Thursday, April 18, 2024
115 कुल लेख

Anand Kumar

Tread cautiously, here sentiments may get hurt!

ईसाईयों ने सबरीमाला को 1950 में आग लगा दी थी, आज भी नफरती चिंटुओं की नज़र पर है आस्था

सवाल यह भी है कि क्या हम खुद अपने मंदिरों पर जारी हमलों को उसी तरह देखने और बयान करने की हिम्मत जुटाएँगे जैसा वो सचमुच हैं? सेकुलरिज्म का टिन का चश्मा हम अपनी आँख से उतारेंगे क्या?

बिहार का गुमनाम जलियाँवाला: नेहरू ‘तारापुर शहीद दिवस’ की घोषणा करके भी मुकर गए, क्या थी वजह?

इसमें केवल पासी, धानुक, मंडल और महतो ही नहीं शहीद हुए थे- मरने वालों में झा और सिंह नामधारी भी थे। तो दलहित चिंतकों के लिए इस मामले में रस नहीं होता। इसलिए यह नाम भी गुमनाम ही रह गए, और मुंगेर भी नेताओं के लिए जलियाँवाला जितना जरूरी नहीं बना।

राहुल सांकृत्यायन और सदरुद्दीन एनी: साहित्यकार की कलम भविष्य भी लिख देती है

अगर दाखुंदा का शाब्दिक अर्थ देखें तो ये मोटे तौर पर पहाड़ी जैसा अर्थ लिए हुए है। जैसे हिंदी में 'देहाती' कहने पर सिर्फ ग्रामीण का बोध नहीं होता, उसमें 'गंवार', मूर्ख, नासमझ, या दुनियादारी से अनभिज्ञ वाला भाव भी होता है।

टेरेसा ‘मदर’ नहीं, कलकत्ता की ‘पिशाच’: भोपाल गैस त्रासदी का समर्थन, करोड़ों रुपयों की हेराफेरी

टेरेसा ने 1984 की भोपाल गैस त्रासदी के बाद यूनियन कार्बाइड का समर्थन किया था। वो मार्गरेट थेचर और रोनाल्ड रीगन जैसों की सरकार का समर्थन करती थीं। चार्ल्स कीटिंग ने उन्हें 1.25 मिलियन डॉलर का चंदा दिया था। इन सब के बारे में आमतौर पर बात नहीं होती।

गणेश शंकर विद्यार्थी की याद में: मॉब लिंचिंग का कोई मज़हब नहीं होता

झूठ का पर्दाफाश होने के बाद भी ये उम्मीद मत रखिए कि दिल्ली के ठग और #बेगुसरायकाबकैत अपनी बेशर्मी के लिए कोई माफ़ी माँगेंगे। ये वो लोग हैं जो अपने गिरोह के लोगों या खुद की की हुई यौन शोषण, बलात्कार जैसी हरकतों पर भी चुप्पी साधते हैं।

होलिका दहन, प्रह्लादपुरी के अवशेष और इस्लामिक बर्बरता

वो इलाक़ा होता था कश्यप-पुर जिसे आज मुल्तान नाम से जाना जाता है। ये कभी प्रह्लाद की राजधानी थी। यहीं कभी प्रहलादपुरी का मंदिर हुआ करता था जिसे नरसिंह के लिए बनवाया गया था। कथित रूप से ये एक चबूतरे पर बना कई खंभों वाला मंदिर था।

होली के पर्व पर ‘पानी’ की तरह बर्बाद होती किराए की कलमों की स्याही

एक दिन की होली को पानी की बर्बादी घोषित करने वाले लोग आपको ये नहीं बताते कि तथाकथित शुद्ध जल आरओ (रिवर्स ओसमोसिस) से निकालना हो तो एक लीटर पानी निकालने में कम से कम नौ लीटर पानी बर्बाद होता है।

कंगना और कुंभ पर सवाल खड़े करने वाले आमिर और यूनिलीवर की करतूतों पर चुप बैठ जाते हैं

कुम्भ के आयोजन में 200 वर्षों बाद ऐसा हुआ है कि कोई बड़ी भगदड़ नहीं मची। किसी के भीड़ में कुचल कर मारे जाने की ख़बर चलाने का गिद्धों को मौक़ा ही नहीं मिला। भला आयातित विचारधारा और उपनिवेशवादी मानसिकता के लोग ऐसी कामयाबी कैसे सहन कर पाते?

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