बोल रही है, वो तो पूरी पुलिस की वर्दी पर सवाल कर रही है।